शनिवार, 10 दिसंबर 2016

कथित लेखन

काग़ज़ के फूल फ़िल्म जिन्होंने देखी है उन्हें बेहतर मालुम होगा कि सिनेमा में काम करने की क्या क़ीमत चुकानी पड़ती थी।

जिन्होंने कक्षाओं से भागकर फ़िल्म देखीं और मार खायी वे बेहतर जानते हैं कि सब कुछ श्रेष्ठ कक्षाओं में ही नहीं सिखाया जाता।

संगीतकार नौशाद के पिता जिन्होंने बेटे का इनाम में मिला हारमोनियम तोड़ दिया था और कभी न गाने बजाने की हिदायत दी थी हो सकता है पछताए भी न हों।

लेखक प्रह्लाद अग्रवाल को श्रृंगार रस के उदाहरण में शैलेंद्र की पंक्तियां सुना देने के कारण जब उनके शिक्षक ने बेंच पर खड़ा रखा तब विद्यार्थी के भविष्य का अनुमान करना शिक्षा का अंग शायद न रहा हो।

टेलीविजन का मज़ाक उड़ाने वाले। मोबाईल को तमीज़ से न बरत सकनेवाले जब फेसबुक या सोशल मीडिया को स्तरहीन मंच कहते हैं तो यह हंसने की बात नहीं। ऐसे ही किसी लक्षण को याद कर लेने का संकेत है।

ऐसे लोग बहुतायत में हैं। इनके पास बेशुमार आशीर्वाद तो है ही श्रद्धा भी अपरिमित है। अतीत के सबसे विरल विवेचक होने के साथ ये भविष्य दृष्टि के भी एकमात्र ही हैं। ये अपने मंचों के अध्यक्ष, उद्घोषक, संयोजक, प्रस्तावक और पुरस्कर्ता सब हैं।

ये किसी टाइप की हुई रचना को यह कहकर भी डस्टबिन में फेंक सकते हैं कि टाइप कर देने से लाइनें कविता या कहानी नहीं हो जातीं।

इनका तकनीकि ज्ञान अदभुत होने का पता तब चलेगा जब ये आमंत्रित रचना के लिए फॉण्ट भी बता देंगे। आप कहें कि यूनिकोड को बदला जा सकता है दूसरे फॉण्ट में तो समझिए आप निरे फेसबुकिया हैं।

कर के दीजिये जो कहा जा रहा वरना कतार में दूसरा भी है ही।

अहिंसक संघर्ष, विनम्र विरोध और कथित जैसे हथियारों से किसी को भी परास्त कर देने के उत्साह से लबरेज़ इन्हें गौर से देखेंगे तो सामंतवाद के कीचड़ में सने हुए ये शास्वत कृतियां रचनेवाले इसी पार्थिव शरीर के साथ लगभग अमर हो चुके दिखाई पड़ते हैं।

इनसे अगर यह वाक्य बोल दिया जाये कि हिंसा और आतंकवाद अक्सर अपरिभाषित ही रहते हैं। तो ये इतना अहिंसक मुस्कुराएँगे, ऐसी करुणा उलीच देंगे कि आप क्रूरता के पिछले सब उदाहरण भूल जाएं।

इनके शब्दों में श्रद्धेय की गलतबयानी भी श्रद्धेय होती है। नए का क्षोभ प्रकट करना भी हिंसा है। रही बात फेसबुक पर लिखने की तो यह है ही कथित लिखना।

लेकिन ऐसी हिकारतों ने भी हज़ारों को लेखक और पत्रकार बनाया है। आप देखते रहिये इतिहास में अपने लिए यह श्रेय भी ये न लिखवा जाएँ तो कहिएगा।

शशिभूषण

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