रविवार, 8 अगस्त 2010

गीत चतुर्वेदी का कहानी-पाठ






प्रेमचन्द जयंती के उपलक्ष्य में प्रगतिशील लेखक संघ की इन्दौर इकाई द्वारा प्रसिद्ध युवा कहानीकार व कवि गीत चतुर्वेदी का कहानी पाठ आयोजित किया गया।

1 अगस्त 2010 को देवि अहिल्या केन्द्रीय पुस्तकालय में हुए इस कार्यक्रम में अभय नेमा ने आमंत्रितों का स्वागत करते हुए भोपाल से आये गीत चतुर्वेदी को समकालीन हिन्दी कहानी में एक महत्त्वपूर्ण उपस्थिति कहा। गीत चतुर्वेदी का परिचय देते हुए विनीत तिवारी ने गीत की कविता, अनुवाद और फिल्मों में रुचि को रेखांकित किया और कहा कि इन सब आयामों से रचनात्मक ऊर्जा ग्रहण करते हुए गीत ने अपनी कहन की एक नई शैली को विकसित किया है। पेशे से पत्रकार गीत को कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार प्राप्त हुआ है और हाल में उनका एक कविता संग्रह”आलाप में गिरह” और कहानियों की दो किताबें “पिंक स्लिप डैडी” व “सावंत आंटी की लड़कियां” आयीं हैं।

गीत चतुर्वेदी ने अपनी चर्चित लम्बी कहानी “पिंक स्लिप डैडी” के चुनिन्दा अंशों का पाठ किया। ‘पिंक स्लिप डैडी’ आज के एक उच्च मध्यमवर्गीय जीवन की कहानी है जिसमें कहानी का प्रमुख पात्र सफलता पाने के लिये कई तरह के झूठ गढ़ता है और सबसे ज्यादा झूठ अपने आप से कहता है। ये कहानी वर्तमान कार्पोरेट जीवन शैली के सामाजिक साइड इफेक्ट्स को दर्शाती है और आडम्बरपूर्ण सर्वसुविधायुक्त जीवनशैली के अंधेरे कोनों पर रोचक ढंग से कटाक्ष करती हुई आगे बढ़ती है। बहुत सुन्दरता के साथ कहानी अपने कहन में कविता को साथ लेकर चलती है जिससे इसकी भाषा तरल और प्रवहमान बनी रह्ती है।

कहानी में गीत कहते हैं “मेरी जाग एक नियंत्रित नींद है।”.....“एक कामयाब नींद क्या होती है- उसमें प्रवेश करना या फिर सही-सलामत बाहर निकल आ जाना?”....वो सपने के बारे में कहते हैं कि “सपना चाहे कैसा भी हो, सच होने का बीज उसी में छुपा होता है।” वो प्रकाश को “डायल्यूटेड अन्धेरा” कहते हैं और “ज्यादा गाढ़े प्रकाश को अंधेरा”।.....“हम इस धरती का जल हैं। पानी की भी मांसपेशियां होती हैं और पानी को पानी से ही धोना चाहिये”।.....“माँ बनने के बाद हर महिला अपनी माँ का स्पर्श याद करती है”। कहानी का मुख्य किरदार कहता है कि “मैं प्रसन्न रहना चाहता हूँ मगर पाता हूँ ज्यादातर समय सिर्फ सन्न हूँ।”

