मोहल्ला लाइव में प्रकाशित यह व्यंग्य लेख कुछ सरल संशोधनों के साथ यहाँ आपसे साझा कर रहा हूँ। -शशिभूषण
मित्रो,
मैंने सब तरह के विचारों को ज़रूरत भर का समझ लिया। हर दिशा में मेरे संबंध बन गये। जहाँ मेरे संबंध नहीं हैं वे क्षेत्र भी मेरे नाम से किसी न किसी रूप में अवगत हैं। जहाँ मैं नहीं हूँ वहाँ मेरा डर है। मुझे लगता है किसी चली आती विचारधारा, समूह या संगठन के खूँटे से बँध जाना मेधा अवसर और आकाश का अपमान है। सीधे-सीधे लकीर पीटना है। सिंह, शायर और सपूत अपनी राह चलते हैं। मंच और सम्मान उसके होते हैं जो उन्हें जीतता है। मेरी रचनात्मकता की शुरुआत बड़ी सहज और योग्य मार्गीय रही। पहले मेरे संपादकीय पतों पर भेजे पत्र छपे, फिर मेरे किये अनुवाद पत्र-पत्रिकाओं में सराहे गये। कालांतर में मेरी रचनाएं भी छपी। इधर मैंने कंप्यूटर पर हिंदी टाइप करना और समाज में अंग्रेज़ी बोलना भी सीख लिया। एसएमएस, ईमेल आदि करना मुझे पहले ही आ गया था। पत्रकारिता और समीक्षा में भी मेरा खासा दखल है। मेरी वक्तृता ऐसी है जो शिक्षण और मीडियाकर्म को मिला दिये जाने से निर्मित होती है। कोरी साहित्यिक दुनिया से निकलकर मैंने फिल्म जगत में भी अपनी रिव्यू एबिलिटी से जगह बना ली है। मैं राजनीति में स्वतंत्र रूप से रहने की आवश्यकता इसलिए नहीं समझता क्योंकि ईश्वर की तरह राजनीति हर जगह होती है। कोई राजनीति नहीं सबसे सफल राजनीति होती है। इसे मैं समझता हूँ।
अब मुझे किसी से कुछ पूछने यानी मार्गदर्शन जैसा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। पैर छूने के नाम पर मैं एकदम लाल हो जाता हूं। इन सब बातों को स्पष्ट करने का मक़सद यह है कि मैं खुद को बुद्धिजीवी घोषित करना चाहता हूं। क्योंकि यह अपनी क्षमताओं के भी प्रकटीकरण का ऐसा समय है कि अगर आप न बतायें तो कोई आपको मूर्ख भी न माने। मैं इसी वक्त यह करना चाहता हूं क्योंकि इस संपन्न युग में अगर किसी का सार्टेज सबसे ज़्यादा है तो वह वक्त है। बाक़ी सारे अभाव साज़िशे हैं। ऐसा करके मेरी किसी बड़े अखबार, पीठ, परिषद, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में से कहीं नियुक्ति की दावेदारी अकाट्य हो जायेगी। यानी जीविका जो सबसे ज्यादा असुरक्षित रखती है मेरी मुट्टी में रहेगी। मैं आत्मविश्वास के साथ सोच सकूँगा नौकर भी हूँ मैं। कभी मौत, जिसका कोई ठिकाना नहीं होता, आ जाएगी तो मैं चेलों, प्रेमिकाओं और मधुमेह के बिना नहीं मरूंगा। मेरी कुछ और विशेषताएं भी हैं। मसलन मैं अब एक खास समूह, जिसके विचार नीचे लिखे हैं, के अनुसार सोचता हूं (इन विचारों का कविता की तरह लगना महज संयोग है। ये कुछ आत्मालाप तो कुछ मुखर कथन हैं। असल कविता से इनका कोई संबंध नहीं है।)
देखिए हमसे मत उलझिए
हम एक बात को कई तरह से बयान कर सकते हैं
एक बयान की जब जैसी ज़रूरत हो व्याख्या कर सकते हैं
हम कभी अच्छे रचनाकार को घटिया इंसान कहेंगे
कभी बहुत अच्छा इंसान कह कर घटिया रचनाकार कहेंगे
हम जो भी कहेंगे दमदार कहेंगे
बड़े-बड़ों की हवा निकाल देने के लिए कहेंगे
