शनिवार, 24 दिसंबर 2016

सेल्फ़ी की लत यानी आत्मपरक होते जाना

यदि आप यह तस्वीर देखें या अभिनेत्री स्मिता पाटिल, की कोई तस्वीर देखें तो आपके मन में यह ख़याल आ सकता है क्यों न इसे दीवार पर लगा लें! पर्स में रख लें।

इसके बाद आपके मन में आनेवाले ख़याल बहुत सी बातों पर निर्भर करेंगे। इस तस्वीर को लगाने या न लगाने, प्रोफाइल पिक्चर बनाने या न बनाने के निर्णय में आप अपनी भावनात्मक ज़िन्दगी की ही समीक्षा कर बैठें तो आश्चर्य नहीं।

आप सोच सकते हैं पसंद है, चिर सुन्दर है मगर छोड़ो यार अब ऐसी दीवानगी का प्रदर्शन भी क्या? लोग क्या सोचेंगे? आपकी ज़िन्दगी जैसी होगी आप उस अनुपात में कई तरह की बातें सोचेंगे।

आप जो भी सोचें इस तस्वीर पर या जैसा मैंने कहा स्मिता पाटिल की किसी भी तस्वीर पर आपकी नजर ठहर ज़रूर जायेगी।

नज़र ठहर जाना, पलटकर देखना या देखना चाहना या सुन्दर कहते कहते रुक जाना बड़ा स्वाभाविक है। नितान्त इंसानी अरमान। वह सुंदरता ही क्या जिस पर मुंह से बात न निकल जाये!

इस तस्वीर या स्मिता पाटिल की किसी तस्वीर को यदि कोई किशोर या किशोरी देखेगा तो क्या करेगा? मेरे ख़याल से वह अधिक नहीं सोचेगा। यदि उसे सुन्दर लगी तस्वीर तो पलक झपकते या तो वॉलपेपर बना लेगा या प्रोफाइल पिक्चर।

बच्चे या युवा जो भी करेंगे आनन्द से जल्द कर लेंगे। अधिक सोचेंगे नहीं। आपने देखा होगा युवा दीवारों पर अपनी तस्वीर की बजाय अपने स्टार की तस्वीर लगाना पसंद करते हैं।

मुझे यह बात बड़ी अच्छी लगती है। युवक या युवती जो किसी स्टार से खुद कई गुना सुन्दर होते हैं अपनी तस्वीर की बजाय अपने हीरो या हीरोइन की तस्वीर क्यों लगाते हैं? जवाब सरल है क्योंकि उन्हें यह पसंद है। आप पूछकर देखिये यही जवाब मिलेगा।

सचमुच यह बहुत खूबसूरत बात है कि कोई अपने से अधिक दूसरे चेहरे पर नाज़ करने लगे। यह एक उम्र या समय के बाद लगना बंद सा हो जाता है। कभी अचानक हूक उठती है तो हम सोचते हैं छोडो भी। हम तुरंत अपनी तस्वीर लगा लेते हैं या एल्बम से कोई पुराना फ़ोटो निकाल उसे फ्रेम करा टांग लेते हैं।

आपने भी ज़रूर सोचा होगा, सेल्फ़ी ने हमारी नज़र को अपने चेहरे तक केंद्रित कर दिया है। सबसे मज़ेदार तब होता है जब हम किसी चेहरे पर अपनी रीझी हुई नज़र टिका देते हैं लेकिन सेल्फ़ी अपनी लेने लगते हैं। पसंद करना भी अपनी कमियों को भर सकता है। हर वक़्त होने की फ़िक्र अंत में उदास करती है।

यह हो रहा है और बढ़ता जायेगा। इसमें बुराई कोई नहीं है लेकिन यह सुंदरता को आत्मपरक बना देता है। सुंदरता अपने असल रूप में सामाजिक है। उससे सबके मन में आनंद का सोता फूटता है।

भले अपने हाथ में न हो लेकिन किसी का सुन्दर होना भी मामूली बात नहीं। किसी को केवल सुदर्शन कहकर तंज करनेवाले लोग ठीक नहीं होते। मगर सुंदरता पर ही काम धाम भूले लोग भी लोकहित में कुछ खास नहीं कर पाते।

शशिभूषण

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