करीब एक घंटे चले कहानी पाठ के बाद अपनी प्रतिक्रियाएं देते हुए उपस्थितों ने कहानी के साथ कविता के मेल और इस शिल्प को गीत की कहानियों का ख़ूबसूरत प्रयोग कहा। गीत की कहानियों के बहाने हिन्दी कहानी के भीतर दिख रहीं नयी प्रव्रत्तियों, इनके विकास व मौजूदा यथार्थ की जटिलताओं पर चर्चा हुई। रवीन्द्र व्यास ने कहा कि गीत जब एक यथार्थ को छूते हैं तो कई सारे यथार्थ फूट पड़ते हैं और इन्हीं सब यथार्थों को व्यक्त करने की कोशिश में वो तमाम तरह के कोटेशंस और कविताओं का प्रयोग करते हैं। इसीलिये इनकी कहानियों में बहुस्तरीयता और विभिन्न कला माध्यमों में आवाजाही दिखती है। आशुतोष दुबे ने कहा कि कहानी और कविता के इस मिलेजुले शिल्प में गीत के लेखन में अलग और बेहतर तरीके से नयापन मौजूद है और वो पाठक के साथ छूट लेने का साहस करते हैं। विनीत तिवारी ने कहा कि इस कहानी को सुनते हुए लगा कि हरिया हर्क्युलीज की हैरानी को आज के समय में एक अलग ट्रीट्मेंट के साथ लिखा गया हो। इस्मत चुगताई, मंटो, हजारी प्रसाद द्विवेदी, निर्मल वर्मा, मनोहर श्याम जोशी, यशपाल, ज्ञानरंजन आदि ने भी पाठक के दवाब को चुनौती दी थी और कहानी की कला को आगे बढ़ाया था। गीत और आगे की उम्मीदें जगाते हैं। ये कहानी उच्च मध्य वर्ग की मौजूदा त्रासदी है जिसे गीत ने नये मुहावरे और नयी भाषा के साथ खूब पकड़ा है, लेकिन हिन्दी कहानी को अभी ऐसे किसी मुहावरे और भाषा का इंतज़ार है जो इस दौर में समाज के सबसे निचले सिरे पर मौजूद करोड़ों लोगों की कहानी को नये और असरदार तरह से कह सके। प्रदीप मिश्र ने कहा कि पहले के कई लेखकों और कहानीकारों से हटकर इन कहानियों में एक नयापन है और गीत की भाषा का ये सामर्थ्य है कि वो इस मैनेजमेंटी कोर्पोरेटी जंजाल को उधेड़ देती है। गीत की कहानी में झूठी व्यवस्था का सच्चा हिस्सा बन जाने से उपजी समस्याओं का सशक्त चित्रण है। अभय नेमा ने कहा कि गीत अपनी कहानी में किसी भी तरह के वाद का नाम ना लेते हुए भी पूंजीवाद और उसकी अमानवीयता व सामाजिक असर को सरल किंतु सशक्त तरीके से उजागर करती है। विपुल शुक्ल ने रचना प्रक्रिया के बारे में सवाल किया कि क्या रचनाकार पाठक को नजरंदाज कर अच्छे साहित्य का स्रजन कर सकता है और आप लिखते समय मुख्य तौर पर किन बातों का ध्यान रखते हैं। उत्पल बैनर्जी, किसलय पंचोली, जावेद आलम व चैतन्य त्रिवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

अंत में गीत ने कहा कि मेरे भीतर का रचनाकार विशेषत: दो बातों पर ध्यान देता है- कुछ वो पहलू होते हैं जो लेखक जानता है कि ज्यादातर लोगों तक पहुँचेंगे और लोगों का उनपर ध्यान जायेगा। और कुछ पहलू ऐसे होते हैं जिन पर लेखक चाहता है कि लोगों का ध्यान जाये। मेरी कोशिश पाठक को समझाने की नहीं होती, मैं पाठक को मशक्कत के लिए तैयार भी करता हूं और उकसाता भी हूं। मैं जो कह रहा हूं उसके पाठक अपने-अपने पाठ करेंगे, इसलिये मेरा ज़ोर इस पर रहता है कि मैं वो लिख पाऊं जो मैं लिखना चाहता हूं, ना कि वो जो पाठक चाहता है। जहां तक कविता, कहानी, और अन्य विधाओं के इस्तेमाल की बात है तो मुझे लगता है कि यथार्थ और समय की मुठभेड़ को व्यक्त करने मेँ अब सिर्फ गद्य काफी नहीं है इसलिये एक से अधिक विधाओं के भीतर उतरना और उनका संयोजन करना ज़रूरी है।

कार्यक्रम में एस. के. दुबे, साहब, जितेन्द्र चौहान, नवीन राँगियाल, सारिका श्रीवास्तव, क्रष्णकांत सिंह, निशिकांत चौहान, विभोर मिश्रा व रुचिता श्रीवास्तव की भी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति रही। संचालन किया अभय नेमा ने।


प्रस्तुति
विभोर मिश्रा
द्वारा श्री विपुल शुक्ला
39, प्रगति नगर, राजेन्द्र नगर,इन्दौर (म.प्र)
मोबाइल -8109787559

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