शनिवार, 10 दिसंबर 2016

काश, भारत के पास तमिलनाडु जैसा दिल और सादगी होते



मैं लगभग तीन साल तमिलनाडु में रहा हूँ।

भारत के इस राज्य में ऐसी अनगिनत बातें देखी हैं मैंने जिनसे कोई साधारण नागरिक अपनी राज्य सरकार से सचमुच का प्रेम कर सकता है।

मैंने 4 रुपये के किराए में 22 किलोमीटर का सफ़र समय से चलनेवाली सरकारी बस में किया है।

मैंने 25 रुपये में मुफ्त RO वाटर के साथ वह खाना खाया है जिसके साथ 2 केले भी मिलते थे और जो उत्तर भारत में 150 रुपये में भी नहीं खाया जा सकता।

कल से आज तक जयललिता के प्रति उमड़ा हुआ प्रेम बहुत स्वाभाविक है। इसकी लकीर टीवी तक ही नहीं है वह दिलों में बहुत पीछे से आगे तक जाती है।

तमिलनाडु के लोग भारत में किसी राज्य के लोगों से अधिक मेहनती, खरे और सबसे कम दिखावटी हैं। सादगी और सम्पन्नता का योग देखना हो तो तमिलनाडु से बेहतर राज्य नहीं हो सकता।

मेरे मन के एक कोने में अब भी यह अरमान पलता है कि तमिलनाडु में रहने का फिर अवसर मिले। जबकि मुझे न तमिल आती है न वहां की गर्मी सूट करती है। मेरे सर के बाल झड़ने लगे थे और तमिल न जानने के कारण अनगिनत बार रुआंसा हुआ था।

फिर भी एक नागरिक के रूप में इससे बड़ी आश्वस्ति नहीं होती कि आपके साथ जानबूझकर बुरा नहीं किया जायेगा।

मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि हिंदी मीडिया खासकर टीवी बिना किसी किंतु परंतु के दो तीन हिंदी भाषी राज्यों की फूहड़ डफली है। जिसके सामने न नेताओं का आदर्श है न भाषा का। सच्चाई का तो छोड़ ही दीजिये।

हिंदी टीवी को जयललिता के प्रति लोगों का प्रेम समझने के लिए एक लंबा वक्त चाहिए। जिसमें विनम्रता और तर्क के लिए सचमुच की जगह हो। इसे ऐसे पुष्ट मानिये कि उसे यही पता नहीं चल पा रहा है कि जयललिता वास्तव में अभी कैसी हैं?

काश, भारत के पास तमिलनाडु जैसा दिल और सादगी होती।

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मैं एक बार फिर याद करना चाहता हूँ और दोहराना चाहता हूँ कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं में मां को अम्मा कहते हैं।

अम्मा, माँ जैसा महसूस करने पर ही किसी स्त्री के लिए लगातार की ज़बान में आ सकता है। एक दो बार किसी उम्र दराज स्त्री को अम्मा कहा जा सकता है। लेकिन बिना भावना के हमेशा, कभी नहीं।

मैं कामना करता हूँ कि यह स्मृति मिटने न पाए कि तमिल नाडु की जनता जयललिता नाम की एक नेत्री को अम्मा कहती थी।

अम्मा का संबोधन एक स्त्री नेत्री ने राजनीति में रहते जीकर, संभव कर दिखाया इसे याद रखा जाना चाहिए। हमेशा।

अब जब जयललिता, अपने लिए प्रकृति से तय जीवन जीकर जा चुकी है उनके लिए हमारी श्रद्धांजलि में स्मृति को अक्षुण रखने का संकल्प अवश्य होना चाहिये।

श्रद्धांजलि
नमन

 शशिभूषण

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