रविवार, 15 जनवरी 2017

राष्ट्रभाषा हिंदी नारा नहीं हमारा साझा सपना है

आज जो हिंदी है वह बोलियों का समुच्चय है। हिंदी की बोलियां हिंदी की धमनियां और शिराएं हैं। कई ऐसी बोलियां भी हैं जो हिंदी के बराबर साहित्यिक धारिता वाली हैं। उन्हें बोली कहना भी अटपटा लगता है। वे बड़ी आसानी से न केवल भाषा कहला सकती थी बल्कि संवैधानिक शर्तों पर भाषा बन सकती हैं। कुछ बोलियाँ भाषा बन भी चुकी हैं। लेकिन इसे ही हथियार बना लेने से पूर्व यह नहीं भूलना चाहिए कि बोलियों को बहुत पहले ही हिंदी की उपभाषा के ही अन्तर्गत बोली कहने के पीछे एक विराट, समावेशी, अग्रगामी कामना रही है। वह कामना यह है कि एक दिन इन बोलियों को भाषा की तरह हिन्दी के विरुद्ध ही खड़े हो जाने की नौबत न आ जाये। हिंदी उत्तरोत्तर अपने वास्तविक पद तक पहुँच पाये इसके लिए यह त्याग अपरिहार्य था और आज भी आवश्यक है।

यदि हिंदी की बोलियां भाषा बनती जाएँ तो अंत में हिंदी बचेगी ही नहीं। इसमें दो राय नहीं। मुझे यह बात बहुत अच्छी लगती है कि फणीश्वरनाथ रेणु हों या हरिवंश राय बच्चन इनकी हिंदी में दो बड़ी बोलियों की अंतर्धारा है। हरिवंश राय बच्चन के गद्य में अवधी के शब्दों का जो ठाठ और बाहुल्य है वह उन्हें अत्यन्त लोकप्रिय और बोधगम्य बनाता है। इसी तरह के अनेक उदाहरण हैं जहाँ हिंदी साहित्य में बोलियों की विविधता और वैभव है। हिंदी साहित्य वास्तव में बोली से आये मनीषियों का ही अपूर्व सृजन है।

यदि आगामी कुछ दिनों में ही भोजपुरी भाषा बन जाती है जैसा कि संविधान की आठवी अनुसूची में उसे शामिल करने की तैयारी पूर्ण है तो मैं कहूंगा बघेली भी क्यों नहीं? यदि बघेली भी भाषा बने तो जल्द से जल्द, अधिक से अधिक मुझे क्या मिलेगा? मैं भी तत्काल प्रभाव से बघेली की सेवा करता हुआ बघेलखंड का रत्न बनने में लग जाऊंगा। हिंदी में रहते हुए एक महाद्वीप में हूँ। फिर एक टापू में रहूँगा। कमज़ोर आवाज़ में भी पुकारूंगा तो आवाज़ गूंजेगी।

जैसे ही बघेलखंड या विंध्य प्रदेश नाम से अलग राज्य बनेगा मेरे लिए किसी अकादमी में जगह पाने में कम प्रतियोगिता होगी। लेकिन एक हृदयविदारक घटना यह होगी कि पूरे विंध्य प्रदेश में सौ पचास लोग ही हिंदी भाषी बचेंगे। क्योंकि वहां अभी भी सब बघेली ही बोलते हैं। केवल सार्वजानिक जगहों पर भी बघेली बोलने लिखने की अनिवार्यता की आवश्यकता है।

कुल मिलाकर यह कहने में मुझे संकोच नहीं कि भोजपुरी के भाषा की तरह आठवीं अनुसूची में शामिल होने से हिंदी कमज़ोर होगी। दूसरी बोलियों के भाषा बनने से और कमज़ोर होगी। बोलियां लड़ाई छेडेंगी। वे भाषा बनेंगी। विश्व में हिंदी भाषी घटते जायेंगे। भारत में नए राज्यों के गठन की मांग उठेगी। इतने अधिक इतने अधिक भाषायी आधार पर नए राज्य भारत में हो सकते हैं कि यह संघ गणराज्य लड़खड़ा भी सकता है। तब उन्हें एक सूत्र में पिरोने कौन सी भाषा आयेगी? अभी हिंदी से तक़लीफ़ किस भाषा को है?

भारत में इस वक़्त हिंदी से बोलियों की जो लड़ाई केवल शुरू होती प्रतीत हो रही है उसके बारे में प्रभु जोशी जी का वह अंदेशा सही ही प्रतीत होता है कि यह दुश्मन सुरंग कदाचित अंग्रेज़ी द्वारा ही लंबे समय की तैयारी के बाद बहुत अंदर तक पहुंचाई जा चुकी है। बस दिल्ली से समय समय पर कुछ बार मुहर की ज़रूरत है।

इसलिए मैं भी समझता हूँ आज आवश्यकता हिंदी को ही समेकित रूप में समृद्ध करने की है। बोलियों को संपन्न करने की है। उन्हें जो चाहिए वह सब मिले और हिंदी उनसे जितना चाहिए उतना ले। क्योंकि हमारे राष्ट्रनिर्माताओं का वह सपना आज तक हमारा इंतज़ार कर रहा है जो हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहता है।

मैं बोलियों के विरुद्ध नहीं हूँ लेकिन अंग्रेज़ी के भाषायी साम्राज्यवाद और पूर्व परिचित औपनिवेशिक कारगुजारियों से कतई निश्चिन्त नहीं हूँ। आज विश्व स्तर पर हिंदी के ख़िलाफ़ जो कूटनीति और धन बल है उसे कुछ कुछ देख पा रहा हूँ। मैं रोज़ हिंदी को हिंग्लिश में टूटती देखने वाला विवश नागरिक हूँ। हिंदी को राष्ट्रभाषा की तरह देखना मेरा भी एक सपना है। अपनी इस नीयत और कामना का अधिक ख़ुलासा करने के लिए कुछ दिनों पूर्व लिखी एक प्रतिज्ञा आप सबसे बांटना चाहता हूँ-

प्रतिज्ञा

हम भारत के लोग सब भारतीय हैं। हमें अपना देश और भारतीय भाषाएं प्यारी हैं।

हम दुनिया भर में बोली जानेवाली भाषाओं, निवासियों के प्रति अमिट सम्मान रखते हुए हिंदी को सर्वश्रेष्ठ बनाने का संकल्प लेते हैं। हम जिस भाषा को अपनाएंगे उसका व्यवहार पूरी गरिमा से करेंगे।

संसार भर की भाषाओं में विद्यमान सर्वश्रेष्ठ साहित्य,विचार, ज्ञान और विज्ञान के प्रति अपने मस्तिष्क, आँख और कान खुले रखेंगे।

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए भारतीय महामनाओं के सपने और प्रयत्नों को साकार करेंगे।

हिंदी हमारी राजभाषा है। इसे राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयत्न और भारतीय संघ गणराज्य के प्रभुत्व की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।

हम सभी भाषाओं की अस्मिता अक्षुण्ण रखते हुए हिंदी की उन्नति के लिए प्रतिबद्ध रहने की प्रतिज्ञा करते हैं।

जय हिंद!

आइये हम हिंदी को केवल बचाने के लिए नहीं उसके लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ चुके महापुरुषों के सपनों को साकार करने के लिए भी एक कदम बढ़ाएं।

शशिभूषण

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