रविवार, 14 अगस्त 2016

पोएट्री मैनेजमेंट की पुरस्कारलब्धि

शुभम श्री की कविताएं मैंने इधर उधर पढ़ी थीं। ताज़ा बया का अप्रैल-जून 2016 अंक जो विश्वविद्यालय परिसर पर केंद्रित है में भी इनकी दो कविता प्रकाशित हैं।

जब पोएट्री मैनेजमेंट कविता को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार की घोषणा हुई तो मुझे किंचित ख़ुशी हुई कि थोड़े भिन्न आस्वाद की कविताएं लक्षित हुई हैं। यह उम्मीद बंधी कि इस फॉर्म में भी कविता लिखी जा सकती है। कविताओं में निहित व्यंग्य नयेपन का भी आभास देता है।

जब यहाँ वहाँ विवाद शुरू हुआ, फेसबुक, ब्लॉग पर मत मतान्तर प्रकाशित हुए तो मेरी यह राय दृढ हुई कि शुभम बहाना हैं उदय प्रकाश पर निशाना है। कारण चाहे जो हों उदय प्रकाश को औसत साबित करने के अवसर की तलाश जारी रहती है।

लेकिन जब उदय प्रकाश जी का आधिकारिक वक्तव्य जनपथ ब्लॉग पर देखा तो मैं स्तब्ध था। यह किसी युवा कवयित्री में संभावना देखकर उसे सम्मानित करना नहीं था बल्कि अपनी पसंद और निर्णय के सम्बन्ध में आलोचकों और कदाचित निंदकों की बोलती बंद कर देने की आकांक्षा से भरकर कलम तोड़ देना था। यह निर्णायक रहते आलोचकीय युक्ति से समकालीन युवा कविता की दिशा मोड़ देने की असरदार कोशिश है।

इस वक्तव्य से मुझ जैसे अपेक्षाकृत खुश और उत्साहित पाठक को भी झिझोडे जाने का अनुभव हुआ। स्थापनाएं चुनोउती देती सी लगी। महसूस हुआ अब कविताओं को ऐसे ही नयेपन के मानकों पर कसे जाने का वक़्त शुरू होता है।

इसलिए मैंने पुनर्विचार किया और कुछ बातें नोट की।

1.  उदय प्रकाश जी अपनी तरह लिखने और सोचनेवालों को विशेष तरज़ीह देते हैं। वे औरों के विपरीत इस बात से आशीर्वादी हो जाते हैं कि उनका अनुकरण हो रहा है। ध्यान से देखें तो शुभम श्री की कई कविताएं उदय प्रकाश के संग्रहों में दर्ज कविताओं सी हैं। एक दो उन्होंने यहाँ शेयर भी कीं।

2.  इसे एक और उदाहरण से समझा जा सकता है कि शिल्पी सिंह की कहानी क्वालिटी लाइफ़ उदय जी को पसंद है और संयोग देखिये की यह उनकी कहानी छतरियां से काफ़ी मिलती जुलती है।

3.  अपने जैसी प्रवृत्ति को आगे बढ़ाने से त्रस्त लोग बहुधा अवसर मिलने पर अपने जैसी जमात पैदा करते हैं।

4.  शुभम श्री की कविताओं का कहन किंचित नया है। लेकिन ऐसे व्यंग्यपूर्ण कहन के नयेपन के साथ आनेवाली वे पहली नहीं हैं। वे कोई परंपरा बना पाएंगी यह कहना भी बहुत जल्दबाज़ी होगी।

5.  एक हज़ार साल से अधिक कालावधि में विन्यस्त हिंदी कविता ऐसे उत्तेजनों से भी संचालित होती रही। यह कविता की ही ताक़त थी कि हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के लिये अब नहीं जाने जाते। कविता में नग्न यथार्थवादियों और मनोविश्लेषण वादियों तथा सूचनापरक आश्वस्तियों के सर्जकों को कोई कोट नहीं करता।

6.  दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सबकुछ तय कर देने वाले गिनती के कुछ लोग हैं। उदयप्रकाश जैसे फैसलों से विचलित और हतप्रभ होते रहे हैं आज उनका फैसला उससे बड़ी सनसनी है। यानी हर क़िस्म का साहित्यिक फैसला एक सी परिणति में है।

7.  अब कुछ दिनों तक शायद शुभम श्री की तरह कविताएं लिखी जाएँ। यह और इनकी अन्य कवितायेँ हिंग्लिश से भरपूर है। इसमें अनुवाद की भी सम्भावना है। हिंदी का परम्परागत पाठक भले इसे हृदयंगम न कर पाए, कोई भी दो वाक्य तक न उद्धरित कर पाए लेकिन वे बैठकें गुलज़ार रहेंगी जो शहडोल के किसी किसान को डोनाल्ड ट्रंप के किसी बयान से प्रभावित कर लेना चाहती हैं।

