शनिवार, 3 नवंबर 2012

स्त्री विमर्श के बचे-खुचे पदार्थों से निर्मित हिंदी महिलावाद



स्त्री-विमर्श जिसके बारे में कहा जा रहा था कि हिंदी में वह पहली बार सशक्त रूप में राजेंन्द्र यादव के द्वारा हंस के माध्यम से सामने आया आज इंटरनेट पर फेसबुक और ट्विटर आदि में टिप्पणियों और जुमलों के रूप में सामने आ रहा है।

हिंदी रचनाशीलता को जिसने साहित्य के पैमानों पर समृद्ध किया वह सोशल साईटों में शेयरिग और लाइक की चालू नेटवर्किंग में मशगूल है।

यदि इन कालजयी और निर्विवाद लगने वाली पोस्ट, नोट्स, टिप्पणियों, जुमलों को स्वतंत्र रूप से प्रस्तुत कर दिया जाये तो इनके जनक-जननी अपने आत्म सम्मान में बिफर जाते हैं। तत्काल अपने पक्ष में स्वयं उठ खड़े होते हैं और एथिक्स तथा कॉपीराइट का दवाब बनाने लगते हैं। वे इस बात की कड़ी चेतावनी देते हैं कि हमारे नाम से विवाद पैदा कर नाम न कमाया जाये।

लेकिन अक्सर मूल में स्त्री होने की कानूनन धमकी होती है।

दरअसल जिसे आज प्रशंसक बनाने वाली स्त्री विमर्श की पैकेजिंग में कहा-सुना जा रहा है वह स्त्री विमर्श के बचे-खुचे पदार्थों से जन्मा हिंदी महिलावाद है।

इसकी मिसाल राजनीति में माला और मूर्तिवाले बहुजनवाद में मिलती है।

हिंदी महिलावाद औरतों की आज़ादी का पॉप गायक है। इसे अपने कानों में या तो जेवर अच्छे लगते हैं या रूमानी शब्द।

यह औरतों की आज़ादी का जितना पक्षधर है उतना ही उनके बिंदी, टिकली, साड़ी, करवाचौथ व्रत, परपुरुषगमन, सिगरेट, शराब और उघाड़ू पहनावों का हिमायती है।

हिंदी महिलावाद दहेज का विरोधी है लेकिन अपनी शादी में माँ से मिले जेवरों का फेसबुकिया प्रदर्शन करता है।

इस महिलावाद की प्रेम और सौंदर्य संबंधी जड़ें विद्यापति, सेनापति तथा घनानंद तक गहरी हैं। गुलजार, आनंद बख्शी और जावेद अख्तर उसे गुनगुनाने को मजबूर कर देते हैं।

हिंदी महिलावाद अपनी हर रचना को स्त्री उत्थान के राजमार्ग पर दौड़नेवाली गाड़ी मानता है और अपने प्रशंसक को उसका सच्चा चालक।

यह महिलावाद समाज में अपने पतियों के ऊँचे स्टेटस का तो पुजारी है लेकिन दूसरी महिलाओं के पतियों को महिला विरोधी मानता है।

हिंदी महिलावाद स्त्रियों के संघर्ष और विद्रोह के संबंध में नितांत घरेलू सैद्धांतिकी का समर्थक है। इसके पास आज़ादी पाने की एक स्वायत्त धारणा है कि वह न तो मायके में, न ससुराल में, किसी पुरुष से भी नहीं खुद-ब-खुद मिलेगी।

इस महिलावाद के सफल महिला लेखकों के होंट खेतों की खुली हवा में फटने लगते हैं और प्रमोशन की साड़ी में लिपटीं उनकी रचनाओं की एड़ियाँ पिराती हैं। 

हिंदी महिलावाद के बारे में पुरुष आलोचकों की राय है कि यदि यह बेटी पैदा करना चाहे और फोटू खिंचाउ मित्रताओं तथा फेसबुक काव्यकर्म से निकल पाये तो इसमें बड़ी संभावनायें हैं।

-शशिभूषण

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