वेस्ट ज़ोन की अंडर 16 टीम में प्रणव धनावड़े का चयन नहीं हुआ था। महान क्रिकेटर माने जानेवाले और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन तेंदुलकर इसी टीम के लिए सेलेक्ट हुए।
प्रणव धनवड़े का चयन न होने को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ पढ़ने-सुनने-देखने को मिलीं। सबसे असुविधाजनक प्रतिक्रियाएं वे थीं जिसमे प्रणव को एकलव्य कहा गया। यह साबित किया गया कि प्रणव कथित रूप से निचली जाति में पैदा होने के कारण और ऑटो ड्राइवर का गरीब बेटा होने के कारण नहीं चुने गये।
यह भी बताया गया कि अर्जुन तेंदुलकर प्रणव से कम अच्छे क्रिकेटर हैं। प्रणव की खुले मन से तारीफ़ करने के बावजूद सचिन तेंदुलकर अपने बेटे के पक्ष में आ गये होंगे। प्रणव के नहीं चुने जाने के पीछे वही सचिन तेंदुलकर हैं जिनके लिए उनसे श्रेष्ठ माने जानेवाले क्रिकेटर विनोद कांबली पीछे धकेल दिये गये।
हो सकता है कोई ठोस सबूत न होने के बावजूद यही बातें सच हों। यह भी हो ही सकता है कि इस घटना में जातिगत दुराग्रह न होने के राहत देनेवाले संकेत हों।
इस पूरे प्रकरण में मुझे जो बात सबसे अच्छी लगी वह थी प्रणव के पिता और प्रणव का बयान। मेरे इस अच्छे लगने को कुछ लोगों द्वारा इस तरह भी देखा जा सकता है कि इस बयान से तेंदुलकर का बचाव होता है इसलिए ले देकर सवर्ण मानसिकता के पक्ष में खड़े हो जाना ही हम जैसों की नियति है।
जब प्रणव ने स्पष्ट किया कि उनकी उस यादगार और ऐतिहासिक पारी खेलने से पहले इस टीम का चयन हो चुका था, कि अर्जुन उनके अभिमान रहित मित्र हैं, कि तेंदुलकर सर उसे चाहते हैं तो मुझे सचमुच अच्छा लगा कि यह खिलाड़ी अत्यंत परिपक्व है और यदि भविष्य में सचमुच कोई दुर्घटना न हुई तो इसका भविष्य अच्छा है।
मान लीजिए प्रणव अपने को एकलव्य कहे जाने का तनाव स्वीकार कर लेता, अर्जुन और सचिन को लेकर बढ़िया बाईट दे देता तो क्या होता? तब क्या यह खिलाड़ी असमय लड़ाई में कूदकर भारतीय क्रिकेट के सभी दुष्चक्रों को कुछ टीकाकरों, बहसबाज़ों के सहारे काट लेता? क्या इससे उसे भविष्य की किसी टीम में बड़ा मौका मिल जाता? हर्गिज नहीं। बल्कि वह बड़ी आसानी से अपनी अभूतपूर्व प्रतिभा के साथ अवसरहीन गुमनामी के अँधेरे में बढ़ा दिया जाता।
शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ। तब क्या वे लोग पूरी तरह ग़लत थे जिन्होंने प्रणव को एकलव्य की तरह उछाला? मेरी राय में उन लोगों ने भी ठीक ही किया। चाहे जिस तरीक़े से हो प्रतिभाशाली लोगों को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। खासकर ऐसे देश में जहाँ जाति के आधार पर किसी को अयोग्य ही नहीं नीच तक समझनेवाले बड़ी संख्या में पढ़े लिखे तथा रसूखदार लोग हों।
धन्यवाद प्रणव, तुमने अपने पिता और विवेक के साथ मिलकर एक बड़े खिलाड़ी के मान की रक्षा भी की है। यह ऐसी बात है जो कभी तुम्हारा अहित नहीं होने देगी। मुझे ऐसा ही लगता है।
-शशिभूषण
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