इन दिनों विद्यालयी शिक्षा में बोर्ड कक्षाओं के परीक्षा परिणाम पर आधारित PI की गणना कर शिक्षकों के श्रेणीकरण का अभियान जोरों पर है। आइए जानते हैं कि PI मान किस प्रकार शिक्षकों की शिक्षण गुणवत्ता आकलन का मानक आधार नहीं हो सकता:-
वर्तमान ग्रेडिंग अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों को और उनके द्वारा प्राप्त अंको को शून्य मानती है। जबकि किसी एक विषय में अनुत्तीर्ण विद्यार्थी के पास एक और परीक्षा का अवसर होता है। विद्यार्थी के अनुत्तीर्ण होने के पीछे अनेक कारण होते हैं। किसी विद्यार्थी के परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाने का अभिप्राय यह नहीं हो सकता कि वह अब शैक्षणिक संसार में अनुपस्थित है।
अंको के विषयवार ग्रेड निर्धारण में उत्तीर्ण विद्यार्थियों को शामिल किया जाता है। कुल उत्तीर्ण विद्यार्थियों के ऊपर से आठवें हिस्से को A1 ग्रेड दे दिया जाता है। आगे के ग्रेड A2, B1, B2 आदि इसी प्रकार क्रमश: शेष आठवें भाग को आवंटित किए जाते हैं। एक समान अंक पाने वाले उत्तीर्ण विद्यार्थियों की संख्या ग्रेडिंग को प्रभावित करती है। इतना ही नहीं एक ही अंक के लिए अलग-अलग विषय में अलग-अलग ग्रेड होंगे। यह अंतर दहाई तक भी पहुँच सकता है।
ग्रेड निर्धारण विद्यार्थियों को मनुष्य समाज की अद्वितीय इकाई नहीं केवल प्राप्तांकों वाली संख्या मानता है। पी आई शिक्षण कार्य को अंकीय मान से आँकता है। यदि पीआई उपलब्धि को मानक मान लिया जाये तो शिक्षा का लक्ष्य परीक्षा रह जायेगा। ऐसी स्थिति में संगीत, आर्ट, खेलकूद, पुस्तकालय, कार्यानुभव आदि के शिक्षकों के मूल्यांकन के लिए क्या पैरामीटर होंगे बड़ा सवाल होगा ?
वर्तमान ग्रेड निर्धारण प्राप्त अंकों के संबंध में मॉडरेशन पॉलिसी के साथ लागू है। मॉडरेशन पॉलिसी निर्दोष नहीं है। यह कम अंक अर्जित करने वाले विद्यार्थी को अधिक अंक पाने वाले विद्यार्थी के समकक्ष खड़ा कर देती है। मॉडरेशन पॉलिसी को निरस्त किए जाने संबंधी सुझावों- आदेशों को नज़र अंदाज किया जा रहा है। यदि कुछ समाचार वेबसाईट की खबरों को सच मानें तो मॉडरेशन पॉलिसी को हटाने के आदेश दिल्ली हाई कोर्ट और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा भी दिये जा चुके हैं।
क्या अनुत्तीर्ण विद्यार्थी पर शिक्षक द्वारा किया गया शिक्षण कार्य शून्य होता है ? क्या अधिकतम ग्रेड पाने वाले विद्यार्थी का सारा श्रेय शिक्षक को जाता है ? क्या शिक्षकों के मूल्यांकन की पी आई पद्धति में असमान कक्षाओं, बेशुमार कोचिंग संस्थानों, विद्यार्थियों की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का उनके प्राप्तांकों पर पड़ने वाले प्रभाव को घटाने का कोई उपाय है ?
