किताबों की संख्या भले ही कम हो परंतु वे अच्छी ज़रूर हों.हमारी अलमारियों में घटिया पुस्तकों के लिए कोई स्थान नहीं.किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह पाठकों का वक्त जाया करे.इमानदार श्रमिकों के अवकाश का हनन करे.
केवल वही आदमी किसी को सिखा सकता है जो स्वयं उससे अधिक जानता हो.
लेखक का कर्तव्य है कि वह पूँजीवाद के बचे-खुचे प्रभावों को जड़ों से उखाड़ फेंके जो अब तक लोगों के मस्तिष्क में छाए हुए हैं.
आज का हमारा पाठक एक कठोर और निर्मम आलोचक हो गया है.कोई भी उसे भूसा खिलाने की कोशिश न करे.जनता को बेवकूपफ़ बनाना असंभव है.इससे काम नहीं चलेगा.हमारा पाठक हमारी रचना में जहां कहीं भी कोई बात झूठी,कुटिल या कृत्रिम देखेगा उसे फौरन पकड़ लेगा.वह आपकी किताब अन्त तक पढ़ेगा भी नहीं,उसे फेंक देगा,उसकी निंदा करेगा.और बाद में जिस किसी से बात करेगा,आपकी बुराई करेगा.और जब एक बार आप अपनी प्रतिष्ठा खो बैठे तो दोबारा वह मिलने की नहीं.
लेखक के ऊँचे पद को हमें सोवियत भूमि में ऊँचा ही बनाए रखना होगा.और यह केवल सच्चे श्रम,अथक परिश्रम,अपनी शक्ति के हर कण से-शारीरिक तथा नैतिक,अनवरत अध्ययन से,निर्माण-संघर्ष में स्वयं भाग लेने से ही संभव है,तभी लेखक सबसे आगे की पंक्ति में अपना स्थान बना सकता है.पिछली सफलताओं तथा ख्याति पर संतुष्ट होकर बैठ जाने से काम नहीं चलेगा.हमारे देश के अग्रगामी लोग,स्ताख़ानोवपंथी,कभी अपनी सफलताओं से संतुष्ट होकर बैठ नहीं जाते.वे अपने वीरतापूर्ण काम द्वारा श्रम-क्षेत्र में अपना नेतृत्व बनाए रखते हैं.यह उनके लिए एक गौरव की बात हो गई है.पर बहुत से लेखक एक अच्छी किताब लिखने के बाद अपनी प्रशंसा से संतुष्ट हो बैठ जाते हैं.ज़िंदगी की रफ्तार तेज़ होती है.गतिहीनता को जीवन कभी क्षमा नहीं करता.और जीवन की गति ऐसे लेखकों को पीछे छोड़ जाती है.यही उनकी दुखांत कहानी बनती है.
निकोलाई ओस्त्रोव्सकी
केवल वही आदमी किसी को सिखा सकता है जो स्वयं उससे अधिक जानता हो.
लेखक का कर्तव्य है कि वह पूँजीवाद के बचे-खुचे प्रभावों को जड़ों से उखाड़ फेंके जो अब तक लोगों के मस्तिष्क में छाए हुए हैं.
आज का हमारा पाठक एक कठोर और निर्मम आलोचक हो गया है.कोई भी उसे भूसा खिलाने की कोशिश न करे.जनता को बेवकूपफ़ बनाना असंभव है.इससे काम नहीं चलेगा.हमारा पाठक हमारी रचना में जहां कहीं भी कोई बात झूठी,कुटिल या कृत्रिम देखेगा उसे फौरन पकड़ लेगा.वह आपकी किताब अन्त तक पढ़ेगा भी नहीं,उसे फेंक देगा,उसकी निंदा करेगा.और बाद में जिस किसी से बात करेगा,आपकी बुराई करेगा.और जब एक बार आप अपनी प्रतिष्ठा खो बैठे तो दोबारा वह मिलने की नहीं.
लेखक के ऊँचे पद को हमें सोवियत भूमि में ऊँचा ही बनाए रखना होगा.और यह केवल सच्चे श्रम,अथक परिश्रम,अपनी शक्ति के हर कण से-शारीरिक तथा नैतिक,अनवरत अध्ययन से,निर्माण-संघर्ष में स्वयं भाग लेने से ही संभव है,तभी लेखक सबसे आगे की पंक्ति में अपना स्थान बना सकता है.पिछली सफलताओं तथा ख्याति पर संतुष्ट होकर बैठ जाने से काम नहीं चलेगा.हमारे देश के अग्रगामी लोग,स्ताख़ानोवपंथी,कभी अपनी सफलताओं से संतुष्ट होकर बैठ नहीं जाते.वे अपने वीरतापूर्ण काम द्वारा श्रम-क्षेत्र में अपना नेतृत्व बनाए रखते हैं.यह उनके लिए एक गौरव की बात हो गई है.पर बहुत से लेखक एक अच्छी किताब लिखने के बाद अपनी प्रशंसा से संतुष्ट हो बैठ जाते हैं.ज़िंदगी की रफ्तार तेज़ होती है.गतिहीनता को जीवन कभी क्षमा नहीं करता.और जीवन की गति ऐसे लेखकों को पीछे छोड़ जाती है.यही उनकी दुखांत कहानी बनती है.
निकोलाई ओस्त्रोव्सकी
My name is Dr. Ashutosh Chauhan A Phrenologist in Kokilaben Hospital,We are urgently in need of kidney donors in Kokilaben Hospital India for the sum of $450,000,00,All donors are to reply via Email only: hospitalcarecenter@gmail.com or Email: kokilabendhirubhaihospital@gmail.com
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