शनिवार, 5 जून 2021

पत्रकार-बुद्धिजीवी सफ़ाई वाला बनें

मैं कम पढ़ा-लिखा रह गया। इसका बड़ा अफ़सोस है। इसके दो कारण हैं। जीवन की शुरुआत में पढ़ाई के उतने साधन नहीं थे। बाद में जब शिक्षा के साधनों तक पहुंचा तब तक दुनिया में इन्टरनेट आ गया। मेरे नौकरी करके जीने का समय हो गया। मीडिया और सोशल मीडिया ने मिलकर मेरे पढ़ने-जानने के लिए उड़ने वाले पंख कतर दिए। जो काम मजबूरी न कर पायी थी उसे कथित सुविधा ने कर दिखाया। अब मैं ज़्यादातर पोस्ट बराबर पढ़ता हूँ और ट्वीट बराबर लिखता हूँ। यह आत्महंता लत है।

लेकिन मैं मानता हूँ किसी भी भाषा-देश के पत्रकार को बहुत पढ़ा-लिखा इंसान होना चाहिये। मेरे ख़याल से पढ़ने-जानने का पत्रकारिता से सम्बन्ध ऐसा है कि आप एक सीमा से आगे जैसे ही जानेंगे आप पत्रकार होते जाएंगे। जाने और ख़ुलासा न करे अथवा जाने और शासन न करना चाहे ऐसा इंसान के साथ कम ही होता है। साहित्य का सम्बंध अनुभूति से है मगर पत्रकारिता का सम्बंध जानने से है। जिस साहित्य में जानना अधिक हो उसे पत्रकारीय साहित्य भी कह सकते हैं। हालांकि यहां पत्रकारीय साहित्य कहकर साहित्य का अवमूल्यन करना मेरा उद्देश्य नहीं। मूल बात पर लौटते हैं। जैसे अनुभूति विवश कर देती है जानना भी बेचैन कर देता है।

तुलना करने की छूट मिल जाये तो कहूँगा आप अनुपम मिश्र से अच्छा उनसे आगे का पत्रकार तभी हो सकते हैं जब उनसे अधिक समझने-जानने लगेंगे। नल बन्द करने की जागरूकता और पृथ्वी के जल की चिंता में धरती आसमान का अंतर है। हालांकि कोई मसखरा कह सकता है कि आपको अनुपम मिश्र से बड़ा पत्रकार बनने के लिए उनसे बड़ा गांधीवादी होना पड़ेगा। हालांकि इस मसखरी में भी एक संदेश होगा। गांधी जैसे मनुष्य समाज के लिए जल जितने ही ज़रूरी हैं। कोई अधिक सयाना यह भी कह सकता है, श्रेष्ठ पत्रकार होने के लिए सन्त होना आवश्यक नहीं। वेद प्रताप वैदिक भी अच्छे पत्रकार हैं।

एक विचित्र कम पढ़े लिखों जैसा ही उदाहरण दें तो कह सकते हैं पत्रकार होना जानने के बल पर सफ़ाई वाला होना है। जैसे शरीर के बल पर सफ़ाई वाला मनुष्य होना। कब कहाँ किस नाले, मैनहोल, गन्दगी में उतरना पड़े पता नहीं। इनकार का कोई स्थान नहीं। साधन के नाम पर अंततः बच्चों के दूध की क़ीमत पर खरीदी गयी सिर्फ़ सस्ती शराब की बेहोशी का सहारा। जीवन में कुछ नहीं केवल ज़िंदा रहने भर की मजदूरी और कभी भी मर जाने का स्वीकार। सोचिए कितने गन्दे समाज होंगे जहां के महा नगरों में सफ़ाई वाले गंदे और घृणा तथा मृत्यु के सन्निकट रखे जाते हैं !

आमतौर पर पत्रकार को बुद्धि बल से इशारे या पूछकर सफ़ाई कर देने वाला माना जाता है। मगर कम लोग हैं जो जानते हैं किसी प्रकार की सफ़ाई के लिए अपना मोह छोड़ना पड़ता है। सफ़ाई का यहां मतलब सफ़ाई से ही है, सफाया नहीं। पत्रकार स्वतंत्र मष्तिष्क, आत्मनिर्भर, सफ़ाई वाला होता है। तभी वह समाचार से समाज -संसार में स्वच्छता ला सकता है।

मैं जब बड़े-बड़े पत्रकारों को देखता हूँ तो मुझे वे नगर निगम के सफ़ाई कर्मचारियों के कम पढ़े लिखे अधिक बलिष्ठ सरदार नज़र आते हैं। जिन पर शासन और शोषण तथा क्रूरता का टनों सदियों पुराना बोझ होता है। इन सरदारों के रहते शहर में गंदगी का क्या आलम होता है आप जानते ही हैं। कभी-कभी आपने देखा होगा ये नाला साफ़ कर सड़क में ही कूड़े की मेड़ बना देते हैं। कहना चाहिए कम पढ़े लिखे बड़े पत्रकार लढ़े अधिक होते हैं। वो कहावत है न, पढ़ा कम लढ़ा ज़्यादा।

अजीब लगेगा। मूर्खता पूर्ण लगने की अधिक संभावना है फिर भी कहूँगा, बिना सर्वाधिक जाने सन्त हुए आप पत्रकार या बुद्धिजीवी नही हो सकते। माफ़ करें सन्त होने का मेरा अभिप्राय महान बनना नहीं है। बल्कि एक ऐसी जीवन शैली अपनाना है जिसमें स्वस्थ और करुणावान रहते सफ़ाई जैसा काम प्रेमपूर्वक मेहनत से और लगातार किया जा सकता है।

यह सन्तोष की बात है कि हिंदुस्तान अच्छे पत्रकारों का देश रहा है। लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आजकल पत्रकारों में सरदार ही सरदार नज़र आते हैं। मीडिया हाउस समाचारों के बूचड़खाने हैं। पत्रकार होकर लोग नागरिकों, राजनीतिकों से भी कम पढ़े लिखे हैं। पढ़ाई बहुत ज़रूरी है। इससे मनुष्यता आती है। उस देश की शिक्षा का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं जहां कम पढ़े-लिखे पत्रकार अंत में राज्यसभा पहुँचकर ही अपनी नासमझी छुपा पाते हैं।

मैं जानता हूँ पत्रकार मेरी इन बातों पर बाज जैसे टूट पड़ें अगर वे मान लें मेरे प्रसिद्ध हो जाने अथवा न होने से अधिक ज़रूरी है ऐसे उपदेश का विरोध जिसमें दावा हैसियत से ज़्यादा है। मगर ऐसा कुछ नहीं होगा। मेरी बातें वाक़ई कम पढ़े लिखे इंसान के मन की बाते हैं। केवल शीर्षक को अति आत्मविश्वास वाली थोड़ी चतुराई दे दी गयी है। कोई बात नहीं।

आप केवल इतना ध्यान रखें चीज़ गन्दी हो जाये तो उसे साफ़ कर देना चाहिए। इंसान बदला न जा सके तो उसे हरा देना चाहिए। सफ़ाई भी लड़ाई है। गंदगी की सफ़ाई करें। गंदगी फैलाने वालों से लड़ें भी। सबसे अधिक ज़रूरी है सफाया करने वालों से धरती की सफ़ाई। लोकतांत्रिक फ़ासीवाद और धार्मिक राष्ट्रवाद गंदगी हैं। इसे साफ़ करने के लिए आगे आएं और पत्रकार-बुद्धिजीवी बनें। धन्यवाद !


शशिभूषण

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