शुक्रवार, 10 मई 2019

सिल्क स्मिता हो या हिटलर दुखी मरते हैं


किसी भी प्रकार से, किसी भी रास्ते से, किसी भी प्रकार के उद्योग द्वारा ,भले तो भले बुरे कर्मों के द्वारा भी जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि, सबसे अधिक धन, सबसे बड़ा पद और सबसे अधिक यश पाने की महत्वाकांक्षा रखने वालों को ज्यादा नहीं एक बार फिल्म 'डर्टी पिक्चर' ही देख लेनी चाहिए। इस फिल्म में फ़िल्मी डांसर सिल्क स्मिता का चरित्र है। सिल्क स्मिता फिल्मी व्यावसायिक कामुकता की नृत्यांगना थी। जिसने फिल्मों को इसलिए चुना कि उसे पैसा और प्रसिद्धि मिल सके। वह महत्वाकांक्षा का शिकार थी। उसने अभिनय की बजाए, चरित्र निभाने की बजाए अपने युवा अंगो का उत्तेजक प्रदर्शन करना स्वीकार किया। उसने ऐसा नृत्य करना स्वीकार किया जो दर्शकों की वासना यानी उनकी काम उत्तेजना को उद्दीप्त कर दे। इस प्रकार उसे कुछ लोग मिले जिन्होंने उसे अत्यंत प्रोत्साहित किया। उन्होंने सिल्क स्मिता को इस तरह प्रोत्साहित किया कि वह कभी समझ ही नहीं पायी मैं उनकी स्वार्थसिद्धि का साधन हूँ। फिर क्या था उसे सब कुछ मिला, और उसने किसी की परवाह नहीं की। आलोचकों और नेक सलाहकारों को ठेंगे पर रखा। उसने फ़िक्र की ही नहीं। किसी की भी नहीं। उसे दर्शकों की सीटियां, सीत्कार, कामुक हंसी और उत्तेजक दशाएं बड़ी प्रिय विजयी लगीं। वह कथित सफलता की सीढ़ी चढ़ती गयी। 

लेकिन धीरे-धीरे उसकी यह महत्वाकांक्षा विकृत होती गयी। उसमें अहंकार भी चढ़ता गया। हिंसा, छल, दूसरों को अपमानित करने, नीचा दिखाने का भाव बढ़ता गया। उसने घर तोड़े। उसने प्रतियोगियों को जलाया। उसे यकीन हो चला था कोई मेरा क्या कर लेगा ? वह प्रतिहिंसा और बदले की भावना में भी बहुत कुछ कर गुजरने में धँसती चली गयी। बिना कुछ सोचे। बिना परिणाम की चिंता किये। सिर्फ आगे, और आगे देखती गयी। अंत में क्या हुआ? इसी फ़िल्म में एक शांत स्मृति यानी मित्र का स्मरण है। वह कहता है- उसकी यानी सिल्क की जिंदगी में सब ठीक चल रहा था। लेकिन तभी तक जब तक उसने लोगों के बारे में नहीं सोचा। अपने बारे में लोगों की राय के बारे में नहीं सोचा। वह आगे बढ़ती गयी। सफलता के पायदान चढ़ती गयी। फिर उसकी जिंदगी में ढलान आया। इसी बीच उसने लोगों की राय पर ध्यान दिया। वह पलटकर सोचने लगी। अवसाद में घिर गयी। उसका सब बिखरने लगा। टूटने लगा। उसका आत्मविश्वास और खुद पर यक़ीन ध्वस्त हो गया। एक दिन वह अपने घर में मृत मिली। 

सिल्क स्मिता की यह कहानी बहुत कुछ कहती है। इसमें बड़े बड़े संकेत हैं। ग़ौर से देखिये कोई चैंपियन आपके आसपास भी तो अपने बारे में लोगों की राय याद नहीं कर रहा ? वह सहानुभूति बटोरने दूसरों की केवल निंदा तो नहीं करता जा रहा? यदि हाँ तो समझ लीजिए। इतना इशारा काफ़ी है। यह हताशा है। अपनी भविष्यहीनता की मुनादी है। ध्यान रखिये हिटलर मारे नहीं जाते। वे आत्महत्या करते हैं। जिसने भी ग़लत राह चुनी उसकी सज़ा उसे खुद से मिलती है। यदि आप हिटलर के अंतिम 6 महीनों का किस्सा जानेंगे तो आपको यकीन हो जाएगा कि उस नृशंस तानाशाह ने यही सोचा था लोग मुझे कायर समझेंगे ? मैंने इतने लाख लोग मौत के घाट उतार दिए फिर भी मुझे कायर पराजित समझा जाएगा। बदले में उसने क्या किया ? खुद को वैसी ही मौत दी जैसी उसके कुत्ते को मिली। यही होता है। यही होता आया है। ग़लत इंसान दुख पाता है। जिसके हृदय में अवैर और करुणा है वह सुख पाता है। यही संसार का नियम है। सिल्क स्मिता हो या हिटलर दुखी मरते हैं। उन्हें कोई सुख और शांति नही दे सकता।

- शशिभूषण 

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