गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

राष्ट्रीयता



आँधी आने के आसार थे। सालों बाद मैं घर से लगे खेत पर था। बड़ी-बड़ी सींगों वाली एक भारी भरकम सफ़ेद गाय बाड़ तोड़ती हुई तेज़ी से घुस आयी। उसकी मोटी-मोटी काली सींगों पर पुआल का गट्ठर टँगा था। लगता था गाय उसी लदे गट्ठर को सींग से गिराने-झटकारने बेचैन-हिंसक भाग-दौड़ रही है। गाय दौड़ती हुई महीनों से रखे बबूल की शाखों के परतदार ढेर जिसे मेरी मातृभाषा में 'जरबा' कहा जाता है को ठेलती हुई आगे बढ़ने लगी।

आँधी आ गयी। गाय का वेग तूफ़ानी था। आसमान में गड़गड़ाहट और बिजली चमकना तीव्र हो चले थे। ऊँचे-ऊँचे पेड़ इतना अधिक हिल रहे थे कि लगता था उखड़ जाएंगे। चारों तरफ़ धुंआ, धूल छाए थे। सहसा गाय जरबा उलझारकर बस्ती में घुस गयी। उसकी दौड़ और ताक़त के ज़ोर तथा सींगों के हमले से दीवारें छप्पर गिरने लगे। गाय में असीम शक्ति थी। वह जिधर टूट पड़ती उधर ही सब ढह जाता। हाहाकार मच जाता। औरते और बच्चे डर के मारे रोने चीख़ने लगते। मवेशी खूंटा तुड़ाकर भागने लगते।

मैंने क्या किसी ने अब तक किसी गाय को ऐसी अपरिमित शक्तिशाली, आक्रांता और विनाशकारी नहीं देखा था। शक़ होता था गाय की शक़्ल में यह इस्पात और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बनी कोई विध्वंसक मशीन है। जैविक श्रद्धेय बुलडोजर। उसकी हाड़ मांस की विशाल पीठ पर लिखा था - 'भारत माता की जय'। वह किसी रिमोट से संचालित यहां घुस आयी थी। नियंत्रित ढंग से बेक़ाबू चल रही थी। लोग बेहाल थे मगर गाय को रोक पाने में अक्षम। खूँटे में बंधी घरेलू वास्तविक गइयाँ भयातुर थीं। उन्होंने अपना यह अवतार पहली बार देखा था। 

मैं गाय के इस विनाशक प्रलयंकारी रूप से त्रस्त और भयग्रस्त था। मां ने मुझे विकल भयभीत निरुपाय देखकर कहा- डरो मत। गाय का विनाश कुछ भी नहीं। आसमान की ओर देखो वहां कुछ लिखा है। मैं पढ़ नहीं सकती। तुम बाँच सकते हो। उस शब्द का अरथ लगाओ। जितना जल्दी हो सके सबको बताओ और सब एक दूसरे का हाथ पकड़कर शैतान गाय की उल्टी दिशा में भागो। मैंने डरकर आसमान देखा। आकाश क्रोध से लाल था। इस तरह क़रीब झुक आया था जैसे ज्वार भांटे वाले भयंकर समुद्र को उल्टा लटका दिया गया हो। चाँद आसमान से भी लाल था। वह बुरी तरह हिल रहा था। लगा थर थर काँप रहा है। मानो आसमान से उसके पैर उखड़ गये हैं। वह टूटकर अभी धरती पर गिर जाएगा। 

मैंने देखा अंतरिक्ष में सब ओर बेताल की तरह एक शब्द उल्टा लटका है - नागरिकता। मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। नागरिकता शब्द इतना भयानक कैसे हो गया ? महीने भर पहले हो चुके एनआरसी में मेरी राष्ट्रीयता सिद्ध हो चुकी थी। मुझे किस बात की अड़चन ? डर और भागने की विवश कोशिश में मेरी नींद टूट गयी। मुझे राहत मिली। अपार ख़ुशी हुई- ओह ! यह सपना था। 

बेटी ऊपर की बर्थ पर आकर मुझे झकझोर रही थी- पापा क्या हुआ ? मैंने उसे पूरा सपना सुनाया। बोला - चलती ट्रेन में सपना देखो तो चाँद हिलता है। बेटी ने चहककर कहा - वाह पापा ! आपने चाँद सपने और ट्रेन के रिलेशन की खोज कर ली आप साइंटिस्ट हैं। हम दोनों हँस पड़े। थोड़ी देर में फिर नींद आ गयी। हमारा गंतव्य अभी घंटों दूर था।

- शशिभूषण

बुधवार, 25 दिसंबर 2019

कंगना में टैलेंट है वे पायल रोहतगी क्यों होना चाहती हैं ? 



