हर दौर में कुछ ऐसी प्रतिभाएं होती हैं जो अपनी लोकप्रियता के सिक्कों को राजनीतिक चाटुकारिता के मंच की सीढ़ियों पर चढ़ा देती हैं। सतही लेखन के चैंपियन चेतन भगत के बाद कंगना राणावत ऐसी ही फ़िल्मी हस्ती हैं। यद्यपि चेतन भगत जो हमेशा लोकप्रियता के ग्राफ़ को देखते सम्हालते मैनेज करते चलते हैं इन दिनों सीएए के विरोध में विद्यार्थियों के आंदोलन को भांपकर सरकार के प्रति थोड़े आलोचनात्मक दिखने की कोशिश में लग गये हैं। शायद उन्हें अंदाज़ा है कि युवा ही उनका असल पाठक है। सी ए ए के विरोध आंदोलन का नेतृत्वकर्ता युवा ही है। लेकिन कंगना राणावत कदाचित अभी भी उस मानसिकता की शिकार हैं जिसमें युवा वर्ग को उग्र, भटक जाने वाला और राजनीतिकों द्वारा इस्तेमाल का बड़ा वर्ग माना जाता है। इसी मानसिकता का दोहन करते हुए सिस्टम के सुर में सुर मिलाना फायदेमंद हो सकता है।
यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि कंगना राणावत उन सेलेब्रिटीज़ में से एक हैं जो पायल रोहतगी से थोड़ा अधिक जानकार हैं। थोड़ी अधिक कलाकार दिखती हैं। जिन्हें रजत शर्मा जैसे व्यवस्था पोषित पत्रकारों का स्वाभाविक संरक्षण मिल जाता है। कंगना हाल के एक विचित्र साक्षात्कार में अपने प्रोफ़ेशनल भोलेपन के साथ यह समझती कहती प्रतीत होती हैं कि कुछ परसेंट लोग ही इस देश में टैक्स देते हैं। बाक़ी लोग जिन्हें वह दयापूर्वक ग़रीब कहती हैं उनके जैसे हितकारी टैक्सपेयर की टैक्स कृपा पर जीते हैं। अब अगर एनआरसी और सी ए ए के विरोध आंदोलनों में पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान हो जाएगा तो ग़रीब देशवासियों का क्या होगा ? मानो विश्विद्यालयों के आंदोलनकारी युवा और नागरिक पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान करने के लिए ही विरोध आंदोलन कर रहे हैं। फिल्मी टैलेंट होने के बावजूद कंगना राणावत को इतना भी मालूम नहीं है कि केवल आय का टैक्स नहीं लगता बल्कि वस्तुओं पर भी टैक्स देना पड़ता है। अगर कंगना किसी रेस्टोरेंट में ताज़ी इडली की एक प्लेट का इलेक्ट्रॉनिक बिल भी देखने लायक कष्ट उठा सकें तो उन्हें मालूम चल जाएगा कि आजकल उसमें भी जीएसटी काटा जाता है। खैर,
अभी आते हैं कंगना राणावत द्वारा किये जा रहे सीएए के विरोध में हो रहे देशव्यापी आंदोलन के विरोध पर। क्या कंगना राणावत बता सकती हैं कि भारत में इतना अबोध कौन सीएए विरोधी आंदोलनकारी युवा या स्टूडेंट है, होगा जो इतना भी नहीं जानता कि सीएए नागरिकता लेने का नहीं नागरिकता देने का क़ानून है ? फिर सवाल उठता है वह सीएए का विरोध क्यों करता है ? वह एक दिन सी ए ए को एनआरसी से जोड़ दिए जाने की आशंका से क्यों आंदोलित है ? क्या किसी क़ानून का विरोध करने वाला इतना नासमझ हो सकता है कि वह क़ानून का विरोध करते हुए उसमें हिंसा करने के दुष्परिणाम को न समझे ? क्या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर कभी सरकारों को झुकाया जा सकता है ? क्या अब भारत के आंदोलनकारियों के पास कंगना राणावत जितनी बुद्धि, अनुशासन और शांति नहीं बचे हैं ? फिर कंगना राणावत टैक्स का उपदेश किसे देना चाहती हैं ? कंगना के राजनीतिक मकसद पिछले कुछ सालों से साफ़ रहे हैं इसलिए मूल विषय पर आते हैं।
सीएए का विरोध करने का एक ही कारण है कि यह क़ानून भारत के तीन पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने के सम्बंध में धर्म का विचार करता है। इन धर्मों पर विचार करते हुए वह एक ख़ास धर्म इस्लाम को छोड़ देता है। भारत के मौजूदा संविधान के अनुसार भारत की नागरिकता का आधार सेक्युलर है। अभी तक किसी को भी भारत का नागरिक होने के लिए उसका किसी धर्म का इंसान होना मायने नहीं रखता था। प्रावधान था कि किसी को भी नागरिकता देते हुए यह नहीं इंकार किया जाएगा कि माफ़ करना तुम इस धर्म के हो। नागरिकता देने में इसी उदारता का हामी है भारत का संविधान। कोई भी मनुष्य हो अगर वह भारत की नागरिकता के लिए आवेदन करता है या उसे नागरिकता देने पर विचार किया जाता है तो केवल यह देखा जाएगा कि उसे नागरिकता दी जा सकती है या नहीं यह नहीं देखा जाएगा कि वह किस धर्म का है ?
कंगना राणावत को आय पर टैक्स से ऊपर जाकर अपनी समझ को दुरुस्त करना चाहिए। वे अभी कम समझती हैं तो इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि वे मूर्ख हैं या आगे समझने की कोशिश भी नहीं कर सकतीं। हम जानते हैं कि वे शबाना आज़मी जैसी महान अभिनेत्री नहीं हो सकतीं फिर भी हमें दुःख होता है कि कंगना राणावत अपने स्तर को पायल रोहतगी तक क्यों ले जा रही हैं ? उनमें टैलेंट है इससे किसे इंकार होगा ?
- शशिभूषण
शशि भाई,कंगना एक अच्छी अभिनेत्री है ।परेश रावल और अनुपम खेर अच्छे अभिनेता हैं ।मंच के लिए किसी अन्य के लिखे संवादों को पढ़कर या उसके अनुरूप अच्छा,प्रभावी अभिनय करके आप अच्छे समझदार और लोकतंत्र में विश्वास करने वाले मनुष्य हो जाएं यह आवश्यक नहीं है।फिल्मी दुनिया में बहुत सारे लिजलिजे लोग हैं जो व्यावसायिक दृष्टि से बहुत सम्पन्न भी हैं।आपकी मेधा,ताकत और चरित्र समाज के लिए हितकारी हो यह सफल व्यक्ति होने/कहे जाने की अनिवार्य शर्त नहीं है ।
जवाब देंहटाएंकमलाकांत जी आपसे सहमत हूँ।
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