मान लीजिए किसी कक्षा में केवल 1 विद्यार्थी है। यदि वह A 1 ग्रेड ले आए तो शिक्षक का पीआई 100 होगा। A1 ग्रेड का अंक 90 से लेकर 100 के बीच कुछ भी हो सकता है। विद्यार्थी के प्राप्तांक और शिक्षक के पीआई का यह अंतर शत प्रतिशत उपलब्धि की अवधारणा को ही ध्वस्त कर देता है। विद्यार्थी का प्राप्तांक 91 और शिक्षक का पी आई 100 यह अजीब नहीं है? पी आई पर विद्यार्थियों की संख्या का भी खासा प्रभाव पड़ता है।
अंक और ग्रेड अलग-अलग प्रदान करना। विद्यार्थियों के लिए अंक को मुख्य मानना तथा ग्रेड मान को शिक्षकों की पी आई के लिए मुख्य मानना असंगत है। जहां आवश्यक हो पी आई से बेहतर विद्यार्थियों द्वारा अर्जित अंकों के मीन (माध्य) को माना जा सकता है। कुछ लोग यह सवाल उठा सकते हैं कि यदि पी आई नहीं तो फिर शिक्षकों के मूल्यांकन का क्या आधार हो सकता है ? खराब प्रदर्शन करने वाले शिक्षक और अच्छा प्रदर्शन करने वाले शिक्षक कैसे पहचाने जायेंगे ? इसका उत्तर यही हो सकता है कि शिक्षण का मापन पी आई से करना शिक्षकों की पहचान को और धुंधला कर सकता है।
क्या शिक्षण का कोई अंकीय मान हो सकता है ? केवल बोर्ड कक्षाओं के परीक्षा परिणाम और उसके पी आई के आधार पर शिक्षण गुणवत्ता का मानकीकरण शैक्षिक आयामों का संकुचन है। यहीं यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि फिर प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं के शिक्षकों को किस आधार पर अच्छे और कम अच्छे शिक्षकों में वर्गीकृत किया जाएगा ?
किन्ही भी 2 शिक्षकों की तुलना पी आई के आधार पर तब तक नहीं की जा सकती जब तक दोनों शिक्षकों का विषय एक ही न हो और उनके विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन एक ही व्यक्ति ने न किया हो। मूल्यांकन निर्दोष साबित होना भी आवश्यक है। जाहिर है यह असंभव जैसा है। यदि संस्कृत विषय में 60 पीआई लाने वाला शिक्षक विज्ञान विषय में 55 पीआई लाने वाले शिक्षक से खुद को श्रेष्ठ मानने लगे तो अव्वल यह तुलना ग़लत होगी दूसरे उपयोगिता का सवाल भी उठ जायेगा।
शिक्षण गुणवत्ता के आकलन का आधार बोर्ड के उत्तीर्ण विद्यार्थियों के ग्रेड पर निर्भर पी आई नहीं हो सकता। शिक्षकों का सतत समावेशी निरीक्षण ही युक्तिसंगत ठहरता है। उनके द्वारा पढ़ायी जाने वाली अन्य कक्षाएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।
शिक्षा का परीक्षा केंद्रित होते जाना स्वयं एक बड़ा संकट है। केवल बोर्ड कक्षा के परीक्षा परिणाम के पी आई के आधार पर शिक्षकों का कुशल और अकुशल में वर्गीकरण अन्य अनेक संकटों को जन्म देगा। शिक्षकों के बीच मान्य उत्कृष्टता भेदभाव पूर्ण होगी। क्योंकि अंततः एक शिक्षक शिक्षक ही होता है। कक्षाओं के आधार पर बड़ा या छोटा नहीं।
शिक्षकों से अपील है कि यदि आप उचित समझें तो उपर्युक्त बिंदुओं पर संशोधन या सुझाव या अपनी राय रखें। परीक्षा केंद्रित हो चली शिक्षा को वास्तविक व्यापक लक्ष्यों की ओर मोड़ने के लिए शुद्ध प्रयत्न करें और निर्मल बुद्धि से नीति निर्धारकों के सम्मुख अपने मत रखें।
- शशिभूषण
