कल एक पुराने साथी मिल गए। राम राम हुई तो उन्होंने बुला लिया। पान लगाने का आदेश दिया और मेरा बैग अपने बेंच पर रख लिया। मैंने कहा जाने दीजिए। जल्दी है। शाम हो रही है। सुबह की तैयारी करनी है। छुट्टी के दिन आराम से बैठेंगे
मित्र नहीं माने। बैठना ही होगा। आदेश दिया। मैंने कहा बैठ तो जाऊं लेकिन बैठकर करूँगा क्या? मित्र बोले बात करेंगे। आपसे एक बात समझनी है। मैंने कहा आप चाहे जितनी बात समझे, समझ में तो आपके एक बात भी आएगी नहीं। मित्र बोले क्यों नहीं आएगी? आप अच्छा समझाते हैं मैंने पहले भी समझी हैं कई बातें। मैं आपकी इज्ज़त करता हूँ।
मैंने कहा पूछिये जल्दी, मुझे जाना है। मित्र बोले ये बताओ मुझसे किसी ने कह दिया तुम हिन्दू हो। अब मुझे उसकी बात काटनी है। समझ लीजिए काटनी है क्योंकि हिन्दू तो मैं हूँ ही तो मैं क्या जवाब दूँ?
मैंने कहा आप मत काटिये यह बात। खतरा है आजकल इसमें। बड़ा खतरा है। दुकान मिट सकती है आपकी। रोज़ी रोटी छिन सकती है। यदि आपने कहा कि मैं हिन्दू नहीं हूँ तो आपके साथ कुछ भी हो सकता है। आप गाय काट लीजिये। कसाईखाना खोल लीजिये। मंदिरों में तस्करी का सामान रख लीजिए लेकिन बात मत काटिये। खासकर हिन्दू होने वाली बात। बात काटी आपने की ज़बान कटी आपकी। कोई नहीं बचा पायेगा
मित्र ने कहा इतना कैसे सोच लेते हो यार। गजब है। बात को कहाँ से कहाँ पहुंचा देते हो। लेकिन अभी सिर्फ़ इतना बताओ कि मैं हिन्दू नहीं हूँ तो क्या जवाब दूँ? प्लीज् भाई।
मैंने कहा ठीक बात है। आप कहिये मैं बिज़नेस मैन हूँ। मैं हिन्दू नहीं हूँ। मित्र बोला इतने से मान जायेंगे? मैंने कहा न माने तो कहो गोडसे असल हिन्दू था। इससे क्या होगा? वह तो था ही। क्या मामूली बात कही आपने!
मैंने कहा मामूली ही तो बात है हिन्दू न होना। आप कहिये मैं मामूली आदमी हूँ। गोडसे असल हिन्दू था। कहाँ गोडसे कहाँ मैं? कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली। मुझे शर्मिंदा मत कीजिये। मैं हिन्दू नहीं हूँ। लेकिन आपने जबर्दस्ती की तो मैं जोर जोर से कहूंगा गोडसे असल हिन्दू नहीं था। उसने गांधी की हत्या की। असल हिन्दू मैं हूँ। असल हिन्दू गांधी था। मैं हूँ असल हिन्दू। मैं गांधी को मानता हूँ। अब या तो गोडसे को हिन्दू मानो या मुझे। दोनों नहीं रहेंगे। समझौता नहीं होगा। एक म्यान में ड़ो तलवार नहीं रहेंगी। फैसला होकर रहेगा। मैं हूँ असल हिन्दू। गोडसे नकली था। हत्यारा था।
मित्र ने कहा इतने से वे मान जायेंगे? यानी मैं असल हिन्दू नहीं हूँ इसलिए हिन्दू नहीं हूँ? या कि मैं ही असल हिन्दू हूँ?
मैंने कहा मान जायेंगे
कैसे ?
अरे भाई जो असल नहीं है वही तो नहीं है। झगड़ा ही असल नक़ल का है। झंझट ही नकली की खड़ी की हुई है। उन्हें असल हिंदू चाहिए। आप गोडसे नहीं हो सकते तो बात ही ख़त्म हो गयी। आप असल हिन्दू नहीं है तो बात ही ख़त्म हो गयी।
इतने से वे छोड़ देंगे?
छोड़ेंगे तो वे कभी नहीं
क्यों? कभी तो छोड़ेंगे? कोई बात तो मानेंगे!!!
उसका उपाय दूसरा है
क्या?
आप चंदा दे दीजिए। समय समय पर बढ़ाते रहिये।
ओह.. हा.. हा.. वो तो अभी दिया दो हज़ार वाले नोट। चार लड़के लगाये थे बदलवाने को लाइन में। तीन दिन में कुछ रूपया आया था।
फिर ठीक है।
मैंने अपना बैग लिया। हाथ मिलाया और निकल पड़ा। मित्र ने कहा कभी कभी बैठ जाया करो यार। मन की बात हो जाती है तो आनंद आ जाता है।
मैं आत्मीयता से भरा हुआ निकल ही रहा था कि मित्र से उनके पास खड़े एक व्यक्ति ने पूछा। कौन हैं? मित्र की आवाज़ सुनाई दी हिन्दू ही है यार! मित्र हैं अपने और बिलकुल भाई जैसे।
मैंने कदम बढ़ा दिए। मुझे देर हो रही थी।
शशिभूषण
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें