मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

अस्सी ने मुझे प्यार दिया,लिखने की छूट दी और माफ़ भी किया:काशीनाथ सिंह


कहा जाता है कि कथा (कहानी,उपन्यास,संस्मरण जिसमें इसके सरोकार होते हैं) लोकतांत्रिक विधा हैं.लेकिन कम ही कथाकार हैं जिनकी रचनाओं में पात्रों का जनतंत्र दिखाई देता है.वे कथाकार जिनकी पहचान जनवादी लेखक होने की है भी उनकी सभी रचनाओं में लोकतांत्रिक मूल्य खोज लेना ऐसे ही है जैसे अपनी धरती से लगाव होने के कारण हर पत्थर को क़ीमती कहना.पर काशीनाथ सिंह को सच्चा लोकतांत्रिक लेखक कहना उन्हें जड़ अकादमिक वादों में बाँधने से बेहतर होगा.काशीनाथ सिंह ऐसे उपन्यासकार-संस्मरण लेखक हैं जिनकी रचनाओं के पात्र बाक़ायदा उन्हें पढ़ते हैं.वे खाली पाठक ही नहीं,हस्तक्षेप करने,झगड़ पड़नेवाले,इस लेखक को प्यार करनेवाले साथ ही अपने अपने क्षेत्र के माहिर लोग भी हैं.सो काशीनाथ सिंह के सामने लाचार हुई तो वह समकालीन आलोचना होगी.काशीनाथ सिंह के बड़े फलकवाले लेखन पर कुछ सार्थक कहना हो तो एक बार अस्सी देखना पड़ेगा.अब तक तो यह होने भी लगा है.बनारस जानेवाले काशीनाथ सिंह जी के पाठक अस्सी खोजते हैं.

मैं पिछले दिनों जब बनारस में था सड़कों,बाज़ारों,घाटों में भटकते हुए कौन ठगवा नगरिया लूटल हो और पांड़े कौन कुमति तोहे लागी की अनुगूँज सुनता रहा.बनारस के बारे में जो सुना था वो सब एक तरफ़ यही कहानियाँ सच लगती रहीं.फिर एक जनवरी को काशीनाथ सिंह जी के जन्म दिन पर अस्सी में उन अधिकांश लोगों को देखने का मौका मिला जिन्हें मैं पात्रों के रूप में पढ़ता रहा था.मैं दंग रह गया.

काशीनाथ सिंह जी को मानने,जन्मदिन मनाने के लिए मना लेनेवाले जितने समर्थ हैं उसके उलट वे उतनी ही सादगी से जिसमें काफ़ी मस्ती भी शामिल होती है उनका जन्मदिन मनाते हैं.इस आयोजन मे इतनी ही औपचारिकता थी कि एक माईक था.इसके अलावा खड़े होने-बैठने की जगहें उनको थी जिन्हें मिल गई.अध्यक्ष प्रो.सत्यदेव त्रिपाठी हों या स्वयं काशीनाथ सिंह बैठने को जगह दे दी गयी थी.बैठने को सुविधाजनक नहीं बनाया गया था.हालत यह थी कि सड़क पर लोग थे भी वहीं से लौट भी जा रहे थे.मेरी स्थिति यों थी कि अध्यक्ष अगर जमकर बैठ जाते तो मैं पिस जाता दायीं ओर संचालक आशीष त्रिपाठी बैठने से बाहर हो जाते.पर एक वक्ता ने कह ही डाला कि गया सिंह जी ऐसे बैठे हुए हैं कि नये लोग उन्हें ही काशीनाथ सिंह समझ रहे हैं.वक्ता बोल भी ऐसे ही रहे थे जैसा वो अक्सर बोलते होंगे.बातें मज़ेदार भाषणबाज़ी का नामोनिशान नहीं.इस आयोजन में शामिल होना मुझे समृद्ध कर गया.मैं चाहता रहा कि कम से कम एक फ़ोटो खींच लूँ.पर एक बार बैठने को मिल गया तो फिर केवल बैठ और सुन ही पाया.मेरी बग़ल में देवेन्द्र जी थे उनकी बग़ल में चौथीराम यादव.मैं सोच रहा था चौथीराम जी का पता नहीं होना तो यहीं कहीं चाहिए पर मैंने जाना तब जब वे बोलने लगे.

