नीरा राडिया अपराधी हैं.हम निडर तथा निष्पक्ष होकर नीरा राडिया को अपराधी मानें.उनके सारे कर्मों पर एक ठोस पक्ष बना लें जिसमें लैंगिक निरपेक्षता भी अवश्य हो.यह थोड़ा जल्दी हो क्योंकि नीचे दी गई दलीलें शुरू हो जाने में देर नहीं.यदि किसी को आभासी देर दिख भी रही है तो उनके लिए एक जानी पहचानी चेतावनी कि देर सबेर ऐसी दलीलें आएंगी.वह तबका जो बहस को खेल समझता है और हर तरह के न्याय की मांग को तर्कों में उलझा देता है चुप नहीं बैठेगा.फिर जो लोग नीरा राडिया को बचाना चहेंगे वे क़तई मामूली नहीं हैं.सवाल उनकी साख और प्रतिष्ठा का भी है.
वे दलीले ऐसी हो सकती हैं.पुरुषों ने अब तक इतने कारनामें किए.राजनीति ही दुर्गंध है उनके हाथों.सारे विश्वयुद्ध उन्होंने किए.नरसंहारों और भ्रष्टाचारों का इतिहास उनका है.राजनीति की विकराल गाथा पुरुष वर्चस्व की ही राम कहानी है.एक औरत नीरा राडिया ने यदि वह सब किया जो अब तक पुरुष ही करते आ रहे थे.पुरुषों की ही दुनिया में संभव था वह सब तो उसे सज़ा ज़रूर मिलेगी क्योंकि वह स्त्री है.उसे लेकर यदि न्याय के पुजारी इतने सक्रिय हैं,तीव्र जाँचे,त्वरित छापे हैं तो इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि वह स्त्री है.उसने स्त्री होकर इतना सब किया इसे पुरुष वरचस्ववादी न्यायप्रिय समाज बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहा.
यदि मीडिया में भी किसी स्त्री की जगह सिर्फ़ पुरुष की ही संदिग्ध भूमिका होती पूरे मामले में तो भी इतना बवाल नहीं मचता.आखिर यही सुनाई दे रहा है न बरखा..बरखा और बरखा..वीरों को तो जैसे भूल ही गए सब.भ्रष्ट पुरुष की तुलना में भ्रष्ट स्त्री को सज़ा अधिक आसान है.मान लीजिए अमेरिका जैसे देशों की तरह जहाँ राजनीतिक लॉबीईंग वैध है यदि भारत में भी इसे क़ानूनी मान्यता होती तो क्या नीरा राडिया एक मिसाल नहीं होती?एक स्त्री का विदेश की नौकरी छोड़कर अपने वतन आना और इतनी कमाई खड़ी करना गर्व की बात नहीं होती?जिस भारतीय स्त्री के जीवन में देहरी के भीतर से केवल प्राण पखेरू ही उड़ जाने के उदाहरण हों उसका अपनी विमान सेवा का मालिक होना तो युगांतरकारी ही माना जाता.
यह भारत का पिछड़ापन नहीं तो और क्या है जहाँ राजनीति संबंधी कारपोरेट दलाली के संबंध में कोई नीति ही नहीं है.नीरा राडिया ने ऐसा क्या किया है जो आनेवाले समय में भी अपराध माना जाएगा?सोचिए जिस दिन भारत का लोकतांत्रिक पूँजीवाद समग्र विकास या समाजवाद जैसी अड़चनों को पार कर सिर्फ़ विकास के मुकाम पर पहुँचेगा उस दिन नीरा राडिया जैसी लॉबीईस्ट ही तो सरकारे बनाएँगी.कोई उजबक बताए कि आज किस मंत्री के बनाए जाने में लॉबीइंग नहीं है.जिस तरह से नेता चुने जाते हैं,खरीद फरोख्त से गठबंधन करते हैं फिर सवाल पूछने तक के लिए घूस लेते हैं तो वह क्या बिना दलाली के संभव है.पहली बार यदि किसी स्त्री ने कार्पोरेट और अपराध को मिलाजुलाकर सरकार गठन का कोई अचूक नुस्खा निकाला है तो देशभर को क्यों तक़लीफ़ हो रही है.अरे बुड़बको कुछ तो शर्म करो.नीरा राडिया स्त्री है.सदियों की ग़ुलाम आबादी.ग़ुलाम की आज़ादी के पहले चरण में नैतिकता देखना सोची समझी साज़िश है.स्त्री जाग रही है.नीरा राडिया आनेवाले भारतीय लोकतांत्रिक युग की आहट है.वह दिन दूर नहीं जब लॉबीईंग को क़ानूनी मान्यता मिल जाएगी.तब देखना नीरा के नाम से विश्वविद्यालय होंगे.पत्रकारिता विश्वविद्यालयों में बरखा दत्त की वैसी ही मूर्तियाँ लगाई जाएँगी जैसी दलित नेत्रियों की लगती हैं.एक दलित स्त्री की सफलता को जैसे नोटों की माला कलंकित नहीं कर सकती वैसे ही नीरा की बेशुमार कमाई एक ग़ुलाम आधी आबादी का प्रतिशोध है.
