गाँव से रीवा आए हम सुनते ही थे कि कोई आशीष त्रिपाठी हैं.बड़े मेधावी हैं.बी.एस.सी के बाद हिन्दी में एम.ए. करने गए.एम.ए.किया ही नहीं यू जी सी के जे.आर.एफ़ भी हुए.नाटकों में खाली पी.एच.डी नहीं कर रहे बड़े शौक और सफलता के साथ रंगमंच से भी जुड़े़ रहे हैं.कवि हैं.रेडियो में काम कर चुके हैं.अच्छा मंच संचालन करते हैं.बड़े बड़े साहित्यकारों से साक्षात्कार करते रहते हैं.प्रसिद्ध आलोचक,संगठक,संपादक कमला प्रसाद के बेटे जैसे हैं.उसी लड़की से शादी की है जिससे प्रेम करते थे.गोष्ठियों में बाक़ायदा पिता को भी सेवाराम जी संबोधित करते हैं.कहनेवालों ने तो ठीक मुँह पर यह भी कहा कि कुछ पिता बेटों से जाने जाते हैं जैसे डा.सेवाराम त्रिपाठी.रीवा में जब तक रहा हर साल विश्वविद्यालय के युवा उत्सव में सुनने में आ ही जाता था कि भई,नाटक तो आशीष के समय होता था .मेरे दोस्त उन्हें आशीष भैया बोलते और उनके हवाले से कहते कि हिंदी फटीचर ही नहीं पढ़ते.बेरोज़गारी के इस दौर में आशीष भैया ने प्रोफ़ेसर होकर क्षेत्र को तथा खुद को सिद्ध किया है.मैं जब शैलेश और मुकुल के साथ आशीष त्रिपाठी से मिला तो मन ने बहुत सी बातों की तस्दीक कर दी.यह भी मार्क किया तार्किक हैं आशीष जी.मिलनसार भी.अगर सब कुछ इसी दिशा में चलता रहा तो अच्छे आलोचक होंगे.आजकल काफ़ी दूर आ जाने के कारण आशीष को भैया कहनेवाले दोस्तों से मैं मिल नहीं पाता.उन पर फुर्सत से बात भी नहीं हो पाती.पर कुछ नये दोस्तों से सुनता रहता हूँ.आजकल सबकुछ है आशीष जी के पास.अच्छी नौकरी.अच्छी जीवन साथी,नामवाला शहर.बड़े बड़े संबंध.इधर नामवर जी के अच्छे साक्षात्कार करके महत्वपूर्ण काम किया आशीष सर ने.बी एच यू में आशीष सर बहुत अच्छा पढ़ाने वालों में हैं.बहुत ही ज़रूरी किताबों के संपादन में जुटे हैं.कविता की किताब आने ही वाली है.काशीनाथ सिंह जी जैसे बड़े और पारखी लेखक उन्हें प्यार करते हैं आदि आदि.यह कविता इन्हीं आशीष त्रिपाठी की हैं.आपसे अनुरोध है कि मेरी यादनुमा बातों पर ना जाएँ और इसे ध्यान से पढ़ें.
ज़िद है
कि चमचमाती हुई स्वर्णिम सड़कों पर चलकर भी
पहुँचुगा वहीं
जहाँ पहुँचाती रहीं मुझे पगडंडियाँ
जब बाज़ार मेरे भीतर
बहुत सारी चीज़ों की कर लेगा निशानदेही
बिक सकने वाली वस्तुओं के रूप में
तब भी
मेरी कोई दुकान नहीं होगी
आचार-संहिताओं के बीच
जीवित रखूँगा
थोड़ी सी बचपन की जगह
जगह भटकने की
पागलपन की,जुनून की थोड़ी सी जगह
मंदिर जाने की जगह
किसी विस्मृत सा लोक कवि का
पुराना प्रेम गीत गाउँगा मैं
जब दुनिया के उलझे हुए तारों को
सुलझाने की बहस में डूबे होंगे बौद्धिक
मैं दूर से आते गीत का
बचा हुआ हिस्सा सुनने
प्रवेश कर जाऊँगा सामने फैले अँधेरे में
मेरे घर वे सब आ सकेंगे
जिनकी आँखों में
बच्चों को प्यार करने की ललक बाक़ी होगी
दुर्योधनी और हिटलरी ज़िदों के सामने
मनुष्यता के तने हुए सर की तरह
खड़ी मेरी ज़िद रहेगी
जहाँ मैं हूँ
मेरे साथ होगी.
