बेटी को मां पालती आयी
पिता बेटी को बढ़ता देखता
आया
बेटी का साथ पिता के नसीब
में नहीं था
मगर वह मौके पर फफक पड़ता
आया
पिता के हाथों बेटियां बड़ी
हो रही हैं
मां से हजारों मील दूर पढ़
रही हैं
बेटियों का दिल मां जितना
बड़ा है
कंधे पिता जितने मज़बूत
अब बेटियां
पिता के साथ चलती हैं
जड़ें गहरी हो रहीं
फलों में भर रहा स्वाद
-शशिभूषण
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (04-07-2015) को "सङ्गीतसाहित्यकलाविहीना : साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीना : " (चर्चा अंक- 2026) " (चर्चा अंक- 2026) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत खूब
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