मन को टीके नहीं लगाये जाते
दो बूँद ज़िंदगी की
मन को कौन पिलाता है?
दुर्घटनाओं में भी
मन मारे जाते हैं
मुआवज़ा नहीं मिलता
मन का बीमा कौन कराता है?
तन अपंग हो तो जीवन कब रुकता है?
मगर मन कोढ़ी हो तो
पूरा पड़ोस गंधाता है।
जो तन से दुखियारे हैं
वो कम हारे हैं
पर जिनके मन में अँधियारे हैं
सबसे बेचारे हैं।
क्या बात है, उम्दा !
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