शनिवार, 10 दिसंबर 2016

महाकवि

ABP न्यूज़ पर प्रसारित हो रहा कार्यक्रम 'महाकवि' गंभीर हो सकता था। लेकिन नहीं भूलना चाहिए बागडोर ही मनोरंजन प्रधान हाथों में है।

मां हिंदी, मां गंगा, मां भारती जैसी कृत्रिम कृतज्ञता से भरा कुमार विश्वास का गायन निराश कर गया। एक बात हल्की लग सकती है लेकिन कह देना चाहिए सबको मां का मान दे रही कुमार विश्वास की सहृदयता भारत के धार्मिक शहरों में पायी जानेवाली शत शत नमन और कोटि कोटि प्रणाम श्रेणी की ही है।

वंदन और अभिनन्दन से शुरू होने वाली श्रद्धा अब अजीब लगती है। कह सकते हैं हम जैसों के संस्कार ही बिगड़े हुए हैं। पूजन अर्चन की शब्दावली संदिग्ध लगती है।

रामधारी सिंह दिनकर की स्मृति और विवेचना के लिए मुझे कुमार विश्वास अपरिपक्व लगे। उन्हें सलाह देना तो छोटा मुंह बड़ी बात या सूरज को दिया दिखाना होंगे। लेकिन ABP की मां मनीषा से अनुरोध किया जा सकता है कि कम से कम हिंदी के इस नखरैल चिर कुमार को उदय प्रकाश की ही बनायीं साहित्यकारों पर फ़िल्म दिखाएँ।

वरना महाकवि दिनकर से शुरू हुए इस कार्यक्रम का अंत 'परशुराम की प्रतीक्षा' निबंध में होना तय है। लेकिन नए नए राष्ट्रवादी हो रहे चैनल को मंगला चरण गानेवाले प्रस्तोता से ओट लेने के लिए ही सही साहित्य की सुध लेने के लिए बधाई दी जा सकती है। अपने आचार्य रामपलट दास जी भी कह गए हैं बचे रहने के लिए थोड़ी लंठई ज़रूरी है।

रही बात देखने की तो मैं सारे एपिसोड देखूंगा। आप भी देख सकते हैं। मेरा यह देखना असल में बड़ा मित्रवत है। और लगे हाथ यह परखने का अवसर भी कि समकालीन राजधानी खबरिया हिंदी व्यावसायिकता पुराने कवियों को कैसा अंजाम देती है।

याद रहे ठीक एक साल पहले ABP न्यूज़ में हिंदी के साहित्यकार सम्मान लौटाने पहुँच रहे थे।

शशिभूषण

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