जब कोई त्यौहार आता है
दो बात ज़रूर होती हैं
लोग घर आते हैं
दाम बढ़ जाते हैं
जिनकी आमदनी कम होती है
त्यौहार पर पहले घबरा जाते हैं
औरतों, बच्चों के मुंह मुरझा जाते हैं
खेती, मज़दूरी वाले सपना देखते हैं
अधिक मिठाई ले लें
कपड़े जोड़े में मिल जाएं
मगर ऐसा नहीं होता
सामानों के बड़े बड़े विज्ञापन छपते हैं
लेकिन ज़रूरी चीजें दुर्लभ हो जाती हैं
सरकार सभी को शुभकामना देती है
होना यह चाहिए
तीज त्यौहार बस, ट्रेन में
थोड़ी जगह मिल जाये
खाने, पहनने की चीज़ें
मंहगी न होने पाएं
खुशियां रम जाएं
होता यह है
बाज़ारों में ख़ूब रौनक रहती है
बड़े व्यापारी अधिक कमाते हैं
छोटे लोग कर्ज़ में दब जाते हैं
क्या ऐसी सरकार कभी आएगी?
जो विज्ञापन नहीं दिया करेगी
इकलौता धरम नहीं किया करेगी
विकास का भरम नहीं भरेगी
केवल बधाई देने की बजाय
ईद, दीवाली, क्रिसमस सब पर
महंगाई कम कर दिया करेगी?
शशिभूषण
दो बात ज़रूर होती हैं
लोग घर आते हैं
दाम बढ़ जाते हैं
जिनकी आमदनी कम होती है
त्यौहार पर पहले घबरा जाते हैं
औरतों, बच्चों के मुंह मुरझा जाते हैं
खेती, मज़दूरी वाले सपना देखते हैं
अधिक मिठाई ले लें
कपड़े जोड़े में मिल जाएं
मगर ऐसा नहीं होता
सामानों के बड़े बड़े विज्ञापन छपते हैं
लेकिन ज़रूरी चीजें दुर्लभ हो जाती हैं
सरकार सभी को शुभकामना देती है
होना यह चाहिए
तीज त्यौहार बस, ट्रेन में
थोड़ी जगह मिल जाये
खाने, पहनने की चीज़ें
मंहगी न होने पाएं
खुशियां रम जाएं
होता यह है
बाज़ारों में ख़ूब रौनक रहती है
बड़े व्यापारी अधिक कमाते हैं
छोटे लोग कर्ज़ में दब जाते हैं
क्या ऐसी सरकार कभी आएगी?
जो विज्ञापन नहीं दिया करेगी
इकलौता धरम नहीं किया करेगी
विकास का भरम नहीं भरेगी
केवल बधाई देने की बजाय
ईद, दीवाली, क्रिसमस सब पर
महंगाई कम कर दिया करेगी?
शशिभूषण
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