महोदय, आपके द्वारा लिखा गया लेख न केवल सराहनीय है अपितु यह आपकी सोच के उत्कृष्ट एवं यथार्थवादी स्तर को प्रदर्शित करता है। मैं आपकी बातों से पूर्णतया सहमत होते हुए यह कहना चाहूंगा की बोर्ड परीक्षा में पढ़ाने वाले शिक्षक के कंधों पर प्रदर्शन की जो जिम्मेदारी है, उसमें उन सभी शिक्षकों का योगदान है जिन्होंने किसी बालक विशेष को पहली कक्षा से पढ़ाया है। यदि प्राथमिक कक्षाओं की न्यू कमजोर रह जाए और मिडल कक्षाओं के शिक्षक उस कमजोर न्यू पर इमारत खड़ी ना कर पाए ऐसी स्थिति में बोर्ड कक्षा में पढ़ाने वाला शिक्षक उस पर घर का निर्माण कैसे करें? साथ ही बोर्ड कक्षा पढ़ाने वाले शिक्षक विशेष के पीआई के लिए अच्छे और बुरे दोनों ही प्रदर्शनों में उन सभी शिक्षकों का योगदान है जिन्होंने अब तक किसी विद्यार्थी विशेष को पढ़ाया है। योगदान है सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति का। योगदान है सहज सुलभ होने वाले संसाधनों एवं अभाव का। निश्चित रूप से शिक्षक की योग्यता का आकलन मीन माध्यम से भी किया जा सकता है।आप किसी आदिवासी क्षेत्र में पढ़ाने वाले शिक्षक के पी आई की तुलना किसी अच्छे एवं जागरूक शहर में पढ़ाने वाले शिक्षक से कैसे कर सकते हैं? ऐसी स्थिति में वह गला काट प्रतियोगिता जो विद्यार्थियों के मध्य है, शिक्षा में हो जाएगी और शिक्षा अपने वास्तविक लक्ष्य को खोकर केवल और केवल येन केन प्रकारेण अपने पी आई को बढ़ाने के लिए एक व्यापार बन जाएगी। ऐसी स्थिति में वंचित अभावग्रस्त एवं आदिवासी क्षेत्रों में पढ़ाने वाले शिक्षक अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए अपना स्थानांतरण किसी ऐसी जगह पर करवाना चाहेंगे जहां वे कम मेहनत में भी अच्छा पीआई दे सकें। वास्तव में यह समय की मांग है पूरा शिक्षक समाज इस हेतु अपनी आवाज़ उठाएं और नीति निर्धारण करने वालों को इस पर सूचित करें। एक बहुत बड़ा योगदान शिक्षा के अधिकार का भी है। एक योगदान कक्षा नवीं तक फैल न की जाने वाली पोलिसी का भी है।
जवाब देंहटाएंप्रत्यक्ष उदाहरण मौजूद है कि एक विषय में mean 72 होते हुए पी आई 75 है जबकि दूसरे विषय में मीन 74 होते हुए भी पी आए मात्र 45 है। यह कैसा आंकलन है?
शुक्रिया आपका। आपकी टिप्पणी में कुछ बातें अत्यंत विचारणीय हैं।
हटाएंसर आप विचार सच में सराहनीय है।शिक्षा गुणवत्ता का पूरा दायित्व क्या केवल बोर्ड परीक्षा के पर ही निर्भर है
हटाएंशिक्षक अपने मौलिक कार्य को छोड़कर इसी। केपिछे भागने को बाध्य है
ज्ञान अर्जन केवल अंको अर्जन बन गया है
शिक्षक और विद्यार्थी इसी बोझ तले दबकर स्वस्थ पठन पाठन। से दूर हो गए है
शशि भूषण जी मैं आपकी बात से पूर्ण तरह सहमत हूं ।यह बिल्कुल सही है कि पीआई छात्रों की उपलब्धि के आकलन का एक सही माध्यम नहीं है और ना ही शिक्षक की उपलब्धियों का। छात्रों की पारिवारिक पृष्ठभूमि, उनकी बीमारियां, मातृभाषा, उनके प्रेम प्रसंग , प्रश्न पत्र के सेट, कला, विज्ञान आदि संकायों की पृष्ठभूमि, विद्यालय में सालभर चलते विभिन्न दिवस सप्ताह आदि परीक्षा परिणाम को प्रभावित करते हैं। तमिलनाडु के हिंदी शिक्षकों को तो लोहे के चने चबाने पड़ते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम लेख वास्तव में नीति निर्माता इस ओर ध्यान दें तो अच्छा होगा पी आई केवल शिक्षकों के शोषण का माध्यम बन रहा है इसी को लेकर मेहनत करने वाले शिक्षकों को भी नोटिस दे दिए हैं
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