रविवार, 16 मई 2010

अंतिम इच्छा

मैं चाहती हूँ
मरने के बाद मुझे दफ़ना दिया जाए
मेरी कब्र बहुत गहरी हो
मैं उस जगह रहूँ
जो धरती अपनी बेटियों के लिए बचाकर रखती है
वहाँ जरूर बहुत ठंडक होगी
मैं कल्पना करती हूँ
मेरी कब्र की पोली मिट्टी में बरगद जैसा कोई पेड़ उगे
उसकी जडें मेरी छाती से होती हुई पाताल तक जाएँ
मेरी खाद से वह पेड़ हमेशा हरियाए
यह अपने आप हो
मेरा यक़ीन करना
जलाए जाने से मुझे शिकायत नहीं
मेरे परिवार में सबको जलाया ही गया मरने के बाद
लेकिन मुझे लगता है
आग की जगह मिट्टी मुझे मिटाएगी
तो निकट जिंदगी को
धुआँ और लपटों की परेशानी नहीं होगी
मैं देखती आयी हूँ
चिताओं में लगाए हुए पेड़ भी
पूरी उम्र ऐसे रहे आते हैं
जैसे ठूँठ में पत्तियाँ लगा दी जाएँ
मैं जानती हूँ सृष्टि आग से बनी थी
इसलिए खत्म करने के लिए भी आग का इस्तेमाल शुरु हुआ होगा
मुझे दफ़नाया जाए मेरी यह कामना
रत्ती भर भी धार्मिक आस्था नहीं
सच जिसे मेरी माँ ही समझ पाई मेरी ज़िंदगी में
क्योंकि पिताजी समझना ही नहीं चाहते थे
मेरी अभिलाषा,सोच जान लेने के बाद आप भी शायद ही मानें
यह है कि मैं जलने से बहुत डरती हूँ
अब तक खाना पकाते रहने
अपनी सारी समझदारी के बावजूद
जिसमें मेरी विज्ञान की पढ़ाई भी शामिल है
मुझे जलने से बहुत डर लगता है
जाने कैसे मैं मानने लगी
मेरे शव को भी जलाया गया तो मुझे बेहद तकलीफ़ होगी
यह डर मैं किसी तरह एक पल को भी अपने दिल से निकाल नहीं पाती
किसी से बताया नहीं कि लोग पागल समझ लेंगे
मैं पागल नहीं हूँ
सिर्फ़ आग से डरती हूँ.
सही सही कहा जाए तो डरने लगी
पर इसके इतिहास में जाने की ज़रूरत नहीं.
मेरे पास वक्त बहुत कम है
भविष्य आपके हाथ में.

3 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार आया आपके ब्लॉग पर ////..अच्छा लगा ..बहुत ही मार्मिक कविता है ये ......अच्छे भावो की अभिव्यक्ति है...बधाई स्वीकारे ...कलम के इस सफर में आज से हम भी आपके साथ है,,,,,,,, और हां ऐसे ही विषय पर हमने कुछ लिखा है ...आपके अमूल्य सुझाव सादर आमंत्रित है {लड़की बिक गयी, इज्ज़त का पता नहीं , हाँ, इंसानियत तो लुट गयी।}
    http://athaah.blogspot.com/

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  2. बहुत से भाव भरे हैं आपकी रचना में....मार्मिक चित्रण

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