खैर,कुछ बातें फिर होंगी अभी शुक्रिया चंद्रशेखर सिंह का जो मुझे इस कार्यक्रम तक ले गए.फोटो सहित विस्तृत रिपोर्ट भेजी.रिपोर्ट में मैंने कुछ संशोधन किए हैं उसके लिए क्षमा.फ़ोटो के बारे में सोच ही रहा हूँ काश और साफ़ होती.
-ब्लॉगर


यह मेरी ज़िंदगी का पहला ऐसा अनुभव है कि किसी रचना के पात्र सचमुच लेखक से इस तरह रू-ब-रू हों और यह भी कि लेखक के जन्मदिन पर आयोजित नितांत अनौपचारिक समारोह में उतनी ही बेलौस ढंग से बातचीत करें.जितनी की लेखक करता है.अपनी पीढ़ी के लगभग सभी लेखकों से ज़्यादा सक्रिय,आज भी अपनी रचनात्मक ऊर्जा को विभिन्न प्रयोगधर्मी शिल्पों में उतने ही प्रभावशाली ढंग और दमखम के साथ साहित्य जगत में दर्ज़ कराने वाले प्रसिद्ध कथाकार-उपन्यासकार प्रो.काशीनाथ सिंह का चैहत्तरवाँ जन्मदिन काशी के अस्सी घाट पर जयप्रकाश पोई की चाय की दुकान में मनाया गया.इस मौक़े पर उन्हीं की रचनाओं के जीवित पात्र, लेखक,रंगकर्मी,नेता,छात्र और उनके चाहने वाले बड़ी संख्या में उपस्थित थे.काशीनाथ सिंह हिन्दी के शायद ऐसे विरले लेखक हैं जिनको रचनाजगत के बाहर, आम लोगों का इतना प्यार और सम्मान मिला है. वर्ष के पहले दिन आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.सत्यदेव त्रिपाठी ने की.उपस्थित लोंगों में प्रमुख थे-प्रो.चौथीराम यादव,प्रो.बलराज पाण्डेय,कथाकार देवेन्द्र,डा.वाचस्पति,डा.बी.के.सिंह(लखनऊ),डा.मनोज ठक्कर(इंदौर),शशिभूषण(चेन्नई) आदि.

कार्यक्रम की शुरूआत शशिभूषण के वक्तव्य से हुई उन्होंने कहा काशीनाथ सिंह ऐसे लेखक हैं जिनके लिखे हुए को जीने की इच्छा होती है.सदी का सबसे बड़ा आदमी कहानी पढ़कर मैंने सीखा कि स्वयं को थूक से बचाना है.राही मासूम रज़ा के बाद काशीनाथ सिंह मेरे दूसरे प्रिय लेखक हैं.जिस तरह ताल्सताय को समझने के लिए गोर्की द्वारा लिखा ताल्सताय पर संस्मरण देखना जरूरी है उसी तरह नामवर सिंह को समझने के लिए काशीनाथ सिंह का संस्मरण घर का जोगी जोगड़ा पढ़ना ज़रूरी है.काशीनाथ सिंह से हिंदी कहानी की एक परंपरा शुरू होती है.

चन्द्रशेखर सिंह ने उनकी रचनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि काशीनाथ सिंह अपनी क़िस्सागोई, फक्कड़पन और भाषा की मौलिकता के लिए हमेशा याद किए जाएंगे.

शशि कुमार सिंह का कहना था कि काशीनाथ सिंह मूलतः कथाकार हैं और कहानीपन उनकी रचना का मूल है, चाहे वे किसी भी विधा में लिख रहे हों.

डॉ.वाचस्पति ने कहा कि काशीनाथ सिंह को किसी साँचे में फिट नहीं किया जा सकता है.वे साँचे खुद बनाते और खुद तोड़ते हैं.

लखनऊ से आए डॉ. बी.के. सिंह ने कहा कि आज यह देखने की ज़रूरत है कि रचनाओं में सत्य को देखने की ताक़त क्यों नहीं आ रही है?काशीनाथ सिंह अपनी रचनाओं में इस समस्या से मुठभेड़ करते हैं.उनकी रचनाओं ने लेखक और पाठक के बीच की दूरी को समाप्त किया है.

डॉ.गया सिंह ने कहा कि काशीनाथ सिंह हमेशा नएपन की तलाश में रहते हैं.खुद को बदलते है और अपनी रचनाशीलता से तरूण रचनाकारों को भी चैलेंज करते हैं.

इस मौक़े पर काशीनाथ सिंह के शिष्य रहे प्रो.बलराज पाण्डेय ने कहा कि मैंने गया सिंह और काशीनाथ जी के संबंधों को बहुत क़रीब से देखा है मुझे पता था कि ये नाराज़गी एक दिन दूर होगी इसलिए इनमें से किसी से भी मैंने दूसरे की आलोचना नहीं की.इस संबंध में एक बात और कि यह जन्मदिन मनाने की शुरुआत मैंने की थी जिसे गया सिंह ने उसी तरह हथिया लिया जैसे बक़ौल काशीनाथ सिंह शिवप्रसाद सिंह रूपी पौधे को त्रिभुवन सिंह ने अपने गमले में रोप लिया था.काशीनाथ सिंह से मैंने जीना सीखा.उनका व्यक्तित्व ऐसा है कि वे कभी आपसे यह नहीं कहेंगे कि आप ये करें या न करें पर उनके साथ रहते हुए सचमुच ऐसा है कि कोई भी लेखक हो जाएगा.प्रशंसा और आलोचना को समान रूप से ग्रहण करना काशीनाथ सिंह की ख़ासियत है.

