शनिवार, 10 दिसंबर 2016

बाबा मुझको क्यों मार दिया?

मेरे पैदा होते ही बाबा तुमने मुझे मार दिया
दुनिया तो क्या मां को देखने का भी मौक़ा न दिया
थोड़ा तो झिझकते मैं भी तुम्हारा अंश थी
भले ही बेटी थी पर तुम्हारा वंश थी
मेरी रगों में भी तुम्हारा ही खून दौड़ता था
मेरे लिए भी मां ने नौ महीने तक दर्द सहा था
मैंने तो अभी आँखे भी न खोली थीं
न गलतियां जानती थी, न ही कसूरवार थी


फिर भी बाबा तुमने मुझे मार दिया!

पूरी कर देते बेटे की सारी ख्वाहिशें और बातें
लुटा देते उस पर असंख्य दिन और रातें
जान से भी ज्यादा प्यार उसे तुम कर लेते
चाहे सर आँखों पर उसे बिठा लेते
सुनाते उसे रात रात भर कहानी
बनाकर राजा लाते बेटे के लिए रानी
देते उसे ज़माने भर के खिलौने लाकर
ख़ुश हो जाता वह पसंदीदा चीजें पाकर

मेरी ख़ुशी के लिए तुम्हारा एक पल काफ़ी था
फिर भी बाबा तुमने मुझे मार दिया!!

ख्वाहिश न थी तितली की तरह उड़ने की
इच्छा न थी सूरज की तरह चमकने की
न कोई सपना इन आँखों ने देखा था
न इच्छाओं ने मन पर दस्तक दिया था
सपना नहीं देखा था बहुत बड़ी बनने का
शौक़ न था राज महलों में रहने का

मेरे लिये बेटी कहलाना ही सबसे बड़ा सुख था
फिर क्यों बाबा तुमने मुझे मार दिया
आखिर क्यों मुझे मार दिया बाबा???

मेघा गोस्वामी, कक्षा 10

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