शुक्रवार, 17 जून 2016

लिखना चुनें



मैं समझता हूँ कविता, कहानी, डायरी, आवेदन, चिट्ठी जो लिख सकते हों, जो भी पसंद हो सबको खूब लिखना चाहिए। रोज़ कुछ न कुछ लिखें। छपे न छपे। कोई पढ़े न पढ़े इसकी परवाह छोड़कर। एक मामूली इंसान जब टूटी-फूटी कविता लिखता है, रिश्तेदारों या मित्रों को पत्र लिखता है, यहाँ तक की जब कोई बच्चा एक पुर्जे में कुछ लिख कांपते हाथों से दोस्त लड़की को थमा देता है तो वह भाषा का साथी होता है।

मैं चाहता हूँ लोगों को इतना मज़बूत और आत्मविश्वासी बनने में योग दिया जाये कि जब वे अपना कोई कार्ड भी छपवायें तो उसमें अपनी पसंद की दो लाईन लिख सकें। अपनी भाषा को लेकर लोगों में प्रेम भरने की ज़रूरत है। कौन कवि है, कौन कहानीकार इससे अधिक ज़रूरी है लोग भाषा को लिखित रूप में अधिक से अधिक बरतें।


मोहल्ले और गाँव में टूटी-फूटी भाषा लिखने वाले उतने दोषी नहीं हैं जितने दोषी लाखों पढ़ाई में खर्च करने के बाद किसी संस्थान में काम करते हुए ग़लत भाषा लिखनेवाले हैं। भाषा का एक प्रयोजन मूलक रूप भी होता है। किसी का मोबाईल खो जाये, तीन दिन से बिजली न आये तो उसे एक आवेदन लिखना आये इसकी ज़िम्मेदारी केवल भाषा के मास्टर की नहीं हो सकती। इसे नामवर सिंह सबको नहीं सिखाएँगे। जो भी पढ़े-लिखे हैं उन्हें यह आना चाहिए और वे दूसरों को सिखायें।

कौन सच्चा कवि है, कौन नाहक कविता पेलता रहता है ऐसी चर्चाएँ बहुत छोटे समुदाय की हैं। इससे उसी वर्ग का नफ़ा-नुकसान होता है। नागरिकों को यह भी देखना है कि उनके नेम प्लेट, होर्डिंग या बैनर में ग़लत शब्द न लिखे हों।
(शशिभूषण के यों ही बोल दिये गये किसी भाषण का अंश)

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-06-2016) को "वाह री ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2377) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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