सभी विद्यालयों के विद्यार्थियों की तरह केंद्रीय विद्यालय, शाजापुर के विद्यार्थी भी बड़े सरल और सच्चे हैं। ऐसे अच्छे अच्छे काम करते हैं कि मन भर आता है। गर्व से भी भर जाता है।
पिछले डेढ़ साल में देखा है कि कभी-कभी सप्ताह में दो से तीन बार तक विद्यार्थी आ आकर खोई हुई वस्तुएं सौंपते हैं। इन खोयी पायी चीजों में छोटे-मोटे सामान के आलावा एक रुपये से लेकर सौ दो सौ रुपये तक होते हैं।
बड़े सामान यथा चेन, अंगूठी, चाभी, बॉटल, घडी आदि अगले दिन ही प्रातःकालीन सभा में जिसके हैं उसे लौटा दिए जाते हैं। सबसे अधिक मुश्किल आती है एक, दो या पांच रुपये के सिक्कों के साथ।
विद्यार्थी जमा कर जाते हैं लेकिन लेने कोई नहीं आता। मन बहुत बड़ा हो जाता है कि कैसे सच्चे बच्चे हैं जिन्हें लालच नहीं डिगाता।
ऐसे इकठ्ठा होते-होते इस साल सौ रुपये हो गए। बड़ा उहापोह रहा कि इन रुपयों का क्या किया जाये? थे तो सौ रुपये ही लेकिन लगता था बड़ी भारी पूंजी है। बच्चों की नेकी की जमा पूंजी।
सोचते-सोचते विचार आ ही गया कि क्यों न इन रुपयों में कुछ रुपये मिलाकर एक किताब खरीदी जाये और उसे बतौर निशानी पुस्तकालय में रखा जाये।
इस तरह तय हुआ और डॉ योगेंद्र की शिक्षा पर केंद्रित अंतिका प्रकाशन से प्रकाशित किताब 'जस देखा तस लेखा' हाथ आई।
किताब आई तो संयोग से एक शानदार सालाना मौका भी आ गया। केविसं भोपाल संभाग के वरिष्ठ सहायक आयुक्त सुनील श्रीवास्तव विद्यालय आये। उनके साथ थे प्राचार्य प्रमोद पराते, जयश्री गुप्ता और प्रधान अध्यापिका रूपाली यादव।
सहायक आयुक्त के हाथों यह किताब विद्यालय के पुस्तकालय को सौंपी गयी। चित्र में प्राचार्य अतुल व्यास और लाइब्रेरियन ब्रह्मदेव गौड़ किताब प्राप्त कर रहे हैं।
उम्मीद है विद्यार्थियों की यह अच्छाई एक अच्छी किताब की शक्ल में विद्यालय को हमेशा आलोकित करती रहेगी। मैं मंच से कही हुई अपनी बात दोहराना चाहूंगा:-
मारनेवाले से बचाने वाला बड़ा कहा गया है
इसी तरह खोनेवाले से पानेवाला बड़ा होता है
लेकिन सबसे बड़ा होता है
खोए को पाकर लौटा देनेवाला
शुक्रिया विद्यार्थियो!!!...
शशिभूषण
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