हम सिर्फ़ कहेंगे नहीं, सिद्ध भी करेंगे
हमारा कहना सिद्ध होगा
हम सिद्धि के रथ पर सवार चलेंगे
प्रसिद्धि का राज करेंगे
हम बातों को काम से तौलेंगे
कामों में भाषायी नुक्स निकालेंगे
हम जनाकांक्षा को भेड़चाल कह सकते हैं
आंदोलन को विचारहीन भीड़ बनाकर पेश कर सकते हैं
हम मुस्कुराते रह सकते हैं
आंखें अंगार रख सकते हैं
हम मौन रहेंगे
रंग में आ गये तो बहरा कर देंगे
हम किसी से नहीं डरते
हम श्रद्धा को चाटुकारिता कहेंगे
आदर को प्रशंसा की महत्वाकांक्षी योजना
श्रेष्ठ को भ्रष्ट बोलेंगे
हमारे पास यूं तो कोई तर्क नहीं है
पर हम आरोप लगा सकते हैं
ऊंचे को बौना दिखा सकते हैं
निंदा अभियान चला सकते हैं
मैं उपरोक्त विचारों तथा स्वीकृतियों के आलोक में खुद को बुद्धिजीवी घोषित करता हूं तथा अपना यह घोषणा पत्र बिंदुवार सार्वजनिक करता हूं। ध्यान दें कि यह घोषणा पत्र आवश्यकतानुसार परिवर्तनीय है।
1 – मैं आपसे विनम्रता और ईमानदारी की उम्मीद करता हूं। आपने किसी के प्रति श्रद्धा रखी या कोई सफलता पायी, तो मैं आपको चाटुकार कहूंगा।
2 – आप मेरे पक्ष में भले न बोलें पर मेरे योगदान पर अवश्य बोलें। याद रखें आपने मेरी आलोचना की, तो मैं आपको फासिस्ट कहूंगा।
3 – जातिवाद किसी क़ीमत पर मिटना चाहिए लेकिन यह कोशिश किसी ने ग़ैर दलित होते हुए की तो मैं उसे ब्राह्मणवादी कहूंगा।
4 – समाजवाद आना ही चाहिए लेकिन यह कोई दूसरा वामपंथी समूह लाना चाहेगा, तो मैं उसका बहिष्कार करूंगा। इस संबंध में कोई भी नैतिकता जो मुझसे सत्यापित नहीं होगी, उसे मैं रिजेक्ट कर दूंगा।
5 – मैं चाहता हूं दुनिया का हर शख्स मार्क्सवादी बने। लेकिन किसी ने ख़ुद को असल मार्क्सवादी कहा, तो मैं उसकी बाट लगा दूंगा।
6 – वर्तमान के सारे क्रांतिकारी बौने और भ्रष्ट हैं। मैं किसी को आदर्श कहने या सुधारने के चक्कर में नहीं पड़ूंगा। आराम से भविष्य का क्रांतिकारी बनूंगा।
7– मुझे कोई पुरस्का र नहीं चाहिए लेकिन मुझे मेरी योग्यता से ज़्यादा नहीं मिला, तो मैं पुरस्कारों को नंगा कर दूंगा।
8 – मैं जानता हूं अपनी ज़िंदगी जीते हुए मैं साहित्य में दलित, स्त्री, किसान, क्रांति, समाजवाद या लोकतंत्र जो भी लाऊं, अंतत: कहन की सफलता और शिल्प ही होंगे पर दूसरे गुट के साहित्यकारों ने ऐसा किया तो उन्हें कलावादी कहूंगा।
9- मैं प्रेम और स्वतंत्रता के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहूँगा। लेकिन औरों ने प्रेम में स्वतंत्रता चाही तो उन्हें लंपट कहूँगा।
10- मैं शैक्षिक सुधारों हेतु कभी हस्तक्षेप अथवा प्रयास नहीं करूँगा, शिक्षकों की एक नहीं सुनूँगा मगर परिवर्तन विरोधी समाज के लिए राजनीति और शिक्षा को बराबर ज़िम्मेदार ठहराऊँगा।
11 – मैं मतदान करने तक नहीं जाऊंगा पर राजनीति पर बोलूंगा तो ज्योति बसु और बाल ठाकरे को एक जैसी गाली दूंगा।
मेरे इस घोषणापत्र को पढ़ने के बाद अब आपका नैतिक दायित्व बनता है कि आप मेरे अनुयायी बनें। साझे प्रयासों से निर्मित होनेवाली एक सचमुच की स्वायत्त बौद्धिक दुनिया में आप आमंत्रित हैं। आपका स्वागत है।
