शनिवार, 24 अप्रैल 2010

केवल मुझसे क्रांति नहीं होगी

मेरे मन ने मुझसे पूछा-इस देश में हर असफल युवा लगभग क्रांतिकारी है फिर भी क्रांति क्यों नहीं होती?

मैने कहा-जैसे हर नागरिक क़रीब क़रीब धार्मिक है फिर भी रामराज्य नहीं आता.जैसे हर तीसरी दवाई नकली है फिर भी अस्पताल शमशान नहीं हो जाते.जैसे मुर्गों की जात खतम नहीं होती.जैसे इतने मर्दों के बीच स्त्रियाँ अपनी लाज बचा भी पाती हैं.जैसे इतने हथियार हैं फिर भी देशों का डर नहीं जाता.जैसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है फिर भी भारत में समाजवाद नहीं आता.जैसे....

मन ने कहा-बस करो अब.ये चालाकी है.साथी,मूल प्रश्न के जवाब में प्रतिप्रश्न करना भी बदलाव नहीं आने देता.

मैं खीझ गया.तो तुम्ही बताओ उकसा-उकसाकर जितनी जल्दी हो शहीद करवाओ.

मन बोला-अपने इस डर को समझो.शहीद हो जाने का डर ही तुम्हारी समस्या है.इसी से समझोगे.चेग्वारा ने कहा था-क्रांति के रास्ते में जीत होती है या मौत मिलती है.यह ऐसी बात है जो सब समझते हैं.हमारे देश का क्रांतिकारी समझदार है.बौद्धिक चालाक है.वह जीत के लिए मौत नहीं चाहता.इसीलिए हाँक लगाता रहता है.आओ दूसरो नींव की ईंट बनो.वरना जहाँ इतना अन्याय है वहाँ इतनी कला क्यों है?

इस बात से मेरी उलझन बढ़ गई.मैंने जानना चाहा-कोई भी जो इतना समझदार हो क्रांतिकारी कैसे हो सकता है?उसे क्रांतिकारी कहना ही गलत है.

मन ने कहा-क्रांति समझ से ही पैदा होती है.विद्रोह से परवान चढ़ती है.विद्रोही चित्त ही क्रांति के रास्ते पर चलता है.लेकिन समझदार डर किसी भी क़िस्म के विद्रोह का दुश्मन होता है.सुविधाओं के बीच केवल खयाली परिवर्तन लाता है.

मैंने कहा-आत्मघाती मन,अपनी ही आग में जलनेवाले चित्त उलझाओ मत साफ़ साफ़ कहो क्या तुम्हारी नज़र में डरपोक ही समझदार है?

मन ने मुझ पर पानी डाला-अत्यधिक समझदार डरपोक होता है.हमारे समय के सब समझदार डरते हैं.गुहार सुनकर घरों में घुस जाते हैं.

मैंने मन का इशारा समझ लिया लेकिन जाँचने के लिए पूछा-आखिर ऐसे समझदार करते क्या हैं?ये अपने क्रांतिकारी को कैसे बचाकर रखते हैं?मैंने सुना है भीतर की आग का इस्तेमाल नहीं हो तो बुद्धि की राख बचती है.पर दुनिया में मुझे खुद को छोड़कर मूर्ख नज़र ही नहीं आते हैं.

मन हँसा-समझदार अपनी आग बचाकर रखते हैं.ठीक वैसे ही जैसे भूखे बच्चों की भीड़ में भी अपने बच्चे का दूध बचा रहता है.ये शैया और थाली में क्रांति करते हैं.हर रंग और हर मौसम का रस खींचते हैं.अपने लोगों से कहते है-सब घर जाओ शाम हुई.क्रांति अँधेरे में आ ही गई तो क्या होगा?वे दरअसल कहना यह चाहते हैं-तुम लड़ो पर हमें मत पुकारना.हमारे पास बहुत काम हैं.हम बचाने नहीं आएँगे.इतनी सी बात के लिए कला की साधना करते हैं.

मैंने मन का अड़ंगा समझ लिया.उससे बोला-देखो हर समय चलने के वक्त टोका मत करो. मुझे बॉस की पार्टी में जाना है.वहां से मल्टीप्लेक्स में नयी फिल्म देखनी है.प्रेमिका के ही साथ डिनर भी करना है.घर आकर पत्नी के सो जाने पर विदेशी लड़की से चैट खेलना है.केवल मुझसे ही क्रांति नहीं होगी.

मन खुलकर हँसा-तुम भी समझदार हो बेटा,काफ़ी समझदार.

2 टिप्‍पणियां: