"सबसे शुद्ध पल हैं भय रहित पल / निर्भय स्वास्थ्य है / जो भय लाता है उससे निर्भय मिलें / भयभीत से करें प्रेम निर्बल के लिये बोलें / भय राज नरक है." -शशिभूषण
गुरुवार, 7 जनवरी 2010
दोस्ती
किताब सी तुम्हारी दोस्ती.
पढ़कर इम्तहान देना न लिखकर ईनाम लेना बस आदमी होते जाना ज़मी-आसमां से भर जाना.
ज़िल्द बदलने की चिंता न पन्ने उखड़ने का डर बस बरतना प्यार से संवरते जाना.
काली स्याही में उजली भाषा सी साथी किताब सी तुम्हारी दोस्ती.
बहुत उम्दा संदेश...अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएंek badhiya bhav..achchi kavita..dhanywaad shashibhushan ji..
जवाब देंहटाएंयह कविता तुमसे पहले भी सुनी है। सादी और सीधे दिल में समा जाने वाली कविता
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है
जवाब देंहटाएंमैं कामना करता हूँ कि आगे भी ऎसे ही लिखते रहिए