शनिवार, 10 दिसंबर 2016

फ़िल्म से पहले राष्ट्रगान कुछ सवाल

सिनेमा हॉल अब तक मनोरंजन की जगह ही रहे हैं। फ़िल्म कितनी भी क्लासिक या कमर्सियल रही हों उन्होंने मनोरंजन मनोरंजन में ही जो किया होगा किया होगा। सिनेमा घरों में शुरुआत से पहले राष्ट्रगान द्वारा किसी और उद्देश्य की उम्मीद भले राष्ट्रवादी दिखायी दे मगर अंत में उसे भी मनोरंजन के पीछे ही रह जाना होगा। लेकिन अब जब उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका के फैसले में फ़िल्म से पहले राष्ट्रगान गाना और परदे पर तिरंगे का डिस्प्ले अनिवार्य कर दिया है तो मेरे मन में कुछ सवाल हैं(कृपया इन सवालों को अवमानना की तरह न देखें। मैं अधिवक्ता नहीं हूँ। अदालती कार्यवाही में शामिल नहीं था केवल इसीलिए ये सवाल मन में फैसले के बाद उठे।)


1 राष्ट्रगान सार्वजनिक या सरकारी स्थलों पर ही विशेष अवसरों पर गाया जाता रहा है। क्या किसी फीचर फ़िल्म का प्रदर्शन विशेष अवसर के अंतर्गत या राष्ट्रीय महत्त्व के प्रदर्शन का दर्ज़ा सचमुच रखता है?

2 सिनेमा हॉल का नियंत्रण या निगरानी भले सरकारी हो लेकिन वे निजी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। जब वहां दिन में कम से कम तीन बार राष्ट्रगान गाया जाएगा तो वे निश्चित रूप से राष्ट्रीय स्थल की तरह गरिमापूर्ण हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में उनकी सुरक्षा या वहां दर्शकों की सुरक्षा या आपदा की स्थिति में मुआवजे के क्या राष्ट्रीय प्रावधान होंगे?

3 सिनेमा घरों में चीजों के दाम मनमाने होते हैं। यदि वहां राष्ट्रगान सुनिश्चित हो सकता है तो दामो के निर्धारण के लिए क्या कदम उठाये जायेंगे? क्या देश के सभी सिनेमा घरों में एक से दाम और समान सुविधा हेतु समान भुगतान प्रणाली लागू की जायेगी?

4 सिनेमा घरों में फ़िल्म प्रदर्शन के अतिरिक्त सभा एवं समारोह भी किराए पर आयोजित किये जाते हैं। क्या इन आयोजनों से पहले भी राष्ट्रगान अनिवार्य किया जा सकता है? क्या इनके मिनट्स आदि सिनेमा घरों में रखे जाएंगे?

5 जब अधिकांश सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया जा रहा हो तब सिनेमा घरों में राष्ट्रगान अनिवार्य कर दिए जाने से भारत सरकार निगरानी एवं उत्तरदायित्व का अतिरिक्त बोझ नहीं उठाने जा रही है? क्या इसका निबाह अखिल भारतीय स्तर पर दोष रहित संभव है?

6 फ़िल्म से पूर्व राष्ट्रगान की अनिवार्यता को क्या मनोरंजन को भी सरकारों से नाथ लेने की कवायद की तरह देखा जा सकता है? अब जब फ़िल्में बनेंगी तो उस नए दर्शक की तरह सेंसर बोर्ड देखने को बाध्य नहीं होगा जो पहले ही भारत का राष्ट्रगान गाकर फ़िल्म देखनेवाला है?

7 सिनेमा घरों में राष्ट्रगान की अनिवार्यता को क्या बाया न्यायालय अंधराष्ट्रवाद की दिशा में गतिमान फ़िल्म उद्योग की तरह देखा जा सकता है? देखा जाना चाहिए?

ये कुछ सवाल हैं जिनके उत्तर तलाशने की कोशिश की जा सकती है। साथ ही यह भी सोचा जा सकता है कि कहीं राष्ट्रीय महत्त्व के सभी धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक स्थलों पर भी दिन की शुरुआत से पहले ही सही राष्ट्रगान करवाये जाने की मांग तो ज़ोर नहीं पकड़ लेगी? क्या यह मांग भी ऐसी ही आलोचना को प्राप्त होगी जैसे यह न्यायालय का आदेश? न्यायालयीन आदेश के प्रति सम्मान सहित उपर्युक्त कुछ सवाल स्वस्थ बातचीत हेतु निवेदित हैं।

शशिभूषण

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