मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

अनुश्री घोष की डायरी

यह डायरी अनुश्री घोष ने ग्यारहवीं में हुए असाइनमेंट के लिए लिखी थी.मुझे इसमें रचनात्मकता दिखी तो रख लिया था.आप इसमें परीक्षा,घर,बंधुत्व और स्कूल को बड़ी निर्दोष,ईमानदार नज़र से देख पाएँगे.अनुश्री आजकल बारहवीं में पढ़ती हैं.बांग्ला मातृभाषा है.प्राचार्य के यह कहने पर भी कि तुम अकेली के लिए हम हिंदी का पीर्यड नहीं दे पाएँगे.खुद ही पढ़ना पड़ेगा.ज़िद करके हिंदी को एक विषय के रूप मे चुना था.पढ़ने में तेज़,अनुशासित और कल्पनाशील हैं.बहुत अच्छा गाती हैं.कार्यक्रमों की हिंदी कॉम्पीयरिंग के लिए स्कूल स्टाफ़ में इनका नाम लिया जा रहा हो तो कोई भी दूसरा नाम नहीं सुझाता.अनुश्री आगे चलकर टीचर बनना चाहती हैं.हम सोचते हैं इनका भविष्य बड़ा सुंदर होगा. -ब्लॉगर

23 मई,2009.

आज की सुबह मेरी ज़िंदगी के लिए बड़ी महत्वपूर्ण थी.आज मेरी दसवीं कक्षा का परिणाम घोषित होनेवाला था.परंतु यह बात मुझे पता नहीं चली थी.सब अचानक ही हुआ.परीक्षा खत्म होने के बाद से ही मेरे मन में परिणाम आने के दिन की बात बार-बार सताती थी.मुझे खुद पर इतना विश्वास तो था कि मैं फेल नहीं होऊँगी.पर यह डर ज़रूर था कि मेरे अंक कम आए तो क्या होगा?परिणाम के डर से दूर रहने के लिए मैंने कम्प्यूटर कोर्स और ग्यारहवीं की पढ़ाई शुरू कर दी थी.मैंने अनुमान लगा रखा था कि मुझे अस्सी प्रतिसत अंक तो ज़रूर मिलेंगे.माँ और बाबा ने बड़ी उम्मीदें पाल रखीं थीं.मेरा भैया पढ़ाई में थोड़ा अच्छा है इसलिए मैंने सोचा था कि भाई को मुझसे पाँच-छह प्रतिशत अंक ज्यादा ही मिलेंगे.आज सुबह भी हम बैठकर यही सोच विचार कर रहे थे.

सुबह उठकर हम रोज़ की तरह कम्प्यूटर क्लास पहुँचे थे.इतनी सुबह होती थी क्लास की जाने का मन ही नहीं कर रहा था.पर दिल में ज़ोर डालकर चले ही गए.जब वापस आ रहे थे तो तक्कोलम में इतनी तेज़ धूप थी कि सारा बदन धीरे धीरे जवाब देने लगा था.हम किसी तरह साइकिल से घर पहुँचे.नहा-धोकर पढ़ने बैठे ही थे कि इतने में हमारी क्लास का हिमांशु आया.नीचे खड़े होकर उसने अरिंदम को पुकारा.भैया ने जल्दी ही नीचे जाकर उससे हाल-चाल पूछा तो उसने एक पेपर दिखाकर सबके अंक बताए.इतने में माँ बाहर निकलकर उससे पूछने लगी कि मेरे अंक कितने हैं?उसने हमें मेरे अंक बताए.पर जब मेरी नज़र अपने अंकों पर पड़ी तो मुझे बड़ी हताशा हुई.

मेरे सबसे कम अंक थे गणित में.सिर्फ़ 51 अंक.इतनी निराशा मुझे पहले कभी नहीं हुई जितनी आज इन कम अंकों को देखकर हुई.मुझसे पहले माँ की आँखों में आँसू आ गए.माँ की यह हताशा मुझसे सही नहीं जा रही थी.मुझे 75 और अरिंदम को 82 प्रतिशत आए.फिर भी हम खुश न थे.हम इससे ज्यादा अंकों की अपेक्षा कर रहे थे.परंतु क्या करते अब तो जो होना था हो चुका था.बाबा ने भी इस बात को गंभीरता से लिया.माँ और बाबा ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी.कहा-जैसी मेहनत की वैसा ही फल मिला है तो उदासी कैसी?मैं पहले ही कहती थी कि बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक लाना इतना आसान नहीं है.बहुत मेहनत करनी पड़ती है.चलो मैंने भी यह जान लिया कि क्या लिखने पर क्या मिलता है.अब बारहवीं में कोशिश करूँगी कि इससे अच्छा कर दिखाऊँ.


19 जनवरी,2010

हमारे लिए आज का दिन बड़ा ही महत्वपूर्ण था.आज हमारे विद्यालय का वार्षिक निरीक्षण था.आज के लिए हम पिछले दो दिन से तैयारी कर रहे थे.कॉपियाँ पूरी तरह से सजा-धजाकर अधूरे कामों को समाप्त कर रहे थे.जैसे तैसे हमने नोटबुक पूरी की.सुस्ताने की कोशिश की कि बायो मैडम ने क्लास सजाने का हुक्म दे दिया.हमारी चैन की सांसे बाहर निकल गईं.हम फिर जुट गए.अरे बाप रे..मैडम एक-एककर चार्ट पेपर दिए जा रहीं थीं.हम पागल हो रहे थे.मैडम का हुक्म था जब तक काम नहीं खत्म होता कोई घर नहीं जा सकता.सभी ने फटाफट कुछ न कुछ बनाकर क्लास सजा दिया.आज पता चल रहा था समय पर काम न करने पर क्या होता है.आज का दिन जैसे तैसे स्कूल में बीत गया.घर आकर कल के लिए अच्छे से पढ़ रहे थे.

सुबह हुई.जल्दी-जल्दी चकाचक कपड़ों में दिमाग़ मे आधी-अधूरी पढ़ाई लेकर स्कूल पहुँचे.स्कूल में बड़ी ही शांति थी.एसी महोदय प्रार्थना सभा में पहुँचे.उनका विधिवत स्वागत किया गया.प्रात:कालीन सभा के कार्यक्रमों की शुरुआत हुई.लेकिन शुरू में ही एक लड़की प्रतिज्ञा लेते-लेते बीच में अटक गई.यहीं से शुरू हुआ गलतियों का सिलसिला.पहले प्रतिज्ञा में फिर कॉपीयरिंग में गलती हो गई.ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था.हमें इतना बुरा लग रहा था कि क्या कहें लेकिन कुछ कर भी तो नहीं सकते थे.हम मजबूर थे.हमें डर था कि एसी सर पर हमारा बुरा प्रभाव न पड़ जाए.अंत में यही हो गया था.एसी सर बड़े ही तेज़ भाव से हमारी कमियाँ गिना रहे थे.हमारी आँखें शर्म से झुक रही थीं.गुस्सा भी आ रहा था कि इतनी कोशिशों के बाद भी हम असफल ही रहे.कक्षा निरीक्षण में वे हमारी क्लास में नहीं आए.इससे भी हमें निराशा हुई.पर क्या करते जो होना था हो चुका था.मैंने सोचा हमें अपनी गलतियाँ सुधारने की सच्ची कोशिश करनी चाहिए.

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