शनिवार, 10 दिसंबर 2016

भाषा

अगर प्रूफ़ रीडर न होते तो कई महान रचनाएं भी न छप पातीं
कभी लेखकों को ग़लत टाइप कर देने वालों की शर्मिंदगी भी देखनी चाहिए
कभी महानता का कुछ श्रेय वर्तनी ठीक कर देने वालों को भी दिया जाना चाहिए
मास्टर लेखकों की अशुद्धियों की लज्जा और बिना धन्यवाद के भी मरते हैं
सच्चे लोग बताया करते हैं कि उन्होंने भाषा किससे सीखी थी

शशिभूषण

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