यह लेख अपनी पहली अवस्था में मोहल्ला लाइव में प्रकाशित हो चुका है.इतने दिनों में इसमें थोड़ा जोड़ा-घटाया है सो अपने यहाँ से भी साझा कर रहा हूँ-ब्लॉगर
मुझे एम.ए.किए सात साल,शोध करते तीन साल और छोटी-मोटी नौकरी करते आठ साल हो गए.मैंने सब तरह के विचारों को ज़रूरत भर का समझ लिया.नास्तिकता के खतरों से सावधानी बरतते हुए अध्यात्मिकता को व्यक्तित्व में शामिल कर लिया.राजनीति से दूरी रखकर वामपंथी प्रतिबद्धता को साध लिया.सत्ता से शाश्वत क़िस्म की नज़दीकी बढ़ा ली.नेता,बुद्धिजीवी,पत्रकारों से काम निकाल सकने लायक मेरे मधुर संबंध बन गए.पहले मेरे संपादकीय पतों पर भेजे पत्र छपे फिर रचनाएँ भी छप चुकीं.इधर मैंने कंप्यूटर पर यूनीकोड में हिन्दी टाइप करना भी सीख लिया.एसएमएस,ई-मेल करना मुझे पहले ही आ गया था.अब मुझे किसी से कुछ पूछने में शरम आती है.पैर छूने के नाम पर तो मैं एकदम लाल हो जाता हूँ.बतौर नागरिक भी मेरे अपने घर की छत और बीमा वगैरह हो गए.
इन सब बातों को बताने का मकसद यह है कि मैं खुद को बुद्धिजीवी समझने लगा हूँ,इस रास्ते की सारी अड़चने पार कर लीं हैं और अब यह घोषित करना चाहता हूँ.ऐसा मैं इसी वक्त करना चाहता हूँ.ताकि मैं किसी बड़े अखबार,पीठ,परिषद,महाविद्यालय,विश्वविद्यालय में से कहीं नियुक्ति के लिए जुटे आवेदकों की अग्रिम पंक्ति में आ सकूँ.मेरी दावेदारी अकाट्य हो सके.कभी मौत जिसका कोई ठिकाना नहीं होता आ जाए तो मैं चेलों और मधुमेह के बिना नहीं मरूँ.मेरी कुछ और विशेषताएँ भी हैं.मसलन मैं अब एक खास समूह जिसके विचार नीचे लिखे हैं के अनुसार सोचता हूँ(इन विचारों का कविता की तरह लगना महज संयोग है.असल कविता से इनका कोई संबंध नहीं है.)
देखिए हमसे मत उलझिए,हम एक बात को कई तरह से बयान कर सकते हैं.अपने बयान की जब जैसी ज़रूरत हो व्याख्या कर सकते हैं.हम कभी अच्छे रचनाकार को घटिया इंसान कहेंगे.कभी बहुत अच्छा इंसान कहकर औसत रचनाकार कहेंगे.हम जो भी कहेंगे दमदार कहेंगे.बड़े बड़ों की हवा निकाल देने के लिए कहेंगे.हम सिर्फ़ कहेंगे नहीं सिद्ध भी करेंगे.हमारा कहना सिद्ध होगा.क्योंकि हमारे कार्यकर्ता साथी हैं.हम सिद्धि के रथ पर सवार चलेंगे.प्रसिद्धि का राज करेंगे.हम बातों को काम से तौलेंगे.कामों में भाषायी नुक्स निकालेंगे.हम विचारधारा को भेड़चाल कह सकते है.आंदोलन को विचारहीन भीड़ बनाकर पेश कर सकते हैं.हम पूछ सकते हैं,लिखने से क्या होगा?बदलाव चाहते हैं तो लड़ते क्यों नहीं?सीमा भी बता देंगे-यों लड़ लड़कर तो आपका शिल्प सतही हो जाएगा.रचनाएँ वाचाल.हम मुस्कुराते रह सकते हैं.आँखें अंगार रख सकते हैं.हम मौन रहेंगे.रंग में आ गए तो बहरा कर देंगे.हम किसी से नही डरते.हम श्रद्धा को चाटुकारिता कहेंगे.आदर को प्रशंसा की महत्वाकांक्षी योजना.श्रेष्ठ को भ्रष्ट बोलेंगे.हमारे पास यूँ तो कोई तर्क नहीं है पर हम चरित्र हनन कर सकते हैं.निंदा अभियान चला सकते हैं.
मैं उपरोक्त विचारों तथा स्वीकृतियों के आलोक में खुद को बुद्धिजीवी घोषित करता हूँ तथा अपना यह घोषणा पत्र बिंदुवार सार्वजनिक करता हूँ
1-मैं आपसे विनम्रता और ईमानदारी की उम्मीद करता हूँ.आपने किसी के प्रति श्रद्धा रखी या कोई सफलता पाई तो मैं आपको चाटुकार कहूँगा
2-आप मेरे पक्ष में भले न बोलें पर मेरे अवदान पर अवश्य बोलें.याद रखें आपने मेरी या मेरे योगदान की आलोचना की तो मैं आपको फासिस्ट कहूँगा.
3-जातिवाद किसी क़ीमत पर मिटना चाहिए.लेकिन यह कोशिश किसी ने ग़ैर दलित होते हुए की तो मैं उसे ब्राह्मणवादी कहूँगा.
4-समाजवाद आना ही चाहिए लेकिन यह कोई दूसरा वामपंथी समूह लाना चाहेगा तो मैं उसका बहिष्कार करूँगा.इस संबंध में कोई भी नैतिकता जो मुझसे सत्यापित नहीं होगी उसे मैं रिजेक्ट कर दूँगा.
6-मैं चाहता हूँ दुनिया की हर शै मार्क्सवादी बने.लेकिन किसी ने ख़ुद को असल मार्क्सवादी कहा तो मैं उसकी बाट लगा दूँगा.
7-वर्तमान के सारे क्रांतिकारी बौने और भ्रष्ट हैं.मैं किसी को आदर्श कहने या सुधारने के चक्कर में नही पड़ूँगा.आराम से भविष्य का क्रांतिकारी बनूँगा.
8-मुझे कोई पुरष्कार नहीं चाहिए लेकिन मुझे मेरी योग्यता से ज़्यादा नहीं मिला तो मैं पुरस्कारों को नंगा कर दूँगा.
9-मैं जानता हूँ अपनी ज़िंदगी जीते हुए मैं साहित्य में दलित,स्त्री,किसान,क्रांति,समाजवाद या लोकतंत्र जो भी लाऊँ अंतत: कहन की सफलता और शिल्प ही होंगे पर दूसरे गुट के साहित्यकारों ने ऐसा किया तो उन्हें कलावादी कहूँगा.
10-मैं मतदान करने तक नहीं जाऊँगा पर राजनीति पर बोलूँगा तो ज्योति बसु और बाल ठाकरे को एक जैसी गाली दूँगा.
मेरे इस घोषणा पत्र को पढ़ने के बाद अब आपका नैतिक दायित्व बनता है कि आप मेरे अनुयायी बनें.
आपका 'घोंषणा पत्र' पढ़कर विमुग्ध हूँ ....,आपने कितनी सुंदरता से झूठे ,मक्कार ,छद्म ,नैतिक रूप से भ्रष्ट स्वार्थियों की बखिया उधेड़ी है । आपको बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंव्यंग्य की इस धार ने मुझे परसाई जी की याद दिला दी. अब मैं आपके घोषणा पत्र की अंतिम पंक्ति का पालन करने जा रहा हूँ.
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