शनिवार, 10 दिसंबर 2016

माँ कहाँ जाएँ? कौन न्याय दिलाए??

इन्हें देखिये। देखा ही होगा। मां हैं दोनों। दुःख की मूरत।

एक के बेटे का नाम नजीब। दूसरे का बेटा रोहित।

रोहित अब इस दुनिया में कभी नहीं आएगा। नजीब के बारे में किसी को नहीं मालुम वह कहाँ है? उसके साथ वास्तव में क्या हुआ है??

इनमें यह उभयनिष्ठ है कि इनके बेटों के साथ वह हुआ जो किसी इंसान के साथ नहीं होना चाहिए। मां के रूप में किसी को यह दिन न देखने पड़ें!!!

एक मां सामाजिक रुप से दलित पहचान रखती है। दूसरी मुसलमान की।

यह संयोग भी हो सकता है। लेकिन दो मांओं का इस तरह एक साथ बैठना विवशताओं की दारुण परिणति है। इनमें से कौन किसे क्या हौसला दे?

कौन सी उम्मीद है इनके पास? सिवा इसके कि ये उन 29 लापता फौजियों की मां से अधिक प्यारी और हौसलामंद हैं जो विमान सहित महीनों से लापता हैं।

एक तो मां होना। दूसरे अपने बेटे के लिए ऐसी लड़ाई लड़ने को मजबूर होना। इससे बड़ी बात नहीं।

इनके बच्चे पढ़ने आये थे। देश के सबसे अच्छे संस्थानों में प्रवेश पाया था। अपने बल पर। एक हैदराबाद में मारा गया दूसरा दिल्ली से गुम है।

ये दोनों घर में उनकी वापसी का इंतज़ार करते-करते यहाँ पहुँच गयी। दिल्ली। 

दिल्ली के बारे में कहा जाता है कि अब यहाँ सब कैमरे और वाई फाई की जद में है। परिंदों के उड़ान की भी निशानदेही हो सकती है दिल्ली में।

कहते हैं दिल्ली में दिलवाले बसते हैं। भारत का दिल धड़कता है दिल्ली में। भारत के मन में क्या है दुनिया को दिल्ली के मुंह से पता चलता है।

इन्हें अब तक कुछ भी ठीक ठाक नहीं बताया जा सका है। इन दोनों के तक़लीफ़ भरे चेहरे सवाल करते हैं।

भारत, हमने अपने कलेजे के टुकड़े भेजे थे तुम्हारे दिल के क़रीब तुमने हमें तख्तियां पकड़ा दी। 

क्यों ? हम कहाँ जाएँ?? कौन हमें न्याय दिलाये???
(नोट: इस पोस्ट का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। फोटो सुयश सुप्रभ जी की वाल से साभार!)

शशिभूषण

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