शुक्रवार, 17 जून 2016

प्रत्यूषा बनर्जी

पिछले दिनों के समाचारों के आधार पर प्रत्यूषा बनर्जी की आत्महत्या की बात पक्के तौर पर कहना जल्दबाज़ी होगी।

लेकिन इसे नहीं भूला जा सकता कि बालिका वधू में जो उसने अवसादग्रस्त, दुखी और श्रेष्ठ पारिवारिक रहने का अभिनय लंबे समय तक किया वह या उस जैसा अभिनय भी उसे अपने विरुद्ध कर सकता है।

काम का आखिर अपने प्रति हमारे नज़रिये में असर पड़ता ही है।


यदि प्रत्यूषा ने आत्महत्या की है तो माफ़ कीजिये ससुराल सिमर का में सिमर का रोल कर रही अभिनेत्री के लिए एक चेतावनी की तरह है।

यदि मैं ऐसे सीरियल देखकर अपने बाल नोचने की सोच सकता हूँ तो ऐसे रोल के बाद ये घर आकर कैसे सामान्य रहती होगी!

ये धारावाहिक बहुत खतरनाक, जीवन और समाज विरोधी हैं।

बालिका वधू, नागिन और ससुराल सिमर का जैसे अंतहीन और घातक सीरियल में लंबे समय तक बेस्ट रोल करने के बाद सामान्य जीवन जी पाना, अपने प्रति सकारात्मक रहना असंभव समझिये।

इनमें काम करना, बिग बॉस के घर में रहना ये सब घातक होंगे ही सरल ज़िन्दगी के लिए।

मुझे कुछ चैनल के एंकर को देखकर भी डर लगता है।

कितने भयंकर व्यापारी आ बैठे हैं।

अभिनय मुक्त करनेवाला नहीं बीमार बहुत बीमार करनेवाला हो रहा है।

कंधे में बन्दर बैठाये, भालू को रस्सी पकड़ खींचते, या झोले में सांप रखे तमाशेबाज़ से आपको सहानुभूति हो सकती है मगर करोड़ों में खेलनेवाले ऐसे सीरियल पर हमें गुस्सा आना चाहिए।

ये बंधुआ बनाकर, झूठी प्रसिद्धि दिलाकर अपने कलाकारों को भीतर से कमजोर कर रहे हैं।

इनके कलाकार यदि राजनीति में भी आ रहे हैं तो समझिये बाढ़ का पानी घर में घुस चुका है।

समाचार चैनल भी सास, बहू, बेटी पर जो कार्यक्रम करते हैं वे खतरनाक हैं।
-शशिभूषण

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