-शशिभूषण
मित्रो,
मैंने सब तरह के विचारों को ज़रूरत भर का समझ लिया। हर दिशा में मेरे संबंध बन गये। जहाँ मेरे संबंध नहीं हैं वे क्षेत्र भी मेरे नाम से किसी न किसी रूप में अवगत हैं। जहाँ मैं नहीं हूँ वहाँ मेरा डर है। मुझे लगता है किसी चली आती विचारधारा, समूह या संगठन के खूँटे से बँध जाना मेधा अवसर और आकाश का अपमान है। सीधे-सीधे लकीर पीटना है। सिंह, शायर और सपूत अपनी राह चलते हैं। मंच और सम्मान उसके होते हैं जो उन्हें जीतता है। मेरी रचनात्मकता की शुरुआत बड़ी सहज और योग्य मार्गीय रही। पहले मेरे संपादकीय पतों पर भेजे पत्र छपे, फिर मेरे किये अनुवाद पत्र-पत्रिकाओं में सराहे गये। कालांतर में मेरी रचनाएं भी छपी। इधर मैंने कंप्यूटर पर हिंदी टाइप करना और समाज में अंग्रेज़ी बोलना भी सीख लिया। एसएमएस, ईमेल आदि करना मुझे पहले ही आ गया था। पत्रकारिता और समीक्षा में भी मेरा खासा दखल है। मेरी वक्तृता ऐसी है जो शिक्षण और मीडियाकर्म को मिला दिये जाने से निर्मित होती है। कोरी साहित्यिक दुनिया से निकलकर मैंने फिल्म जगत में भी अपनी रिव्यू एबिलिटी से जगह बना ली है। मैं राजनीति में स्वतंत्र रूप से रहने की आवश्यकता इसलिए नहीं समझता क्योंकि ईश्वर की तरह राजनीति हर जगह होती है। कोई राजनीति नहीं सबसे सफल राजनीति होती है। इसे मैं समझता हूँ।
अब मुझे किसी से कुछ पूछने यानी मार्गदर्शन जैसा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। पैर छूने के नाम पर मैं एकदम लाल हो जाता हूं। इन सब बातों को स्पष्ट करने का मक़सद यह है कि मैं खुद को बुद्धिजीवी घोषित करना चाहता हूं। क्योंकि यह अपनी क्षमताओं के भी प्रकटीकरण का ऐसा समय है कि अगर आप न बतायें तो कोई आपको मूर्ख भी न माने। मैं इसी वक्त यह करना चाहता हूं क्योंकि इस संपन्न युग में अगर किसी का सार्टेज सबसे ज़्यादा है तो वह वक्त है। बाक़ी सारे अभाव साज़िशे हैं। ऐसा करके मेरी किसी बड़े अखबार, पीठ, परिषद, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में से कहीं नियुक्ति की दावेदारी अकाट्य हो जायेगी। यानी जीविका जो सबसे ज्यादा असुरक्षित रखती है मेरी मुट्टी में रहेगी। मैं आत्मविश्वास के साथ सोच सकूँगा नौकर भी हूँ मैं। कभी मौत, जिसका कोई ठिकाना नहीं होता, आ जाएगी तो मैं चेलों, प्रेमिकाओं और मधुमेह के बिना नहीं मरूंगा। मेरी कुछ और विशेषताएं भी हैं। मसलन मैं अब एक खास समूह, जिसके विचार नीचे लिखे हैं, के अनुसार सोचता हूं (इन विचारों का कविता की तरह लगना महज संयोग है। ये कुछ आत्मालाप तो कुछ मुखर कथन हैं। असल कविता से इनका कोई संबंध नहीं है।)
देखिए हमसे मत उलझिए
हम एक बात को कई तरह से बयान कर सकते हैं
एक बयान की जब जैसी ज़रूरत हो व्याख्या कर सकते हैं
हम कभी अच्छे रचनाकार को घटिया इंसान कहेंगे
कभी बहुत अच्छा इंसान कह कर घटिया रचनाकार कहेंगे
हम जो भी कहेंगे दमदार कहेंगे
बड़े-बड़ों की हवा निकाल देने के लिए कहेंगे
हम सिर्फ़ कहेंगे नहीं, सिद्ध भी करेंगे
हमारा कहना सिद्ध होगा
हम सिद्धि के रथ पर सवार चलेंगे
प्रसिद्धि का राज करेंगे
हम बातों को काम से तौलेंगे
कामों में भाषायी नुक्स निकालेंगे
हम जनाकांक्षा को भेड़चाल कह सकते हैं
आंदोलन को विचारहीन भीड़ बनाकर पेश कर सकते हैं
हम मुस्कुराते रह सकते हैं
आंखें अंगार रख सकते हैं
हम मौन रहेंगे
रंग में आ गये तो बहरा कर देंगे
हम किसी से नहीं डरते
हम श्रद्धा को चाटुकारिता कहेंगे
आदर को प्रशंसा की महत्वाकांक्षी योजना
श्रेष्ठ को भ्रष्ट बोलेंगे
हमारे पास यूं तो कोई तर्क नहीं है
पर हम आरोप लगा सकते हैं
ऊंचे को बौना दिखा सकते हैं
निंदा अभियान चला सकते हैं
मैं उपरोक्त विचारों तथा स्वीकृतियों के आलोक में खुद को बुद्धिजीवी घोषित करता हूं तथा अपना यह घोषणा पत्र बिंदुवार सार्वजनिक करता हूं। ध्यान दें कि यह घोषणा पत्र आवश्यकतानुसार परिवर्तनीय है।
1 – मैं आपसे विनम्रता और ईमानदारी की उम्मीद करता हूं। आपने किसी के प्रति श्रद्धा रखी या कोई सफलता पायी, तो मैं आपको चाटुकार कहूंगा।
2 – आप मेरे पक्ष में भले न बोलें पर मेरे योगदान पर अवश्य बोलें। याद रखें आपने मेरी आलोचना की, तो मैं आपको फासिस्ट कहूंगा।
3 – जातिवाद किसी क़ीमत पर मिटना चाहिए लेकिन यह कोशिश किसी ने ग़ैर दलित होते हुए की तो मैं उसे ब्राह्मणवादी कहूंगा।
4 – समाजवाद आना ही चाहिए लेकिन यह कोई दूसरा वामपंथी समूह लाना चाहेगा, तो मैं उसका बहिष्कार करूंगा। इस संबंध में कोई भी नैतिकता जो मुझसे सत्यापित नहीं होगी, उसे मैं रिजेक्ट कर दूंगा।
5 – मैं चाहता हूं दुनिया का हर शख्स मार्क्सवादी बने। लेकिन किसी ने ख़ुद को असल मार्क्सवादी कहा, तो मैं उसकी बाट लगा दूंगा।
6 – वर्तमान के सारे क्रांतिकारी बौने और भ्रष्ट हैं। मैं किसी को आदर्श कहने या सुधारने के चक्कर में नहीं पड़ूंगा। आराम से भविष्य का क्रांतिकारी बनूंगा।
7– मुझे कोई पुरस्का र नहीं चाहिए लेकिन मुझे मेरी योग्यता से ज़्यादा नहीं मिला, तो मैं पुरस्कारों को नंगा कर दूंगा।
8 – मैं जानता हूं अपनी ज़िंदगी जीते हुए मैं साहित्य में दलित, स्त्री, किसान, क्रांति, समाजवाद या लोकतंत्र जो भी लाऊं, अंतत: कहन की सफलता और शिल्प ही होंगे पर दूसरे गुट के साहित्यकारों ने ऐसा किया तो उन्हें कलावादी कहूंगा।
9- मैं प्रेम और स्वतंत्रता के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहूँगा। लेकिन औरों ने प्रेम में स्वतंत्रता चाही तो उन्हें लंपट कहूँगा।
10- मैं शैक्षिक सुधारों हेतु कभी हस्तक्षेप अथवा प्रयास नहीं करूँगा, शिक्षकों की एक नहीं सुनूँगा मगर परिवर्तन विरोधी समाज के लिए राजनीति और शिक्षा को बराबर ज़िम्मेदार ठहराऊँगा।
11 – मैं मतदान करने तक नहीं जाऊंगा पर राजनीति पर बोलूंगा तो ज्योति बसु और बाल ठाकरे को एक जैसी गाली दूंगा।
मेरे इस घोषणापत्र को पढ़ने के बाद अब आपका नैतिक दायित्व बनता है कि आप मेरे अनुयायी बनें। साझे प्रयासों से निर्मित होनेवाली एक सचमुच की स्वायत्त बौद्धिक दुनिया में आप आमंत्रित हैं। आपका स्वागत है।
-शशिभूषण
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