गुरुवार, 18 अगस्त 2016

गाय को कुछ नहीं आता है

गाय एक पशु है। यह भारत में तबसे है जब यहाँ चुनाव नहीं होते थे। जब यहाँ टीवी चैनल नहीं थे।

गाय जहाँ भी लोग रहते थे रह लेती थी। गाय का अपना कोई घर नहीं होता था मगर वह सदा एक घर में लौटती आ रही है।


गाय ने कभी नहीं कहा कि मेरी पूजा करो। गाय ने कभी मना नहीं किया कि मरने के बाद मेरी खाल मत उतारना। मेरी खाल के जूते मत बनाना।

गाय के पास भाषा नहीं थी। वह केवल बोल लेती थी। बोल लेती थी तो रंभा लेती थी। अपने बछड़े के लिए फुसकार लेती थी। गाय जब बोलने से अधिक भावुक होती थी तो अपने रखवाले का हाथ अपनी खुरदुरी जीभ से चाट लेती थी। वह आज तक यही करती है।

गाय कृतिकार नहीं रही। वह कलाकार नहीं थी। वह दूध देती थी। सारा दूध अपने बछड़े को पिला देना उसके हाथ में नहीं था।

गाय अपना दूध नहीं पीती जब लोगों ने जाना तो उसके बछड़े से भी छीन लिया यह देखकर भी वह आक्रामक नहीं हुई। क्योंकि वह रहते रहते प्यार करना, दया करना सीख गयी थी।

गाय ने कृष्ण की बांसुरी सुनी, उसने चुनावी भाषण सुने, उसने टीवी के विज्ञापन सुने। गाय ने केवल गरीब बच्चों का दूध के लिए तड़पना ही नहीं सुना।

गाय बकरी से नहीं लड़ी। गाय ने भेड़ को नहीं मिटाया। गाय ने शायद ही कभी सोचा हो कि वह भैंस से श्रेष्ठ है।

गाय चरानेवाले, भेड़ चरानेवाले, बकरी चरानेवालों के बच्चे जब खून की नदी बहा देनेवाली लड़ाई लड़े तब गाय को नहीं मालूम था आगे कैसी दुनिया बननेवाली है।

गाय दरअसल जीवन के बारे में, मनुष्यों के बारे में उतना ही जानती है जितना कोई पशु जानता है। उसमें करुणा है कि नहीं उसकी आँखों में झाँककर कोई इंसान ही बता सकता है।

गाय ने सोचा भी नहीं होगा कि उसके मांस या खाल से जीनेवाले गरीबों को एक दिन उसका दूध पीनेवाले पीट पीटकर मारेंगें। चूँकि वह पशु है इसलिए वह कोई सांस्कृतिक मातम भी नहीं मना सकती।

गाय राजनीति के बारे में और भी कम जानती है। उसे विज्ञान संबंधी अपनी खूबियों का पता नहीं। गाय क्या जाने कि वह सोना मूत सकती है, आक्सीजन छोड़ सकती है।

गाय यह भी नहीं जानती कि आज वह संकट में है या मजे में। भविष्य में वह पूरी तरह नष्ट कर दी जायेगी या भेड़ या भैसों या बकरियों को ख़त्म कर उसे आबाद करा दिया जायेगा।

गाय सभा नहीं कर सकती। लाल किले पर अपना प्रतिनिधि नहीं भेज सकती। गाय कानून नहीं बना सकती। गाय यह भी नहीं जानती कि दुनियाभर के दीन जब अन्याय के विरोध में लड़ने के लिए एकजुट होने के लिए सोचते भर हैं उससे पहले भाषा में हर लड़ाई जीतकर युद्ध समाप्ति के बाद की शांति का ऐलान कर दिया जाता है।

गाय को सचमुच कुछ नहीं आता है। वह किसी की माता है। कोई उसे खाता है। कोई मरता है कोई मरवाता है। वह नहीं जानती लोकतंत्र बांस है कि छाता है।

गाय को अगर कुछ मालूम है तो यह कि अब उसे ऐसे नहीं देखा जाता जैसे इंसान उन्हें देखा करते थे जिनमें जान होती है। पशुओं को इंसानी निगाह से देखनेवाले इंसान कम हो रहे हैं वह देखती है।

गाय जान गयी है स्वर्ग, नरक से ऊपर अब उसे हड्डी, मांस, दूध, मूत्र, गोबर, वोट आदि की नज़र से देखा जाता है। पहले उसे कोई किसान, बच्चा, मां या कलाकार देखता था अब पत्रकार देखते हैं, नेता देखता है। चूँकि गाय पालतू बनने से पहले की दुनिया में लौट नहीं सकती इसलिए वह इस दुनिया को करुणा से देखती है।

गाय एक मूक पशु है। उसके हाथ नहीं हैं। वह दूध देती है। कुछ भी होने में पशु होने के कारण उसका कोई वश नहीं है।

गाय नहीं जानती वह मेरे लिखने का विषय है।

-शशिभूषण

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