जो एक चींटी नहीं मार सकते। जिन्होंने खुद को तपाकर और रात दिन मेहनत करके केवल अपनी समझ बढ़ायी। जिनके सपने और योजना में अपने लिये महल दुमहले नहीं रहे। सभी की बराबरी, हक़ और न्याय के लिए संघर्षरत हैं।
जिन्होंने कभी किसी के बहुत कठोर लहज़े, बड़ी बदसलूकी के जवाब में भी मुस्कराहट नहीं छोड़ी विनम्रता से यही कहा कि आप अपनी समझ दुरुस्त कर सकते हैं। जिन्होंने अपनी बीमारी, घर, परिवार या तरक्की के बारे में ही सोचकर वक़्त जाया नहीं किया।
जो इस कार्पोरेट और एनजीओ समय में भी प्रतिबद्ध, ईमानदार और समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ऐसे मध्य प्रदेश प्रलेसं के महासचिव विनीत तिवारी सहित डीयू की प्रोफेसर नंदिनी सुन्दर, जेएनयू की प्रोफ़ेसर अर्चना प्रसाद एवं अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं, शोध-अध्ययन में लगे लोगों को छत्तीसगढ़ की पुलिस ने हत्या की और अन्य आपराधिक धाराओं में बुक किया है।
यह किस तरह कभी सच न होनेवाला इरादतन आरोप है यह सोचकर दिल दहल जाता है।
सचमुच के अपराधों में संलिप्त जब चुनाव जीत रहे हों तब इसी बात से दिल मायूस होता है कि जो ग़लत नहीं होंगे क्या वही सताए जायेंगे? सर्वविदित है कि आरोपी कार्यकर्त्ता माओवादी हिंसा और सलवा जुडूम दोनों के विरुद्ध रहे हैं। सरकार और जनता दोनों को शांति और राजनीतिक सुधारों के लिए संबोधित करते रहे हैं। जब इनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे भी खटखटाये गए तो उसका मकसद अमन, शिक्षा और सुरक्षा की बहाली था।
ये किस युग में आ गए हैं हम जब इंसानों की बेहतरी के लिए जी रहे लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाकर ख़त्म करने की साज़िश रची जा रही हैं। पुलिस का इस हद तक स्वेच्छाचारी होते जाना खतरनाक है।
यदि ऐसी साज़िशें सफ़ल हो गईं तो यही याद रखा जायेगा हम सबसे अत्याचारी लोकतान्त्रिक समय में जिए थे। हम निरुपाय थे। केवल दुखी हो सकते थे और मातम मना सकते थे।
जबकि ज़िंदा होने का हमने एक ही सबक याद किया था और अपना फ़र्ज़ समझा है कि हम दुनिया की बेहतरी के लिए जियेंगे। सबके लिए बराबर दुनिया की कल्पना करेंगे। सबसे ऊपर इंसानों को रखेंगे।
अपनी पूरी इंसानी सामर्थ्य के साथ मैं उम्मीद करता हूँ कि झूठे आरोप अंत में झूठ ही बचेंगे।
"ये दिन भी जायेंगे गुज़र
गुज़र गए हज़ार दिन"
शशिभूषण
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