8.  उम्मीद शुभम से भी है ही और यदि उदय जी से कोई नाराज़गी या असहमति भी हो तो उसका साहित्यिक महत्त्व भी है क्योंकि अब उदय जी कई अर्थों में प्रस्थान बिंदु हैं। लेकिन इस निर्णय के पक्ष में आयी उनकी दलील मेयार बदल देने की कामना से भरी है इसमें दो मत नहीं।

9.  अभी बहुत सी कविताएं लिखी जानी हैं। साहित्य में सर्वश्रेष्ठ होने का दावा मुझे निरर्थक लगता रहा है।

10.  सम्मान की बधाई ही होनी चाहिए।

-शशिभूषण (फेसबुक वाल, 11 अगस्त 2016)

Comments

Shashi Bhooshan प्रभु जोशी जी ने अपनी एक पोस्ट में दुरुस्त कहा है। मैं भी अपने एक दो साथियों की कविताओं का श्रोता रहा हूँ जो कहन में व्यंग्य, वाचालता, अपशब्द और यौनिकता का मेल रचते रहे हैं। कुछ कविताएं याद भी हैं। लेकिन उन्हें साहित्यिक श्रेष्ठताओं से इतर ही सुनने गुनने को बाध्य रहा हूँ।

आशंका तो है लेकिन मैं आश्वस्त हूँ कि ताज़ा पुरस्कार, पुरस्कार की तरह ही दर्ज रहेगा। यह कविता की श्रीहीन धारा नहीं निर्मित कर पायेगा। यह रही उनकी पोस्ट-

“कल मुझे भारत भूषण सम्मान से विभूषित नवोदिता शुभम श्री की कविताएं, युवा कथाकार शशिभूषण के सौजन्य से पढ़ने को मिली।

उनको पढ़ने के बाद मुझे अपने कॉलेज के एक साथी छात्र की याद हो आई और मैं अफ़सोस से भर गया।

वह तो, पुरस्कृत कविता के प्रकाश में आने के 40 साल पहिले पैदा हो गया।

मुझे साथ ही ख़ुशी हुई, उसके हिन्दू होने पर। क्योंकि उसकी मृत्यु हो चुकी है। और हिन्दू होने के कारण उसका दाह संस्कार कर दिया गया।

अगर वह मुसलमान होता तो कब्र से उसकी लाश को उखाड़ कर, अगले वर्ष का, भारत भूषण अवार्ड दे दिया जाता।

वह कविता सुनाता रहता था। अपनी चुनी हुई मित्रमंडली में।
उसकी भाषा, निर्दोष बालपन के धोखादेह भोलेपन से भरी होती थी।

वह अश्लीलता को तत्सम शब्दों की परतों अरबी के पत्तों पर, लपेटे जाने वाले बेसन की तरह लपेटता, फिर अंग्रेजी के स्लैग के शब्दों को बीच बीच में मसाले की तरह बुरक देता।

उसकी कुछ कविताओं के शीर्षक थे- 'लंडन प्रवास और गुलाबी चूड़ी।' 'शिश्न की साज-संभाल।' उन दिनों, परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत LOOP उपकरण आया ही आया था।

सैनेटरी नैपकिन की पीड़ा और प्रश्न से जुडी कविता तो पुरस्कृत प्रतिभा ने अब लिखी लेकिन उसने LOOP के प्रति सहानुभूति से एक कविता लिखी थी।

लूप बन जाऊंगा, पर शर्त ये है, मगर...
एक कविता थी, 'राजनीति की छिनाल'

उसमे SEX और राजनीति की पैरोडी बनाने की अद्भुत प्रतिभा थी। उसने, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, सुमित्रानंदन पंत की कविताओं की कई पैरोडी तैयार की थीं।

चलिये, आप सब उस प्रतिभा के अकाल अवसान पर मेरे साथ दो मिनिट का मौन रखें।“
-प्रभु जोशी

Awesh Tiwari सहमत हूँ।शुभश्री के बहाने खुद को पुरस्कृत कर गए उदय प्रकाश

Shashi Bhooshan केंद्र में आ जाना उनकी सामर्थ्य या प्रकृति ही हैं।

Sandip Naik सही कहा भाई, कविता पर बात होने के बजाय व्यक्ति पर सब केंद्रित हो गया जोकि दुखद है।

Kailash Mandlekar ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सा दयार है ।

Sneha Chauhan Baba · उफ़ ये मैनेजमेंट,वाकई ये काल हिस्टोरिकल होने वाला है।

Ramesh Verma Verma आज का अबूझा यक्ष प्रश्न ?

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