बुधवार, 15 मार्च 2017

राजभवन में ब्रह्मचर्य

कल की एक खबर(मेघालय के राज्यपाल षणमुगनाथन का इस्तीफ़ा)मुझे नहीं भूली। इस ख़बर में आज के भारत का वह सब एक जगह है जो अलग अलग ख़बरों में टुकड़े टुकड़े में ही दिखता है।

इस खबर में पूर्वोत्तर है। राजभवन है। दक्षिण भारत है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है। पिछड़ा वर्ग है। लेखक है। दक्षिणपंथी सत्ताधारी राजनीति है। ब्रह्मचर्य है। स्त्री के प्रश्न हैं। नौकरशाही की बग़ावत है। पद का दुरूपयोग है। न केवल अरुणाचल प्रदेश का अतिरिक्त प्रभार है बल्कि आज की भारतीय राजनीति की सबसे असंभव बात राज्यपाल जैसे पद से इस्तीफ़ा है।

अब इस खबर की हालत देखिये कि न यह नेशनल दस्तक है, न मीडिया विजिल है, न लल्लन टॉप है। इसके जागरण ख़बर होने का तो सवाल ही नहीं उठता। क्योंकि इस ख़बर के साथ साथ संजय लीला भंसाली की निंदनीय पिटाई है और बहुजन बेटी के मिस यूनिवर्स होने की उम्मीद है।

आप यक़ीन कीजिये आज यह ख़बर मुझे बीबीसी हिंदी पर ही खोजने से मिली है।

आप पूछेंगे मुझे इस खबर में इतना क्या खास लगता है? जो मैं घर का न घाट का टाइप से सबको कटघरे में लाकर खड़ा कर देनेवाली इस खबर पर इस हद तक केंद्रित हूँ।

तो मैं आपसे डेढ़ बात कहना चाहूंगा। यानी एक पूरी और दूसरी आधी। पूरी बात यह कि इस खबर में सबसे चौकानेवाली लेकिन उम्मीद की बात यह है कि भारत के किसी राज्य के राजभवन के लगभग सब कर्मचारियों ने मिलकर राज्यपाल के विरुद्ध चिट्ठी लिखी। ख़ुलासा किया। इतनी एकजुटता और साहस भारत के नौकरशाही के इतिहास में सुन्दर अक्षरों में लिखी जानेवाली घटना है। वरना आप जानते हैं कि भारत में इस वक़्त बेरोज़गारी इतनी अधिक है कि कोई अकेला नौजवान भी यह कहने की जुर्रत नहीं करता कि मेरे बॉस का जुकाम ठीक ही नहीं हो रहा।

आधी बात यह है साथियो कि यह जो घटना घटी है इसमें शर्मिंदगी और ज़िम्मेदारी लेने की हिम्मत और नेकनीयत अलग अलग कारणों से मंद ही रहेगी।

आप पूछेंगे मैंने किस तीसमारी में इस खबर का संज्ञान लेने का फैसला कर लिया तो मैं इतना ही कहूंगा खबर को तौलने का एक नज़रिया नागरिक नज़रिया भी होता है। इसे भी अपनी बात कहने का हक़ है।

यदि आप कर सकते हैं तो इस ख़बर को भूलियेगा नहीं। इसमें आज के भारत की तस्वीर है।

-शशिभूषण

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें