गुरुवार, 11 नवंबर 2010

विनीत तिवारी की कविता:हमें पता है

विनीत तिवारी सामाजिक कार्यकर्ता,संस्कृतिकर्मी,कवि,अनुवादक और प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी हैं.अच्छे वक्ता,स्पष्ट विश्लेषक हैं.मार्क्सवादी दृष्टि के साथ खुशमिजाज़ और दोस्ताना स्वभाव रखते हैं.मैं उन्हें अच्छा वाचिक कथाकार भी मानता हूँ.अपने समय के किसी अच्छे तर्क या व्यक्तितव को यदि वे उद्धृत करने जा रहे हों तो बिल्कुल कथाकार जैसे निर्वाह में आ जाते हैं.रोचक शैली में विदग्धता के साथ किसी मामूली घटना को भी दृष्टांत बना देना उनकी बड़ी खासियत है.उन्हें देखकर मैंने जाना कि दिन रात का कोई भी पहर किसी विशेष काम के लिए नियत नहीं होता.काम करते हुए ये सिर्फ़ बीतते रहने के लिए होते हैं.मसलन शाम को जुलूस-धरने में जाना.आधी रात तक किसी सभा का संयोजन करना.किसी साथी को अस्पताल देखने जाना या रेलवे स्टेशन छोड़ना.रात में ही कोई पर्चा या कार्ड बनाना.फिर याद से कोई छूटा हुआ लेख या वक्तव्य पूरा करना यह सब करते हुए यदि सुबह सामान्य ही रहने की संभावना है तो तीन चार घंटे सो लेना उनका सामान्य रूटीन है.इसमें नहीं सोना और आठ दस घंटे की लगातार ड्राइविंग भी किसी क्षण जुड़ सकते हैं.मैंने उन्हें कविता लिखते,सुनाने की उत्सुकता और अपनी प्रशंसा की आकांक्षा में कभी नहीं देखा.सिर्फ़ निंदा के लिए किसी को याद करते हुए नहीं सुना.किसी तर्क में आकंठ डूबकर वाह वाह में चले जाने की श्रद्धा में नहीं देखा.विनीत तिवारी का संतुलन और तर्कक्षमता को इस अर्थ में देखा मैंने कि हर हाल में उनका एक पक्ष होगा.खुश करने के लिए सहमत या असहमत होनेवाले सहमति का सौजन्य और असहमति की विनम्रता विनीत तिवारी से सीख सकते हैं.उनके बारे में यह भी ज़रूर याद आ जाता है कि वे कम लिखते हैं ज्यादा करते हैं.

विनीत तिवारी की यह कविता मैंने कथाकार और अब बया के संपादक गौरीनाथ द्वारा संपादित हंस के विशेषांक में पढ़ी थी.तब से यह मुझे याद आती रहती है.विनीत तिवारी की एक और कविता है जिसे भुलाया नहीं जा सकता-जब हम चिड़िया की बात करते हैं.हमें पता है तथा जब हम चिड़िया की बात करते हैं ये दोनों कविताएँ यदि एक साथ पढ़ी जाएँ तो कवि के आयाम और ईमानदार कवि किसके लिए और कैसे कहता है बेहतर ढंग से समझे जा सकते है.मेरी नज़र में इस कविता की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कवित्व और आलोचना दोनों की आत्मा अपने भीतर सम्हाले हुए है.यह कविता और आलोचना दोनो है.आप पूरी कविता पढ़ जाइए थोड़ी देर गुनिए फिर दोहराइए हमें पता है,देखिए हमको न बताइए.तब आप बिना हँसे नहीं रह सकेंगे.यह हँसी इस बात के लिए होगी कि कविता में जीवन के लिए क्या क्या किया गया.जीवन बचाए रखने वाले,समाज बदलने के दावे करनेवाले कवियों की एक बड़ी जमात झेंपती नज़र आएगी.मैं इसे अपनी समझ के अनुसार एक व्यंग्य कविता मानता हूँ.जो समाज जितना ही रचनाकार समाज के लिए है.
आपकी राय का मुझे इंतज़ार रहेगा.



हमें पता है

देखिए ,हमको न बताइए
कि एक हरी पत्ती बच गई
तो जीवन बचा है अब भी
जीवन के सबूत के लिए कई चीखें,
आँसू,सिसकियाँ,घाव,खून,गालियाँ वगैरह
काफ़ी चीज़ें हैं हमारे इर्द-गिर्द

जीवन का ही सबूत है
तानाशाह के होठों पर उभरी यह मुस्कान
जो सुबह बगीचे में खिलखिलाते फूलों और
सुंदर हरियाली दूब को देख आई है
अगर कविता से प्रेम अतिरिक्त सबूत है जीवन का
तो काफ़ी है सौम्यता में लिपटा
फूलों,पत्तियों,चित्रों,नृत्यों और कविताओं से
खासकर आपकी हरी पत्तीवाली कविता से
तानाशाह का प्रेम

हमें सुनाना बंद कीजिए आप
तितलियों,फूलों,रस,पराग
और जीवन की सुंदरता के लिए इनके मायने
कलियों को खिलता देख जो सम्मोहित हैं भद्रजन
पिछली क्यारी का पानी अभी तक लाल है
उनके हाथ धोने के बाद से
नाक पर रूमाल रखकर बतियाने वाले
इन लोगों की शक्लें हू-ब-हू वही हैं
जो कल रात ईराक में देखे गए थे
और उसके बाद सिर्फ़ मलबा और बारूद की गंध थी
परसों तो वे दिन में ही अफगानिस्तान में थे
जहाँ उन्होंने पिस्ता खाते हुए बयान दिया
कि हमें गुलमोहर,पलाश और बोगनबेलिया के साथ
लोकतंत्र भी बहुत पसंद है
हरी पत्तियो और खुशरंग फूलों के बीच
तरोताज़ा सांस लेकर
अपने भीतर भरकर कुछ बेहतरीन सिंफनियाँ
निकलना है उन्हें फिलिस्तीन,नेपाल
सीरिया,कोरिया,ईरान और,कई और ठिकानों पर

ऐसे में आप हमे बता रहे हैं कि
कविता ही बचाएगी दुनिया को
या बची रहेगी कविता तो बचा रहेगा जीवन
या प्रेम,या वग़ैरह-वग़ैरह
तो मुझे शक होता है
कि या तो आपकी मति मारी गई है
जिसे आप चाहें तो कोशिश करके दुरुस्त कर सकते हैं
या फिर आप उनकी तरफ़ के जासूस हैं
और एक दिन इन सब फूल,पत्तियों,तितलियों इत्यादि के बीच
आप न भी चाहें तो भी
पहचान लिए जाएँगे.

4 टिप्‍पणियां:

  1. शशिभूषण भाई... वाकई विनीत जी अपेक्षित जान के प्रति गहरे आत्मबोध के साथ लिखते बोलते हैं... आपने उनका परिचय भी एकदम सही दिया है ऊपर. क्जम्शेदपुर में उनसे मुलाकात भूल नहीं सकता. और यह कविता पेश कर उनके कवि रूप से परिचय करने का शुक्रिया. उनकी आपने जो दूसरी कविता 'जब हम चिडिय की बात करते हैं' को भी यहाँ दीजिए, पढ़ना चाहूँगा. वैसे जमशेदपुर वाली सभा में जब उनसे उनकी कुछ कवितायेँ सुनने का आग्रह किया गया तो उन्होंने पूरी विनम्रता से कहा था, उन्हें अपनी कवितायेँ याद नहीं रहतीं !

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  2. विनीत भई की ये कविताएं जब खुद उनसे सुनने को मिलती हैं तो यकीन मानो मजा सौ गुना हो जाता है। इंदौर में रहता था तब उनके कार्यकर्ता रूप से ही अधिक परिचय रहा। हालांकि उनकी कविताएं तब भी सचिन के ब्लाग पर पढ1ता रहा था। बहरहाल यह कहने का साहस कभी नहीं हुआ कि आपसे ही सुननी हैं आपकी कविताएं क्योंकि कभी ऐसी फुरसत में देख ही नहीं उन्हें। इधर लिखावट के मंच से उन्होंने अपनी इन्हीं कविताओं का पाठ किया था। उस दिन उनके साथ मंगलेश डबराल, वीरेन डंगवाल जी ने भी कविताएं पढ़ी थीं। मंगलेश जी तो उनकी ये कविताएं मांगकर ले भी गए थे।

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