‘क्षमा करो हे वत्स’, ‘नालंदा में गिद्ध’ तथा ‘शहर कोतवाल की कविता’ जैसी यादगार कहानियों के लेखक कथाकार देवेन्द्र ने कहा कि मैं काशीनाथ जी का शिष्य रहा हूँ,लेखन की तमीज़ मैंने काशीनाथ सिंह से सीखी.मैं काशीनाथ जी की अधिकांश रचनाओं का छपने से पहले का पाठक रहा हूँ.पर मैंने कभी अपनी असहमति के साथ समझौता नहीं किया.काशीनाथ जी ने सहमत होने का कभी दवाब भी नहीं डाला.इसका एक उदाहरण काफ़ी होगा कि काशीनाथ जी प्रलेस में हैं और मैं नहीं हूं.पर यहाँ आज मैं यह सब देखकर अभिभूत हूँ और उपन्यास रेहन पर रग्घू पर जो मैंने आलोचनात्मक लिखा है उसे वापस लेता हूँ.

काशीनाथ सिंह के पुराने साथी और सहयोगी रहे प्रो.चैथीराम यादव ने कहा कि काशीनाथ सिंह को अमर बनाने के लिए काशी का अस्सी ही पर्याप्त है.इस कृति में सभी विधाओं का मेल है.इसकी भाषा का अनुकरण असंभव है.काशीनाथ सिंह लोकरंगी कथाकार हैं।अपने पुराने दिनों को याद करते हुए प्रो. यादव ने कहा कि काशीनाथ सिंह को जितनी कहानी की समझ है उतनी ही गहरी कविता की भी समझ है.मैंने आधुनिक कवियों को उनसे पढ़कर पढ़ाना सीखा.धूमिल की कविता पर उनका लेख ‘विपक्ष का कवि: धूमिल’ आज भी धूमिल को समझने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है.

इस अनौपचारिक गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रो.सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा कि काशीनाथ सिंह ने अस्सी को ग्लोबल बना दिया.संस्मरणों को काशीनाथ सिंह ने श्रेष्ठ पहचान दी.इनके संस्मरणों को पढ़ाना वाक़ई साहस का काम है.

इस अवसर पर रवीन्द्र कौशिक,सुबेदार सिंह, अशोक पाण्डेय, सरोज जी, मनोज ठक्कर आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

अंत में काशीनाथ सिंह ने नए वर्ष की शुभकामना के साथ सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आप सब साथ रहें तो सौ साल जीने का मतलब है अकेले मुझे नरक में न ठेलें.आज अपनी इतनी प्रशंसा सुनकर लग रहा है कि जिस पर इतनी बातें हो रही हैं वह कोई दूसरा आदमी है.मित्रो,इस आयोजन के बारे में भी एक बात बता दूँ कि कई सालों तक मैं नहीं आया.मेरी अनुपस्थिति में ही यह मनता रहा.बाद में सोचा कि चलना ज़रूरी है वरना लोग मरा हुआ न समझ लें इसलिए अब आ जाता हूँ.आप लोगों से मुझे कुछ नया और सार्थक करने के लिए चैलेन्ज मिलता है.मैं भाग्यशाली हूँ कि अस्सी के लोगों ने मुझे इतना प्यार दिया, लिखने की छूट दी और माफ़ भी किया.यह अस्सी ही है जो मुझे लिखने की ताक़त देता है.अस्सी बनारस का ही नहीं भारत का ऐसा मोहल्ला है जहां आधुनिकता और परम्परा साथ-साथ चलते हैं.बलराज पाण्डेय द्वारा उटाये गये एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा-कोइ चीज़ जिंदगी से बड़ी नहीं होती.सो मैंने राम जी राय के लिए खड़े होने को नौकरी से ऊपर रखा.उनके पक्ष में कोर्ट में गवाही दी.

कार्यक्रम का संयोजन डॉ.गया सिंह ने और संचालन डॉ.आशीष त्रिपाठी ने किया.सभी उपस्थितों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया डॉ.शैलेन्द्र कुमार सिंह ने.


चन्द्रशेखर सिंह
हिन्दी विभाग,बी.एच.यू.

4 टिप्‍पणियां:

  1. काशीनाथ जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं। संस्मरण लेखन में उनका कोई विकल्प नहीं है। हालाँकि नामवर जी पर लिखते वक्त उन पर भातृप्रेम हावी हो गया था। काशी का अस्सी ने अस्सी को हिन्दी साहित्य में स्थापित कर दिया।

    आप पोस्ट की एडीटिंग पर थोड़ा ध्यान देते तो हम पाठकों को सुविधा होती। हर छोट-बड़े पैरे के बाद के बाद स्पेस दे दे तो बेहतर पठनयीता बनेगी। लेफ्ट-राइट का अलाइनमेंट इवेन कर दें, उससे भी बेहतरी आएगी।

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  2. शुक्रिया रंगनाथ जी.स्पेस देने का आपका सुझाव कर पाया.लेफ्ट-राइट का अलाइनमेंट इवेन करना अभी मुझे सीखना है.पर जल्दी ही सीखूँगा.

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