रविवार, 21 फ़रवरी 2016

रवीश कुमार ने पत्रकार की स्वायत्तता बचा रखी है



रवीश कुमार बहुत अच्छे पत्रकार हैं। मैं महज अच्छे विशेषण का प्रयोग इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मुझे पत्रकारिता के मानकों की जानकारी नहीं है। टीवी पत्रकारिता में आलोचना के लिए प्रयोग की जानेवाली शब्दावली से मैं अंजान हूँ। रवीश कुमार जिनके नाम के साथ मैं हमेशा जी लगाना चाहता हूँ को अच्छा पत्रकार समझने के पीछे मेरे दर्शक का मोटा मोटी आकलन यह है कि वे सच के नज़दीक होते हैं। यहां मैं उस सत्य की बात नहीं कर रहा जिसे अब तक खोजा नहीं जा सका है। जो कभी सामने न आनेवाले ईश्वर का रूप माना जाता है। मेरा भरोसा दैवी चीज़ों में कम है। मैं उन सच्चाइयों की बात कर रहा हूँ जो हमारे देश और समाज में उचित विवेचना और बहस के अभाव में ग़ैर हाज़िर रह जाती हैं। मैं उन दावों, अफ़वाहों और प्रचारों की बात भी कर रहा हूँ जो दो टूक विश्लेषण के अभाव में अनसमझे रह जाते हैं।

आप जानते ही हैं कि रवीश कुमार बड़े से बड़े हंगामें में या दूरदराज़ के इलाके में जाकर इस तरह अपना काम करने की कोशिश करते हैं कि लोगों की समझ दुरुस्त हो, लोगों का भला हो और सबका विवेक बचा रहे। किसी की यह राय भी हो सकती है कि वे अपनी कोशिश में पूरे सफल नहीं रहते लेकिन इस बात से शायद ही कोई ऐतराज़ जताये कि वे कोशिश यही करते हैं। रवीश कुमार को अगर आपने सरस्वती की खोज में गये देखा होगा तो आप मानेंगे कि यह पत्रकार इस पर बहुत बल देता है कि बिना देखे जाने प्रभावित न हुआ जाये।

रवीश कुमार इसलिए अच्छे हैं क्योंकि उनमें सादगी है। वे अपनी भाषा को सायास उच्च कोटि का बनाकर नहीं रखते। लंबे अभ्यास के बावजूद उनकी आवाज़ पहली बार जैसे लड़खड़ा जाती है। जानबूझकर उच्चारण की पगडंडी पर चलने लगती है। वे जब अपने ताने से गुदगुदा भी देते हैं तो दिल को छू लेते हैं। उसमें कोई गहरा इशारा होता है। मैंने रवीश कुमार को बहुत बाद में देखना शुरू किया। लगभग पाँच छह साल पहले। मेरे पास टीवी देर से आया। टाटा स्काई उसके भी कई साल बाद। मुझे अफसोस नहीं है कि आज मैं रवीश कुमार की प्रशंसा में किसी को पछाड़ नहीं सकता। अपना झंडा गाड़ देने की बात तो सोचनी भी नहीं चाहिए।

कभी जब मन होता है कि मैं रवीश कुमार से दिल्ली जाकर मिलूँ तो सोचता हूँ मिल तो लूँ लेकिन तारीफ़ के अलावा मेरे पास जब कुछ नहीं है तो कहूँगा क्या? क्या सलाह दूँगा? किस कमी या चूक को बताकर उनसे माँग करूँगा कि रवीश जी मुझे आपसे इससे अधिक की उम्मीद है। बहुत विचार के बाद मेरी समझ में नहीं आता कि मैं रवीश कुमार के लिए क्या योगदान दे सकता हूँ? जिससे आप सबसे अधिक सीखते हों उसे उपदेश किस मुँह से दे सकते हैं! यह सोचकर संतोष कर लेता हूँ कि रवीश कुमार स्वस्थ रहें। उन्हें बहुत लंबी उम्र मिले। आज उनके होने से बड़ी राहत है। उकसाऊ और भड़कीला टीवी काटने नहीं दौड़ता। यह बल बना रहता है कि टीवी देखकर किसी से मारपीट नही कर लूँगा। किसी को चोप्प... या देशद्रोही, ...गद्दार... नहीं कह दूँगा। समझ लीजिए खबरों में और टीवी में स्वाद बचा हुआ है। इसी क्षण मुझे लगता है रवीश कुमार बहुत अच्छे पत्रकार हैं। अब आप मेरे इस अच्छे विशेषण की कीमत जान सकते हैं। यह किसी उच्च अध्ययन या मानद उपाधि से नहीं निकला है। मैंने इसे पसंद के क्षण से विनम्र होकर निकाला है। यह विशेषण केवल सम्मान नहीं मेरी इंसानी कामना भी है।

