शुक्रवार, 17 जून 2016

भिंडी



आप सीधे सादे ढंग से कह सकते थे
मुझे भिंडी की सब्जी पसंद नहीं है
यह कहने से न आपका स्वास्थ्य खराब होता
न ही आप हरित सब्जी विरोधी समझे जाते


आप यह पहले बड़ी आसानी से कहते रहे हैं
थाली में भिंडी की सब्जी छोड़ना आपको याद होगा
कहा जाता कि कभी भिंडी की सब्जी भी खा लेना चाहिए
तो आप बिना मुँह बिचकाये चबा चबाकर खा लिया करते थे

भिंडी की सब्जी न खाने के पीछे आपका कोई प्रण नहीं हैं
अच्छी लगने लगे या बाज़ार में वही बचे तो आप ज़रूर खा लेंगे
आपने एक बार बच्चों से कहा भी था चुनावी मत बनो सब खाया करो
भिंडी खरीद ही लिया करते थे कि सब्जी न बनने से अच्छा भिंडी की सब्जी

कोई बहाना नहीं बनाया करते थे आप
भिंडी कहने से दौड़ाया भी नहीं करते थे आप
अब जो जो भिंडी कहकर आपको सभा से उचका देते हैं
उन्हें आप ही समझाया करते थे चिढ़ना नहीं चाहिए

आप जानते हैं और हमें भी अच्छी तरह याद है
यह जो पीछे पीछे आपके बच्चे हँसते दौड़ते हैं
आप उन्हें भिंडी पुकारने के कारण भगाते फिरते हैं
कई बार आपने उन्हीं के सामने तारीफ़ करके भिंडी खायी

अब आप याद भी नहीं करना चाहते
रौ में बोल गये थे दोहराना नहीं चाहते
"भिंडी का हरापन भी अमेरिका की सेंध है
भारत की खेती पूँजीवीद का अश्वमेध है"

बातें थी जिन्हें आप क्या खूब कहना चाहते थे
दुनिया से जाने के बाद स्मृति में रहना चाहते थे
आप तड़का लगाते गप शप में राजनीति का
खूब समझाते कैसे कैसे सत्ता करवट लेती है

लोग सुनते थे गुनते थे हँसते थे चुप रह जाते थे
कभी कभार दिलचस्पी में आपके पीछे लग जाते थे
आप अपनी सोची हुई दुनिया में बड़ी दूर तक जा रहे थे
अफ़सोस ज़माने को वैसे ही रहना था आपको भिंडी खाना था।

-शशिभूषण

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