यह मेरा वहम भी हो सकता है कि ऐसी दलीलें दी जाएँगी.पर यदि ऐसा हुआ तो हमारे जवाब क्या होंगे?
वे दलीले ऐसी हो सकती हैं.पुरुषों ने अब तक इतने कारनामें किए.राजनीति ही दुर्गंध है उनके हाथों.सारे विश्वयुद्ध उन्होंने किए.नरसंहारों और भ्रष्टाचारों का इतिहास उनका है.राजनीति की विकराल गाथा पुरुष वर्चस्व की ही राम कहानी है.एक औरत नीरा राडिया ने यदि वह सब किया जो अब तक पुरुष ही करते आ रहे थे.पुरुषों की ही दुनिया में संभव था वह सब तो उसे सज़ा ज़रूर मिलेगी क्योंकि वह स्त्री है.उसे लेकर यदि न्याय के पुजारी इतने सक्रिय हैं,तीव्र जाँचे,त्वरित छापे हैं तो इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि वह स्त्री है.उसने स्त्री होकर इतना सब किया इसे पुरुष वरचस्ववादी न्यायप्रिय समाज बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहा.
यदि मीडिया में भी किसी स्त्री की जगह सिर्फ़ पुरुष की ही संदिग्ध भूमिका होती पूरे मामले में तो भी इतना बवाल नहीं मचता.आखिर यही सुनाई दे रहा है न बरखा..बरखा और बरखा..वीरों को तो जैसे भूल ही गए सब.भ्रष्ट पुरुष की तुलना में भ्रष्ट स्त्री को सज़ा अधिक आसान है.मान लीजिए अमेरिका जैसे देशों की तरह जहाँ राजनीतिक लॉबीईंग वैध है यदि भारत में भी इसे क़ानूनी मान्यता होती तो क्या नीरा राडिया एक मिसाल नहीं होती?एक स्त्री का विदेश की नौकरी छोड़कर अपने वतन आना और इतनी कमाई खड़ी करना गर्व की बात नहीं होती?जिस भारतीय स्त्री के जीवन में देहरी के भीतर से केवल प्राण पखेरू ही उड़ जाने के उदाहरण हों उसका अपनी विमान सेवा का मालिक होना तो युगांतरकारी ही माना जाता.
यह भारत का पिछड़ापन नहीं तो और क्या है जहाँ राजनीति संबंधी कारपोरेट दलाली के संबंध में कोई नीति ही नहीं है.नीरा राडिया ने ऐसा क्या किया है जो आनेवाले समय में भी अपराध माना जाएगा?सोचिए जिस दिन भारत का लोकतांत्रिक पूँजीवाद समग्र विकास या समाजवाद जैसी अड़चनों को पार कर सिर्फ़ विकास के मुकाम पर पहुँचेगा उस दिन नीरा राडिया जैसी लॉबीईस्ट ही तो सरकारे बनाएँगी.कोई उजबक बताए कि आज किस मंत्री के बनाए जाने में लॉबीइंग नहीं है.जिस तरह से नेता चुने जाते हैं,खरीद फरोख्त से गठबंधन करते हैं फिर सवाल पूछने तक के लिए घूस लेते हैं तो वह क्या बिना दलाली के संभव है.पहली बार यदि किसी स्त्री ने कार्पोरेट और अपराध को मिलाजुलाकर सरकार गठन का कोई अचूक नुस्खा निकाला है तो देशभर को क्यों तक़लीफ़ हो रही है.अरे बुड़बको कुछ तो शर्म करो.नीरा राडिया स्त्री है.सदियों की ग़ुलाम आबादी.ग़ुलाम की आज़ादी के पहले चरण में नैतिकता देखना सोची समझी साज़िश है.स्त्री जाग रही है.नीरा राडिया आनेवाले भारतीय लोकतांत्रिक युग की आहट है.वह दिन दूर नहीं जब लॉबीईंग को क़ानूनी मान्यता मिल जाएगी.तब देखना नीरा के नाम से विश्वविद्यालय होंगे.पत्रकारिता विश्वविद्यालयों में बरखा दत्त की वैसी ही मूर्तियाँ लगाई जाएँगी जैसी दलित नेत्रियों की लगती हैं.एक दलित स्त्री की सफलता को जैसे नोटों की माला कलंकित नहीं कर सकती वैसे ही नीरा की बेशुमार कमाई एक ग़ुलाम आधी आबादी का प्रतिशोध है.
यह मेरा वहम भी हो सकता है कि ऐसी दलीलें दी जाएँगी.पर यदि ऐसा हुआ तो हमारे जवाब क्या होंगे?
Yeh kah dena ki acha likhten hain, apko kam aankna hoga.Bahut acha kar rahe hain. Subhkamnaen. -rajiv
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