विद्यालयों में आमतौर पर 'सुरक्षा' जैसी किसी व्यवस्था की बात छोड़िये अवधारणा भी नहीं पायी जाती।
कोई भी, कभी भी चाहे तो आ सकता है चाहे तो घुस सकता है। सांप से लेकर चाकू तक विद्यालयों में सबका डर होता है।
बिना भवन के, बिना बाउंड्री वाल के, बिना सुरक्षा कर्मियों के, पानी-बिजली, टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना परीक्षा के आयोजन जैसी बातों को सुरक्षा पहलुओं के अंतर्गत तो तब गिना जायेगा जब विद्यार्थियों द्वारा आम शैक्षणिक दिनों में गोली मार देने को ही गंभीरता से ले लिया जाये।
विद्यालयों में अपराधियों जैसे विद्यार्थियों के लिए हत्या कर देने से रोक लेने के न्यूनतम इंतज़ाम, व्यवस्था क्या किये जा सकेंगे जब अपराधियों को भी विद्यालय संचालित करने के अधिकार और सुविधा हों।
मध्य प्रदेश के जावरा स्थित विद्यालय में पिस्तौल से 9 वीं के विद्यार्थी द्वारा जनलेवा हमले में गंभीर रूप से घायल इस संचालक के लिए गहरा दुख है। मेरी दुआएं! शिक्षा के लिए यदि आपके दिल में कोई उम्मीद हो तो उसे ज़रूर सम्हालकर रखिये। अधिक से अधिक लोग निराश हो चले हैं।
याद रखिये इस उपभोक्तावादी शिक्षा समय में सबसे अधिक ख़तरा सरकारी शिक्षण संस्थाओं में है। सिर्फ़ सवाल आते हैं। झाँकने कोई नहीं आता।
अफ़सोस!!!...
शशिभूषण
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