शनिवार, 10 दिसंबर 2016

भाषा का छप्पन भोग

छप्पन भोग सुना होगा आपने। छप्पन भोग की थाली में स्वाद के सब रस होते हैं। कड़वा, कसैला, तीखा और खारा आदि।

छप्पन भोग से बड़ी मेज़बानी क्या होगी? लेकिन छप्पन भोग जिमानेवाले मेज़बान की एक बड़ी मुश्किल होती है।

अतिथि खा सकने की स्थिति में नहीं होते। मेज़बान को असल पुन्न और संतोष कुत्तों को जूठन खिलाने का ही मिल पाता है।

आप गौर से देखिये कुछ लेखक बनने चले व्याकुल टीकाकार भाषा का छप्पन भोग परोसते चलते हैं।

ऐसी टीकाओं में निंदा, प्रशंसा, आह्लाद और अवसाद सहित सभी मनोविकार एक ही स्थान पर मिल जाते हैं।

बधाई हो बधाई का नाच हो या नाश होगा नाश का नृत्य सब। सब, मने सब।

जनता हो या राजा सबका ख्याल रखा गया होता है। सबका मने सबका।

इसे कहते हैं भाषा का छप्पन भोग।

शशिभूषण

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