ज़िद है
कि चमचमाती हुई स्वर्णिम सड़कों पर चलकर भी
पहुँचुगा वहीं
जहाँ पहुँचाती रहीं मुझे पगडंडियाँ
जब बाज़ार मेरे भीतर
बहुत सारी चीज़ों की कर लेगा निशानदेही
बिक सकने वाली वस्तुओं के रूप में
तब भी
मेरी कोई दुकान नहीं होगी
आचार-संहिताओं के बीच
जीवित रखूँगा
थोड़ी सी बचपन की जगह
जगह भटकने की
पागलपन की,जुनून की थोड़ी सी जगह
मंदिर जाने की जगह
किसी विस्मृत सा लोक कवि का
पुराना प्रेम गीत गाउँगा मैं
जब दुनिया के उलझे हुए तारों को
सुलझाने की बहस में डूबे होंगे बौद्धिक
मैं दूर से आते गीत का
बचा हुआ हिस्सा सुनने
प्रवेश कर जाऊँगा सामने फैले अँधेरे में
मेरे घर वे सब आ सकेंगे
जिनकी आँखों में
बच्चों को प्यार करने की ललक बाक़ी होगी
दुर्योधनी और हिटलरी ज़िदों के सामने
मनुष्यता के तने हुए सर की तरह
खड़ी मेरी ज़िद रहेगी
जहाँ मैं हूँ
मेरे साथ होगी.
भाई शशि भूषण जी बहुत ही बढिया परिचय और उससे भी बढिया आशीष जी की छन्द मुक्त कविता.
जवाब देंहटाएंReewa sirf ek baar gaya hun bachpan me. Raja martand Sing ka college, Govindgarh ka palace aur white tigers..aur door tak faila jungal. bas itanhi yaad hai. lekin Reewa aur vahan ke logon me kuch baat hai.
जवाब देंहटाएंप्रिय शशि,
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट बहुत अच्छी है. श्रद्धेय नामवर जी का साक्षात्कार लेने या आदरणीय काशीनाथ जी का प्रिय होने से कहीं आगे हैं आशीष त्रिपाठी. निश्चित रूप से वे एक कुशल अध्यापक होंगे. वे अत्यंत समर्थ कवि हैं और हमारे समय के अद्भुत कवि चंद्रकांत देवताले पर उनका मूल्यांकन पढ़ कर मैंने जाना कि उनकी समझ कितनी गहरी है.
ऐसे बड़े भाई को मेरा सलाम.
aap ka likhne ka tarika wakai kabile tarif hai. aur jaha tak reewa ke bat hai wakai bahut hi nirali jagah hai. 2- 3 bar waha jane ka mauka mila madhya pradesh ke is baghel khand ke mitti ke khusboo ke bat hi alag hai.
जवाब देंहटाएंशशि इस कविता में अनेक पढ़ी हुई कविताओं की झलक मिलती है। आश्ीष जी से मैं भी पहली बार शैलेश और मुकुल के साथ ही मिला था। उस संक्षिप्त मुलाकत के बाद हमारी दो तीन मुलाकातें और हुईं और उन्होंने मुझे हर बार नाम लेकर पुकारा। मैं उस दौरान लगभग अभीभूत रहता था कोई इतनी जबरदस्त मेमोरी कैसे रख सकता है। बाद में मैंने यह गुण कई और लोगों में पार्या यह पर्सनालिटी मैनेजमेंट का अच्छा हथियार है एक बात और परिचय थोड़ा ज्यादा व्यक्तिगत हो गया है।
जवाब देंहटाएंआशीष त्रिपाठी जी...जानना और रचना दोनों आनन्ददायी रहा.
जवाब देंहटाएंआशीष को इस जबरदस्त जिद के लिए बधाई। और पढ़वाने के लिए आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपरिचय में इतना और जोड़ दूं कि आशीष ने मुझे इंदौर में अपनी शादी का जो निमंत्रण-पत्र भेजा था, वह भी कविता में ही था।
कविता ठीक है। आपका परिचय थोड़ा अटपटा है। हिन्दी में इस नितांत नए तरीके से परिचय लिखने की पंरपरा जड़ पकड़ती जा रही है। आशीष त्रिपाठी और कृष्णमोहन जैसे लोग बीएचयू के हिन्दी विभाग की गरिमा को फिर से स्थापित कर सकेंगे इसकी हमें उम्मीद है। बशर्ते हिन्दी विभागों और हिन्दी जगत की कुख्यात राजनीति इन्हें खा न जाए।
जवाब देंहटाएंपरिचय के प्रवाह में कविता पर बात गौड़ हो गयी है. लेकिन कुछ वजहों से मैं भी धारा के समानांतर ही बहना चाहूंगा, इस बात के साथ कि शानदार कविता के लिए सर को (किस्मत से मैं इन्हें सर कहने वाली प्रजाति से बावस्ता हूँ.) बधाई!!!