हर दौर में कुछ ऐसी प्रतिभाएं होती हैं जो अपनी लोकप्रियता के सिक्कों को राजनीतिक चाटुकारिता के मंच की सीढ़ियों पर चढ़ा देती हैं। सतही लेखन के चैंपियन चेतन भगत के बाद कंगना राणावत ऐसी ही फ़िल्मी हस्ती हैं। यद्यपि चेतन भगत जो हमेशा लोकप्रियता के ग्राफ़ को देखते सम्हालते मैनेज करते चलते हैं इन दिनों सीएए के विरोध में विद्यार्थियों के आंदोलन को भांपकर सरकार के प्रति थोड़े आलोचनात्मक दिखने की कोशिश में लग गये हैं। शायद उन्हें अंदाज़ा है कि युवा ही उनका असल पाठक है। सी ए ए के विरोध आंदोलन का नेतृत्वकर्ता युवा ही है। लेकिन कंगना राणावत कदाचित अभी भी उस मानसिकता की शिकार हैं जिसमें युवा वर्ग को उग्र, भटक जाने वाला और राजनीतिकों द्वारा इस्तेमाल का बड़ा वर्ग माना जाता है। इसी मानसिकता का दोहन करते हुए सिस्टम के सुर में सुर मिलाना फायदेमंद हो सकता है। 

यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि कंगना राणावत उन सेलेब्रिटीज़ में से एक हैं जो पायल रोहतगी से थोड़ा अधिक जानकार हैं। थोड़ी अधिक कलाकार दिखती हैं। जिन्हें रजत शर्मा जैसे व्यवस्था पोषित पत्रकारों का स्वाभाविक संरक्षण मिल जाता है। कंगना हाल के एक विचित्र साक्षात्कार में अपने प्रोफ़ेशनल भोलेपन के साथ यह समझती कहती प्रतीत होती हैं कि कुछ परसेंट लोग ही इस देश में टैक्स देते हैं। बाक़ी लोग जिन्हें वह दयापूर्वक ग़रीब कहती हैं उनके जैसे हितकारी टैक्सपेयर की टैक्स कृपा पर जीते हैं। अब अगर एनआरसी और सी ए ए के विरोध आंदोलनों में पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान हो जाएगा तो ग़रीब देशवासियों का क्या होगा ? मानो विश्विद्यालयों के आंदोलनकारी युवा और नागरिक पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान करने के लिए ही विरोध आंदोलन कर रहे हैं। फिल्मी टैलेंट होने के बावजूद कंगना राणावत को इतना भी मालूम नहीं है कि केवल आय का टैक्स नहीं लगता बल्कि वस्तुओं पर भी टैक्स देना पड़ता है। अगर कंगना किसी रेस्टोरेंट में ताज़ी इडली की एक प्लेट का इलेक्ट्रॉनिक बिल भी देखने लायक कष्ट उठा सकें तो उन्हें मालूम चल जाएगा कि आजकल उसमें भी जीएसटी काटा जाता है। खैर,

अभी आते हैं कंगना राणावत द्वारा किये जा रहे सीएए के विरोध में हो रहे देशव्यापी आंदोलन के विरोध पर। क्या कंगना राणावत बता सकती हैं कि भारत में इतना अबोध कौन सीएए विरोधी आंदोलनकारी युवा या स्टूडेंट है, होगा जो इतना भी नहीं जानता कि सीएए नागरिकता लेने का नहीं नागरिकता देने का क़ानून है ? फिर सवाल उठता है वह सीएए का विरोध क्यों करता है ? वह एक दिन सी ए ए को एनआरसी से जोड़ दिए जाने की आशंका से क्यों आंदोलित है ? क्या किसी क़ानून का विरोध करने वाला इतना नासमझ हो सकता है कि वह क़ानून का विरोध करते हुए उसमें हिंसा करने के दुष्परिणाम को न समझे ? क्या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर कभी सरकारों को झुकाया जा सकता है ? क्या अब भारत के आंदोलनकारियों के पास कंगना राणावत जितनी बुद्धि, अनुशासन और शांति नहीं बचे हैं ? फिर कंगना राणावत टैक्स का उपदेश किसे देना चाहती हैं ? कंगना के राजनीतिक मकसद पिछले कुछ सालों से साफ़ रहे हैं इसलिए मूल विषय पर आते हैं। 

सीएए का विरोध करने का एक ही कारण है कि यह क़ानून भारत के तीन पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने के सम्बंध में धर्म का विचार करता है। इन धर्मों पर विचार करते हुए वह एक ख़ास धर्म इस्लाम को छोड़ देता है। भारत के मौजूदा संविधान के अनुसार भारत की नागरिकता का आधार सेक्युलर है। अभी तक किसी को भी भारत का नागरिक होने के लिए उसका किसी धर्म का इंसान होना मायने नहीं रखता था। प्रावधान था कि किसी को भी नागरिकता देते हुए यह नहीं इंकार किया जाएगा कि माफ़ करना तुम इस धर्म के हो। नागरिकता देने में इसी उदारता का हामी है भारत का संविधान। कोई भी मनुष्य हो अगर वह भारत की नागरिकता के लिए आवेदन करता है या उसे नागरिकता देने पर विचार किया जाता है तो केवल यह देखा जाएगा कि उसे नागरिकता दी जा सकती है या नहीं यह नहीं देखा जाएगा कि वह किस धर्म का है ? 

कंगना राणावत को आय पर टैक्स से ऊपर जाकर अपनी समझ को दुरुस्त करना चाहिए। वे अभी कम समझती हैं तो इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि वे मूर्ख हैं या आगे समझने की कोशिश भी नहीं कर सकतीं। हम जानते हैं कि वे शबाना आज़मी जैसी महान अभिनेत्री नहीं हो सकतीं फिर भी हमें दुःख होता है कि कंगना राणावत अपने स्तर को पायल रोहतगी तक क्यों ले जा रही हैं ? उनमें टैलेंट है इससे किसे इंकार होगा ? 

- शशिभूषण