आज नामवर सिंह जी का जनम दिन है।
नामवर सिंह के बारे में जीवन में पहली लाइन पढ़ी थी व्यंग्यकार शरद जोशी की। एक व्यंग्य में सायास लिखी गयी। लाइन मुझे ऐसी लगी कि आज भी याद आ जाती है।
'वे कोई नामवर सिंह थोड़े हैं जिनकी भूलें सुधारना साहित्य का तकाज़ा हो।'
नामवर सिंह कोई दूसरा नहीं हो सकता यह तब समझ में आया जब उन्हें पढ़ा और उन्हें सुना। नामवर सिंह आज अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर हैं।
आज ही एक तस्वीर देखी। नामवर जी मंच पर बैठे हैं और भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह बोल रहे हैं। ऐसे गृहमंत्री जो रोहित वेमुला की आत्महत्या पर लगभग नहीं बोले और जेएनयू मसले पर लगभग चेतावनी ज़ारी की। नामवर सिंह ने इन दोनों अवसरों पर यदि मुंह भी खोला हो तो मुझे नहीं मालुम।
कुछ समय पहले असहिष्णुता की बहस के दौर में सम्मान वापसी प्रसंग पर नामवर सिंह जी की टिप्पणी याद आ रही है। उन्होंने कहा था-
'लेखकों का यह कदम सुर्खियों में बने रहने के लिए है।'
आज उन्होंने साबित कर दिया कि सुर्खी और मशहूरियत के क्या असल मायने होते हैं। हिंदी साहित्य में आज चर्चित भले कितने हों प्रसिद्ध हैं नामवर सिंह। प्रसिद्धि के लिये उन्होंने जो तप किया वह शायद बहुत से हिंदी के लेखक करना ही न चाहें।
मेरी राय में नामवर सिंह अब एक व्याख्याता की तरह याद किये जायें तो बेहतर होगा। हिंदी में प्रचलित अवधारणाओं, वादों, आंदोलनों का सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता। विषयनिष्ठ और संप्रेषणकुशल वक्ता।
इससे अधिक नामवर सिंह को श्रेय देने में निर्विवाद रहना असंभव है। सदैव विवादों में रहने से नामवर सिंह का क्या नुकसान हुआ यह तो आनेवाला समय और साहित्य बयान करेगा।
ज़िन्दगी लगभग पूरी कर चुके नामवर सिंह जी को बधाई न देना कृतघ्नता होगी और उनका महिमामंडन करना अनुचित होगा।
मेरी ओर से भी हिंदी के इस अभूतपूर्व आलोचक, वक्ता और व्याख्याता को जन्मदिन की हार्दिक बधाई। प्रणाम!
नामवर सिंह के बारे में जीवन में पहली लाइन पढ़ी थी व्यंग्यकार शरद जोशी की। एक व्यंग्य में सायास लिखी गयी। लाइन मुझे ऐसी लगी कि आज भी याद आ जाती है।
'वे कोई नामवर सिंह थोड़े हैं जिनकी भूलें सुधारना साहित्य का तकाज़ा हो।'
नामवर सिंह कोई दूसरा नहीं हो सकता यह तब समझ में आया जब उन्हें पढ़ा और उन्हें सुना। नामवर सिंह आज अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर हैं।
आज ही एक तस्वीर देखी। नामवर जी मंच पर बैठे हैं और भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह बोल रहे हैं। ऐसे गृहमंत्री जो रोहित वेमुला की आत्महत्या पर लगभग नहीं बोले और जेएनयू मसले पर लगभग चेतावनी ज़ारी की। नामवर सिंह ने इन दोनों अवसरों पर यदि मुंह भी खोला हो तो मुझे नहीं मालुम।
कुछ समय पहले असहिष्णुता की बहस के दौर में सम्मान वापसी प्रसंग पर नामवर सिंह जी की टिप्पणी याद आ रही है। उन्होंने कहा था-
'लेखकों का यह कदम सुर्खियों में बने रहने के लिए है।'
आज उन्होंने साबित कर दिया कि सुर्खी और मशहूरियत के क्या असल मायने होते हैं। हिंदी साहित्य में आज चर्चित भले कितने हों प्रसिद्ध हैं नामवर सिंह। प्रसिद्धि के लिये उन्होंने जो तप किया वह शायद बहुत से हिंदी के लेखक करना ही न चाहें।
मेरी राय में नामवर सिंह अब एक व्याख्याता की तरह याद किये जायें तो बेहतर होगा। हिंदी में प्रचलित अवधारणाओं, वादों, आंदोलनों का सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता। विषयनिष्ठ और संप्रेषणकुशल वक्ता।
इससे अधिक नामवर सिंह को श्रेय देने में निर्विवाद रहना असंभव है। सदैव विवादों में रहने से नामवर सिंह का क्या नुकसान हुआ यह तो आनेवाला समय और साहित्य बयान करेगा।
ज़िन्दगी लगभग पूरी कर चुके नामवर सिंह जी को बधाई न देना कृतघ्नता होगी और उनका महिमामंडन करना अनुचित होगा।
मेरी ओर से भी हिंदी के इस अभूतपूर्व आलोचक, वक्ता और व्याख्याता को जन्मदिन की हार्दिक बधाई। प्रणाम!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'