उन्होंने किसी अनोखी तरंग में ताल ठोंककर कह दिया-मुक्तिबोध के बाद हिंदी में कोई कवि ही नहीं हुआ।
माहौल में साहित्यिक सन्नाटा फैल गया। सब किंकर्तव्यविमूढ़। इससे पहले कि वे किसी और विधा की खिड़की में हथौड़ा पीट दें किसी ने टोका- माफ़ कीजिये। ग़लत है बात। आपने हल्की बात कह दी।
वे चिढ गए- आप गहरी बात कह दीजिए। ही ही। रसिक फिस फिसा उठे। किसी ने गिलासों में अगला पैग ढाल दिया।
कोई और बोला- मैं तो कहता हूँ, कबीर के बाद ही कोई कवि न हुआ। कुल ढाई कवि हुए भारत के काव्य- इतिहास में अब तक। पहला वाल्मीकि, दूसरा कबीर। आधे में शेष सब गधे।
किसी ने चुटकी ली- ये हुई न बात! और कातो चरखा सालों !!! न खादी पहनी न विचार ओढ़ा। बेमतलब की खाली खिटर खिटर।
कोई दहाड़ा- निराशा की बात नहीं। हर वक़्त का अपना कबीर होता है। अन्ना हैं हमारे कबीर। अन्ना की जय जय!!!
कोई और बोला-सब बकवास है। अब कविता की ज़रूरत ही क्या है? साहित्य में ही धरा क्या है? पढता ही कौन है? हरामखोर पब्लिक को चाहिए मनोरंजन, झूठ, धोखा और पिछवाड़े एक जोर की लात!
किसी ने जोड़ा- उचित है, मनोरंजन चाहे सनी लियोनी करे चाहे मोदी जी। पब्लिक को फ़र्क़ नहीं पड़ता। बड़े बड़े उड़ गए, दुकौड़ी लाइन लग गए।
कोई ज़ोर से चिल्लाया- हर बात में मोदी!!! साला कहीं चैन नहीं। टीवी देखो तो...हरामी लेखकों को देखो तो... कोई पानी भी मिलायेगा भोs...केs...
जैसा की होता है संगत थोड़ी देर के लिए खामोश हो गयी। सबने एक दूसरे को देखा। फिर सब ठठाकर हंस पड़े।
अगले दिन इस प्रसंग की एक बढ़िया पोस्ट फेसबुक पर लिखी गयी। जिसे कम ही लोगों ने पसंद किया।
उन्होंने, जिनने ऐतिहासिक बोल वचन कहे थे कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। कारण? वे मरी फेसबुक पर हैं ही नहीं।
-शशिभूषण
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