गुरुवार, 10 जून 2021

सारस्वत प्रार्थना

फिर ईश्वर ने शशिभूषण से ऐसी सारस्वत प्रार्थना लिखने को कहा जिसमें धर्मग्रंथों का सार हो। शशिभूषण ने वैसी सारस्वत प्रार्थना लिखकर ईश्वर को सौंप दी ।


हे ईश्वर
तू एक है
मैं एक हूँ
धर्म एक हैं
शासक एक हैं
तुम्हारे लिए धर्मों के लिए शासकों के लिए
संसार में अनेक हैं
सब हैं।

हे ईश्वर
मेरे ज्ञान को
धर्म के लायक बना
शासकों के लायक बना
अपने लायक बना
शासक राज्य को धर्म के लायक बनाएं
तुम्हारे लायक बनाएं
मुझसे शासकों की प्रशंसा करवा
मुझे धर्म पर चला
लोग मुझे मानें
मैं शासक को
शासक धर्म को
धर्म तुम्हें
यह सिलसिला जल थल वायु में
जहां जहां मनुष्य वास करें
कभी ख़तम न हो।

हे ईश्वर
मुझे सारस्वत बना
विद्यावान गुणी चतुर बना
मुझसे अनेक पुस्तकें लिखवा
मेरी पुस्तकों के समीक्षक पैदा कर
मेरी पुस्तकों को सम्मान दिला
मुझे पद पुरस्कार दिला
संसार में पुस्तकें अमर रहें।

हे ईश्वर
तू ही है एक
तेरे आगे कोई नहीं
जगत कुछ नहीं
हमेशा ऐसा रख सबको
कुछ न चल सके तुम्हारे बिना
न लोक न परलोक
न धरती न स्वर्ग
न भक्त न विभक्त।

हे ईश्वर
मैंने तुम्हारी कल्पना की
तुम्हारी अभ्यर्थना की
तुमसे याचना की
तुम्हारी सारस्वत प्रार्थना की
मेरी कल्पना अभ्यर्थना याचना को सच बना
मेरी  सारस्वत प्रार्थना सर्वव्यापक कर
मेरी पुस्तकों को  ईश्वरीय बना।

हे ईश्वर
इसे सदा सत्य साबुत रख
मनुष्यता ईश्वर
शासक धर्म
शासन विद्या
एक हैं।


©शशिभूषण

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