मुझे हिंसा, आक्रामकता और अतिवाद नापसंद हैं। मैं चाहता हूँ अच्छे और बुरे की समझ बची रहे। हम घटना को चाहे जितने एंगल से देखें लेकिन अंत में सही या ग़लत के निर्णय में ज़रूर पहुँच सकें। मान लीजिए हमें शिक्षा मिली कि हिंसा बुरी है, जातिवाद बुरा है, दहेज बुरा है, साम्प्रदायिकता बुरी है, अंध भक्ति बुरी है, चरमपंथ बुरा है तो फिर इसे अंत तक और हर देश काल में बुरा मानने लायक आत्मबल रहे आना चाहिए। मैंने जब जब रवीश कुमार को टीवी में देखा मुझे कभी नहीं लगा कि वे धर्मनिरपेक्षता के साथ समझौता करने को तैयार हैं। किसी ग़लत बात को स्थापित होने देने को तैयार हैं। इसीलिए मैं उन्हें अच्छा समझता हूँ। नशे और चोरी की खूबी भी निकाल लाने की चालाकी मैंने उनमें नहीं देखी।

अंबेडकर जयंती हो, हाशिमपुरा हो, दादरी हो, कन्नण लेखक एम एम कलबुर्गी की हत्या हो, रोहित वेमुला की आत्महत्या या जेएनयू प्रकरण हो, रवीश कुमार जिस प्रतिबद्धता और इंसानी ओज के साथ प्राइम टाईम लेकर आये मुझे यही लगा भारत को अकेलेपन और एकतरफा फैसलों में नहीं धकेला जा सकता। जब तक इतने अच्छे पत्रकार हैं अच्छाईयाँ नाउम्मीद नहीं हो सकतीं। अगर सही और गलत का विवेक, न्याय की कामना कभी खत्म न होने वाले मूल्य हैं तो इसकी जिम्मेवारी सब पर होती है।

बड़ा पत्रकार वह होगा जिसकी बात सब मान लें। अदालत के जज भी जिससे बिना पूछे फैसला न करें। लोकतंत्र का सर्वोच्च व्यक्ति यह इंतज़ार करे कि राय मशविरा हो जाये तो कोई आदेश दें। कोई अकेला बड़ा पत्रकार नहीं हो सकता। रवीश कुमार बहुत अच्छे पत्रकार हैं। उनके जैसे कई पत्रकार मिलकर बड़े पत्रकार बन सकते हैं। हमारे देश को बड़ी पत्रकारिता की बहुत ज़रूरत है।

बीते 19 फरवरी को प्राईम टाईम में जिस तरह रवीश कुमार टीवी स्क्रीन को काला कर आवाज़ों में ले गये उसकी तुलना उस अकेले शख्स से की जा सकती है जो किसी भीड़ को अन्याय करते देख, अपने डर पर काबू पाने के लिए भी लोगों की ओर घूमकर आवाज़ लगाता है- रुक जाइए। ग़लत में शामिल मत होइए।

जैसा की होना ही था। रवीश कुमार पर हमले तेज़ हो गये हैं। इन हमलों की तुलना उनसे की जा सकती है जो ताव में आकर कहने लगते हैं-धंधे पर चोट मत कीजिए वरना हमसे बुरा कोई न होगा।

रवीश कुमार इसलिए अच्छे पत्रकार हैं क्योंकि वे वकालत नहीं करते। अदालत नहीं चलाते। वैचारिक शिविरों का संयोजन नहीं करते। अरविंद केजरीवाल और योगेन्द्र यादव का एक साथ रवीश कुमार पर गर्व करना अपनी जगह रवीश कुमार इसलिए अच्छे पत्रकार हैं क्योंकि वे मीडिया के धंधे में पत्रकारिता के पेशे के पक्ष में खड़े हैं। उन्होंने पूँजी और राजनीति के अपेक्षाकृत पवित्र बिजनेस, मीडिया में सरोकार की स्वायतता बचा रखी है। उन्हें हज़ारों लोग बहुत पसंद करते हैं।


-शशिभूषण

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-02-2016) को "जिन खोजा तीन पाइया" (चर्चा अंक-2260) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आज सच कहना या लिखना अपने आप को सब से अलग कर लेना होता है।

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