उड़ता पंजाब एक गंभीर फि़ल्म है। मनोरंजन की जगह सामाजिक-राजनीतिक संजीदगी फिल्म में मुख्य हैं। नशा मुक्ति के जिस सरोकार को यह हमारे सामने रखती है वह सबके लिए जवाबदेही का मसला है। लगभग पूरा देश नशे के कारोबार की चपेट में है। छोटे छोटे बच्चे मौत के मुँह मे जा रहे हैं, जवान, बूढ़े, औरते अकाल मौत में पड़ रहे हैं। जिन्हें रोकना चाहिए वही नशे के संरक्षक हैं।
फिल्म केवल पंजाब की नहीं है। बिहार की भी है। सभी प्रांतों की है। पंजाब में ड्रग्स है क्योंकि वहाँ संपन्नता है। निर्धन समाज में ड्रग्स का कारोबार नहीं फैल सकता। ग़रीब इलाक़ों में तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, गांजा, अफ़ीम, शराब का धंधा है। नशा व्यक्ति को नष्ट कर देता है थोड़े ना नुकुर के बाद हर कोई मान लेगा।
फिल्म कोई छूट नहीं लेती। अगर लेती तो एक दो भांगड़ा, आईटम सांग ज़रूर होते। प्रेम प्रसंग भी परिणति तक पहुँचते। फ़िल्म में दो लड़कियो को हम देखते हैं। एक डॉक्टर। दूसरी मज़दूर। दोनों अच्छी लड़किया हैं। खूब संघर्ष करती हैं। डॉक्टर लड़की जिस सादगी से पुलिस के सहायक निरीक्षक को अपने कर्तव्य की याद दिला देती है वह महत्वपूर्ण है।
आलिया भट्ट ने यादगार काम किया है। वे जब अपने हॉकी खिलाड़ी होने का हवाला देकर पीड़ा से बोलती हैं तो अपने सतत शोषण में भी सत्ता को अमिट चुनौती देती हैं। किसी पीड़ित लडकी की व्यथा में समकालीन राजनीतिक सत्य को देखना हो तो इससे बेहतर दृष्य नहीं हो सकता। उड़ता पंजाब चुनाव और कुछ जुमलों के शानदार इस्तेमाल से राजनीतिक बनी है। हो सकता है इसकी परेशानियाँ भी इसी कारण रही हों।
शाहिद कपूर ने वही काम किया जो उन्होंने फिल्म हैदर में बखूबी सीखा था।
फिल्म में कुछ भी ग़लत नहीं है। इसकी कल्पना करना भी बहुत तकलीफ़देह है कि इसमें 80 से अधिक कट के सुझाव थे। वह लड़ाई जो इस फिल्म ने लड़ी फिल्म को अलग पहचान देती है। अदालत की टिप्पणी ने फिल्म को लोगों तक पहुँचने में मदद की इसमें शक नहीं।
कोई फिल्म किसी राजनीतिक दल के लिए असुविधाजनक हो सकती है। हो सकता है किसी राजनीतिक दल को उससे फायदा मिलता हो। यह गौंड़ बात है। हमारे यहाँ बहुदलीय प्रणाली है। सभी दल संतुष्ट हो जायें इसकी कामना ठीक नहीं। फ़िल्म अधिक पारखियों के लिए मामूली भी हो सकती है। लेकिन इंसानो की सोचिए तो फ़िल्म नेकी का संदेश देती है इसमें संदेह नहीं। लोकप्रिय कलाकर किस तरह ग़लत आदतों को प्रचलित कर देते हैं फ़िल्म में खूब दिखाया गया है।
नशे को लेकर हमारे समाज में दोहरे मापदंड हमेशा से रहे हैं। नशे के खिलाफ़ पूरा भारतीय समाज एक दिन में खड़ा हो जायेगा इसकी आशा करना ठीक नहीं। फिल्म यह बताने में सफल रही है कि नशा एक राजनीतिक कारोबार भी है। इससे अच्छी फिल्में भी होंगी। मगर उड़ता पंजाब की नीयत या स्तर पर संदेह करना ठीक न होगा।
