कल मैं आठवीं कक्षा में अरेंजमेंट के तहत पढ़ाने गया तो आपस में बहस कर रहे बच्चों ने घेर लिया.सर,एक डाउट है.पूछो.सर,प्रार्थना किस धर्म की सबसे अच्छी है?इस सवाल का सीधा जवाब देने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.मैंने खुद को सम्हालते हुए सबको शांत करके बैठाया.
प्रार्थना की बात है तो पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो.कितने लोग चाहते हैं कि इस विद्यालय में एक मंदिर बनवा दिया जाए? एक को छोड़कर सभी ने हाथ उठा दिया.मस्जिद बनवाने के पक्ष में कितने हैं यानी कौन-कौन चाहता है कि यहाँ एक मस्जिद हो? उसी एक विद्यार्थी को छोड़कर सभी ने हाथ उठाया.मेरा अगला सवाल थाकितने लोग चाहते हैं कि इस विद्यालय में मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा और चर्च चारों बनवा दिए जाएँ?इस पर भी उसे ही छोड़कर सभी ने क्रमश: हाथ उठा दिए.
प्रार्थना की बात है तो पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो.कितने लोग चाहते हैं कि इस विद्यालय में एक मंदिर बनवा दिया जाए? एक को छोड़कर सभी ने हाथ उठा दिया.मस्जिद बनवाने के पक्ष में कितने हैं यानी कौन-कौन चाहता है कि यहाँ एक मस्जिद हो? उसी एक विद्यार्थी को छोड़कर सभी ने हाथ उठाया.मेरा अगला सवाल थाकितने लोग चाहते हैं कि इस विद्यालय में मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा और चर्च चारों बनवा दिए जाएँ?इस पर भी उसे ही छोड़कर सभी ने क्रमश: हाथ उठा दिए.
तब मैंने उस विद्यार्थी से पूछातुम चारों धर्मस्थलों का बनवाया जाना भी क्यों नहीं चाहते?वह डरते हुए खड़ा हुआ.धीरे से बोलासर,ऐसे में तो भगवान बुद्ध और महावीर के भी मंदिर बनवाने पड़ेंगे.मैं उसके तर्क से चौंका.जाँचने के ही लिहाज़ से सवाल कियाउससे क्या नुकसान होगा?सर,फिर तो पढ़ने के लिए क्लास ही नहीं बचेंगे.सब जगह भगवान ही भगवान हो जाएँगे.उसकी इस बात पर सब हँस पड़े.मुझे भी हँसी आ गयी.एक ने टिप्पणी की.क्लास की जगह में भगवानों को थोड़े ही बैठाया जाएगा. दूसरे ने जोड़ाऐसा हुआ तो पूजा के लिए भी एक पीर्यड बढ़ाना पड़ेगा.अपने स्कूल में टीचर पहले से कम हैं तो प्रिंसिपल सर को नये टीचर बुलाने पड़ेंगे.
यह तर्क आगे बढ़ता ही रहता कि मुझे सबको चुप रहने को कहना पड़ा.इस बार मैंने उस विद्यार्थी को ध्यान में रखकर एक सवाल पूछाकितने लोग चाहते हैं कि विद्यालय में मंदिर या मस्जिद कुछ भी न रहे?इस पर सभी बच्चे एक दूसरे का मुह देखने लगे.उस अकेले ने हाथ उठा दिया.मैंने पूछातुम ऐसा क्यों चाहते हो?उसने कहासर अगर बहुत सी पूजा की जगहें हो गईं तो आपस में झगड़ा होगा.किसी जगह बहुत लोग जाएँगे,किसी जगह एक दो ही रहेंगे.फिर लोग एक दूसरे को बड़ा छोटा समझ लेंगे.ज्यादा लोग गंदा करेंगे तो कम लोंगो को सफाई करनी पड़ेगी.हम बच्चों का ध्यान भी पढ़ाई में नहीं लगेगा.स्कूल तो पढ़ने के लिए होता है सर.
उसकी इस बात से कक्षा में सन्नाटा हो गया.मुझे लगा उसके तर्क को मैं ही नहीं सब बच्चे भी समझ गए हैं.बच्चे जब किसी बात को समझ लेते हैं तो उसमें आगे तर्क नहीं करते.लगा जैसे यह बात यहाँ पूरी हो गई.मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि कहूँतो अब मैं बताता हूँ कि प्रार्थना किस धर्म की.....तभी दो तीन बच्चों ने एक साथ कहाअब सबजेक्ट पढ़ाइए सर,पीर्यड जानेवाला है.मैंने चाक,डस्टर उठा लिया.
लेकिन मेरे दिमाग़ में सवाल घूम रहा थाविश्वविद्यालय,अस्पताल और थानों में मंदिर क्यों होते हैं ?यह सवाल बुजुर्गों से पूछा जाए तो उनके पास जवाब के सिवा क्या होगा?
....और घ्ररो मे ???????
जवाब देंहटाएंसबके दिल मे क्यो नही ???
बहुत बड़ा सवाल किया आपने ......,मुझे तो लगता है की भगवान् के लिए इंसान का दिल ही काफी लम्बा चौड़ा है ,उसे बाहर बैठने की जरुरत नही .
जवाब देंहटाएंआदरणीय शशिभूषण जी बच्चो के प्रति आपकी हित दृष्टि सराहनीय है - प्रार्थना सभी अच्छी होती हैं क्यों कि यह दुखी हृदय की पुकार है बच्चों को समझाने की कला सभी को तो आती नहीं हाँ हर बच्चे की माँ के पास यह कुंजी जरूर होती है
जवाब देंहटाएंजवाब की जगह आपको धर्मविरोधी और पाश्चात्य मूल्यों का संरक्षक ठहरा दिया जाएगा ..
जवाब देंहटाएंस्कूल तो पढ़ने के लिये ही होता है।
जवाब देंहटाएंविश्वविद्यालय राजनीति के लिये
अस्पताल डराने के लिये
थानों में साक्षात शैतान बैठे रहते हैं
इस लिये इन तीनों जगह मंदिर होते हैं