शनिवार, 10 दिसंबर 2016

नोटबंदी पर पांच बातें

आपने बड़े बड़े विश्लेषण पढ़ लिए। बड़ी बड़ी रिपोर्ट देख सुन लीं। आपमें से कुछ स्वयं बड़े जानकार और विश्लेषक हैं। मैंने भी इतने दिनों कुछ भोगा, बहुत कुछ देखा सुना और पढ़ा है। इसलिए आज इस स्थिति में हूँ कि सरकार का आलोचक या प्रवक्ता हुए बग़ैर कुछ निष्कर्ष आपके सामने रखूं। इन्हें आप सहज भाव से भी पढ़ सकते हैं, आलोचना भी कर सकते हैं और अपने मत जोड़ भी सकते हैं।

1 नोट बंदी पूर्णतया बैंकों की क्षमता बढ़ाने के लिए है। कोशिश की गयी है कि बैंक में रुपया आये। चूँकि जिन लोगों ने बैंक से रूपया खींच लिया है उनसे रुपया मंगाया नहीं जा सकता, क्षमता के बाहर की बात है क्योंकि सरकार भी उनके कारोबार की ही तरह चल रही है इसलिए ज़रूरी था कि आम लोगों के रास्ते ही सही बैंक में पैसा आये। यानी माल्या का धन बैंक न लाया जा सके तो रामदीन की जमा पूंजी ही लायी जाये।


2 देश के भीतर का ही धन बैंक लाने का इरादा यह ज़ाहिर ही कर देता है कि पैसा मार्केट में लाया जाये। व्यापार बढ़ाया जाए। देश का धन बाज़ार में होगा तो कारोबार बढेगा। वर्तमान भारत सरकार से कोई सहमत हो या असहमत यह खूब जानता है कि प्रधानमंत्री हों या वित्तमंत्री इनके लिए बढ़ता कारोबार ही विकास है। इनका रिपोर्ट कार्ड विकास उर्फ़ कारोबार का ही है और रहने वाला है।

3 देश का सारा अंदरूनी धन बैंक में होगा तो भारत की समेकित क्रय शक्ति या साख को प्रदर्शित करेगा। बिना किसी बड़ी जद्दोजहद के यह दिखाया जा सकेगा कि यह है भारत की कारोबारी क्षमता। अभी भारत की नगदी भारत के लोगों के पास है।

4 आप अच्छी तरह जानते हैं कि भारत के संविधान में नागरिकों को संपत्ति रखने का मूल अधिकार है। धन अनिवार्य रूप से बैंक में रखने की बाध्यता इस अधिकार को नियंत्रित करने का वैसा ही प्रयास है जैसे दांये हाथ से बांया कान पकड़ लिया जाये।
यह कोशिश आगे चलकर हर तरह की संपत्ति के साथ हो सकती है।

5 जिन्हें लगा था कि नोटबंदी का सरकार का फैसला आम लोगों को थोड़ा तक़लीफ़ देनेवाला लेकिन दूरगामी रूप से अच्छा फैसला है और ऐसे लोग अब टीवी चैनलों के कुछ फुटेज देखकर द्रवित हो रहे हैं और सरकार तक को खतरे में देख लेनेवाले स्टेटस ठेल रहे हैं उनके पिछले तीन स्टेटस पढ़कर ही जाना जा सकता है कि ये जानबूझकर इरादतन कन्फ्यूज़्ड लोग हैं। इनके लिए सब खेल है। लग सकता है कि इनमें समझ बड़ी गहरी है लेकिन ये कार्पोरेट और हद से हद एनजीओ की ओर से खेलनेवाले लोग हैं। ये सरकार के भी सगे नहीं हैं। सरकारी लोग इनकी आँख के कांटे हैं और इन भले लोगों को जनता के बारे में उतना ही पता है जितना करण जौहर को इश्क़ के बारे में पता है।

उपर्युक्त पांच बातें हैं जो मेरे दिमाग़ में आईं। और भी बातें हैं जो आकार ले रही हैं। मसलन विदेशों से काला धन भारत में कैसे आ सकेगा? तब तक टीवी, अख़बार आदि के साथ साथ चल रहा हूँ। आप भी कोशिश कीजिये। क्या पता नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा की दिशा में कौन सा मत अधिक कारगर निकल जाये।

(नोट: जिन्हें हर बात मोदी सरकार के विरोध या पक्ष में पढ़ने की लत लग चुकी है उनसे निवेदन है कि मेरे लिए मोदी जी एक सरनेम है। भारत के प्रधान मंत्री का पूरा नाम है नरेंद्र दामोदर दास मोदी। वे भाजपा के राजनेता हैं लेकिन मेरे लिए भारत के प्रधानमंत्री हैं।)

शशिभूषण

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