कुल मिलाकर फ़िल्म उड़ता पंजाब देखी जानी चाहिए। आखिर उन लोगों ने भी फ़िल्म देखी ही जिन्होंने आधा स्टार दिया। हर किसी को स्टार देने का अपना अधिकार सुरक्षित रखना चाहिए।
फिल्म केवल पंजाब की नहीं है। बिहार की भी है। सभी प्रांतों की है। पंजाब में ड्रग्स है क्योंकि वहाँ संपन्नता है। निर्धन समाज में ड्रग्स का कारोबार नहीं फैल सकता। ग़रीब इलाक़ों में तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, गांजा, अफ़ीम, शराब का धंधा है। नशा व्यक्ति को नष्ट कर देता है थोड़े ना नुकुर के बाद हर कोई मान लेगा।
फिल्म कोई छूट नहीं लेती। अगर लेती तो एक दो भांगड़ा, आईटम सांग ज़रूर होते। प्रेम प्रसंग भी परिणति तक पहुँचते। फ़िल्म में दो लड़कियो को हम देखते हैं। एक डॉक्टर। दूसरी मज़दूर। दोनों अच्छी लड़किया हैं। खूब संघर्ष करती हैं। डॉक्टर लड़की जिस सादगी से पुलिस के सहायक निरीक्षक को अपने कर्तव्य की याद दिला देती है वह महत्वपूर्ण है।
आलिया भट्ट ने यादगार काम किया है। वे जब अपने हॉकी खिलाड़ी होने का हवाला देकर पीड़ा से बोलती हैं तो अपने सतत शोषण में भी सत्ता को अमिट चुनौती देती हैं। किसी पीड़ित लडकी की व्यथा में समकालीन राजनीतिक सत्य को देखना हो तो इससे बेहतर दृष्य नहीं हो सकता। उड़ता पंजाब चुनाव और कुछ जुमलों के शानदार इस्तेमाल से राजनीतिक बनी है। हो सकता है इसकी परेशानियाँ भी इसी कारण रही हों।
शाहिद कपूर ने वही काम किया जो उन्होंने फिल्म हैदर में बखूबी सीखा था।
फिल्म में कुछ भी ग़लत नहीं है। इसकी कल्पना करना भी बहुत तकलीफ़देह है कि इसमें 80 से अधिक कट के सुझाव थे। वह लड़ाई जो इस फिल्म ने लड़ी फिल्म को अलग पहचान देती है। अदालत की टिप्पणी ने फिल्म को लोगों तक पहुँचने में मदद की इसमें शक नहीं।
कोई फिल्म किसी राजनीतिक दल के लिए असुविधाजनक हो सकती है। हो सकता है किसी राजनीतिक दल को उससे फायदा मिलता हो। यह गौंड़ बात है। हमारे यहाँ बहुदलीय प्रणाली है। सभी दल संतुष्ट हो जायें इसकी कामना ठीक नहीं। फ़िल्म अधिक पारखियों के लिए मामूली भी हो सकती है। लेकिन इंसानो की सोचिए तो फ़िल्म नेकी का संदेश देती है इसमें संदेह नहीं। लोकप्रिय कलाकर किस तरह ग़लत आदतों को प्रचलित कर देते हैं फ़िल्म में खूब दिखाया गया है।
नशे को लेकर हमारे समाज में दोहरे मापदंड हमेशा से रहे हैं। नशे के खिलाफ़ पूरा भारतीय समाज एक दिन में खड़ा हो जायेगा इसकी आशा करना ठीक नहीं। फिल्म यह बताने में सफल रही है कि नशा एक राजनीतिक कारोबार भी है। इससे अच्छी फिल्में भी होंगी। मगर उड़ता पंजाब की नीयत या स्तर पर संदेह करना ठीक न होगा।
कुल मिलाकर फ़िल्म उड़ता पंजाब देखी जानी चाहिए। आखिर उन लोगों ने भी फ़िल्म देखी ही जिन्होंने आधा स्टार दिया। हर किसी को स्टार देने का अपना अधिकार सुरक्षित रखना चाहिए।
-शशिभूषण
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