जवाब देंहटाएंआशीष सर को मैं बहुत सारे दूसरे लोगों से ज्यादा जानता हूँ, ऐसा दावा कर सकने के बावजूद, इस परिचय से कुछ और जानने को मिला. इनके अच्छे अध्यापक होने की शिरीष भैया की बात पर बता दूं, कि ये पहले ऐसे सख्स हैं जिन्हें मैं अपना गुरु मानता हूँ, और इनसे कक्षा की दीवारों से लेकर बी एच यू की सड़कों, चाय की दुकानों और बनारस की गलियों तक में कुछ न कुछ सीखता रहा हूँ. अगर कोई ढंग की सोच रखता हूँ, तो उसके एक अहम् हिस्से पर इन्हीं की कशीदेकारी है. बदकिस्मती से अभी उस अकादमिक माहौल से बाहर हूँ जिसमे चाहे अनचाहे उनसे और भी बहुत कुछ सीखता, लेकिन आज भी इन्हें फ़ोन करके वक़्त बेवक्त परेशान करता रहता हूँ. मैं अपने विश्वविद्यालयीय दिनों से बहुत गहरे से जुड़ा हूँ, और वहाँ की बेशुमार यादों में आशीष सर, बहुत जगह और बहुत ज्यादा मौजूद हैं.
शशिभूषण जी, आपको सलाह है (और गुज़ारिश भी) कि आप कुछ रचनाएँ बी एच यू के ही, और मेरे एक और गुरु रामाज्ञा "शशिधर" सर से मांगिये और प्रकाशित करिए, मैं उनकी रचनात्मकता का कायल हूँ और यकीनन, दूसरे भी हो ही जाएंगे.
श्रीकांत
श्रीकांत जी,आपकी बातों से बहुत अच्छा लगा.रामाज्ञा जी को मैं पढ़ता रहता हूँ.अभी ताज़ा बया में उनकी अच्छी कविताएँ हैं.मैंने उनको फ़ोन भी किया पर किसी वजह से बातें नहीं हो पाईं.कायल मैं आपका भी हूँ चंदन के यहाँ पढ़ा है.आप नियमित करेंगे यही चाहता हूँ आपसे.
जवाब देंहटाएंरंगनाथ जी ने कहा तो ध्यान गया बात तो सही है पर हम कितनी जल्दी परंपरा में चले जाते हैं फिर वहाँ से निकल आना चाहते हैं.मेरे लिए यह जानना बहुत अहम होता है कि कोई शख्सियत स्मृति में कैसी है.कई बार बहुत अच्छा लगता है जब कोई श्रद्धेय स्मृति में बेलौस और बिंदास दिखाई देता है.मैंने आशीष जी को ऐसे ही जाना.उनका किताबी परिचय मुझे पता ही नहीं.सचमुच उनके बायोडाटा में मेरी उतनी रुचि कभी नहीं रही जितनी उनमें है.स्कूल मास्टर हूँ कक्षाओं में साहित्यकारों का जीवन परिचय रटाते हुए थका भी होता हूँ.सो संदीप से भी कहूँगा इस छोटी सी जिंदगी में क्या व्यक्तिगत यार...
मुझे सचमुच खुशी हो रही है कि इस पोस्ट में इतने अच्छे अच्छे लोंगों ने रुचि दिखाई.
शशि व्यक्तिगत से मेरा आशय सिर्फ इतना ही है कि ब्लाग जगत में ऐसे अनेक लोग हैं जो जो आशीष के अकादममिक परिचय और उनकी सृजनात्मक उपलबिधयों पर केंद्रित जानकारी पाना चाहेंगे। प्रेम में मेरी आस्था अभी इतनी तो बची ही है कि जिस लड़की से प्यार किया उसी से शादी को उपलबघि के तौर पर उल्लिखित किया जाना पसंद नहीं मुझे।
जवाब देंहटाएंदिलचस्प संस्मरण! 🙏
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