कल रास्ते में चौबे जी मिल गए। दुःख भरे खीझ खीझकर कहने लगे, जनता मुफ़्तखोर हो गयी है। जनता को सब मुफ़्त में चाहिए। मैंने पूछा, जनता को क्या मुफ़्त में चाहिए ? उसे मुफ़्त में कौन देता है ? चौबे जी झल्लाए, बनिये मत। आपको इतना भी नहीं मालूम ? जनता को बच्चों की शिक्षा मुफ़्त चाहिए। घर में बिजली मुफ़्त चाहिये। पानी मुफ़्त चाहिए। इतना ही नहीं घर की औरतों के लिए बस ट्रेन का किराया भी मुफ़्त चाहिए। जो जो मिल जाये सब मुफ़्त चाहिए। काम तो कुछ करना नहीं चाहते लोग। मैंने पूछा, मुफ़्त में देता कौन है ? चौबे जी चीखे, आजकल के कुछ देशद्रोही, आतंकवादी नेता। मुझे अचरज हुआ। लेकिन फिर मैं कुछ कुछ समझ गया। मैंने चौबे जी से पूछा, चौबे जी शिक्षा, बिजली, पानी की बात आपको जल्दी समझ में आएगी नहीं। इसलिये उस बात से शुरू करते हैं जो आपको समझ में आती है। चौबे जी ने मुझे तरेरा, क्या कहना चाहते हैं आप ? आप बड़े ज्ञानी हैं ?
मैं : चौबे जी आप चौबे हैं या चतुर्वेदी ?
चौबे : हम चौबे हैं।
मैं : आपके दादा जी चौबे थे या चतुर्वेदी?
चौबे : दादा जी भी चौबे थे। लेकिन हमारे पुरखे चतुर्वेदी थे।
मैं : चौबे होने के लिए दादा जी ने कोई शुल्क दिया था ?
चौबे : कैसे मूर्ख हैं आप ? कुल नाम के लिए कोई फीस देता है?
मैं : क्या आपकी बेटी भी चौबे है ?
चौबे : वह शुक्ला है ?
मैं : ऐसा क्यों ?
चौबे : उसकी शादी हो चुकी।
मैं : शादी दहेज देकर हुई या बिन दहेज?
चौबे : बड़े मनई कोई शादी बिन दहेज करते हैं?
मैं : फिर आपकी बहू चौबे होगी ?
चौबे : हां, बहू चौबे है।
मैं : पहले भी चौबे थी ?
चौबे : पहले दुबे थी।
मैं : बेटे की शादी में दहेज मिला था या... ?
चौबे : क्या हम कंगले हैं जो बिन दहेज बेटा देंगे ?
मैं : चौबे जी आपके घर के लड़कों को सरनेम मुफ़्त है ?लेकिन लड़कियों के सरनेम में लेन-देन जुड़ा है ऐसा क्यों ?
चौबे : आपकी मति भ्रष्ट है तो क्या बताएं ? यह रिवाज़ है।
मैं : फिर तो आपको बहुत कुछ विरासत में मिला होगा ?
चौबे : क्यों नहीं ? घर, ज़मीन जायदाद, सब विरासत में ही तो मिला।
मैं : आप कह रहे हैं कि आपको ज़मीन जायदाद मुफ़्त मिली ?
चौबे : इसे मुफ़्त आप जैसा कोई गद्दार ही कह सकता है।
मैं : नाराज़ मत होइए। रिवाज़ और नियम क्या एक ही हैं ?
चौबे : विरासत भी नियम हैं। रिवाज़ भी क़ानून है।
मैं : अच्छा, क्या नेता भी रिवाज़ बना सकते हैं ?
चौबे : नेता क़ानून बना सकते हैं।
मैं : इसीलिए कोई नेता जनता को बुनियादी चीजें मुफ़्त दे रहा होगा। इससे जनता मुफ़्तखोर कैसे हुई ?
चौबे : आप महा मूर्ख हैं। नेता बाप दादा नहीं होता। वह नेता होता है।
मैं : जनता औलाद नहीं होती; जनता होती है।
चौबे : हाँ।
मैं : कोई नेता जनता को औलाद माने तो ?
चौबे : अच्छी बात है। लेकिन वह जनता को मुफ़्तखोर नहीं बना सकता।
मैं : जनता को मुफ़्त देने में वैसे दिक़्क़त क्या है ?
चौबे : जनता को सब मुफ़्त बांट देने से देश में बचेगा क्या ?
मैं : जनता बचेगी।
चौबे : बाक़ी कंगाल हो जाएंगे। ख़ज़ाना ख़ाली हो जाएगा।
मैं : जनता बचेगी। जनता ख़ुद ख़ज़ाना है।
चौबे : आप बकवास कर रहे हैं। अब आपसे कोई बात नहीं हो सकती। मुफ़्तख़ोरी देश को बर्बाद कर देगी। देश के टुकड़े- टुकड़े कर देगी।
मैं : ख़ुशहाल जनता देश को बनाएगी बचाएगी या शिक्षा, पानी, दवा को तरसती जनता ?
चौबे : आपसे बहस बेकार है। आप असभ्य हैं। नक्सली हैं। टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्य हैं।
मैं : चौबे जी बस कीजिए। पहले अपनी मुफ़्तख़ोरी से बाज आइये। पैतृक संपत्ति के बल पर तीन तिकड़म से थोड़ा बहुत उसमें जोड़कर मूछों में ताव दिए घूमते हैं।
चौबे : चौबे होना मुफ़्तख़ोरी है ? आपसे बड़ा मूर्ख , धर्म का दुश्मन दूसरा कोई मिलेगा धरती पर ?
मैं : सेंत के चौबे लोगों को यही लगेगा।
चौबे : चोप्प ! मुँह बंद रखना अब। हिन्दू विरोधी कहीं के।
आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसके बाद क्या हुआ होगा। चौबे जी ने मुझे बड़ी भद्दी भद्दी सुनायी। जनता के साथ साथ मुझे भी ज़ाहिल और आलसी कहा। उनका बस चलता तो मुझे मारते भी। लेकिन मैं चुप लगा गया और जल्दी ही वहां से चला आया। मुझे अफ़सोस चौबे जी से गाली खाने का उतना नहीं है जितना उन्हें न समझा पाने का है। चौबे जैसे लोग दरअसल कुछ समझना ही नहीं चाहते। उन्हें जो जो मिला उसे अपना अधिकार, योग्यता समझते हैं। लेकिन जनता को जो नागरिक होने के नाते सरकार से स्वतः मिलना चाहिए उसे मुफ़्तख़ोरी समझते हैं।
चौबे लोगों की यही समस्या है। उनके जैसे नेताओं की भी यही समस्या है। वे जनता को मुफ़्तख़ोर बता कर भी अपने लिए माल मत्ता कमाना चाहते हैं। बल्कि बेशुमार कमा भी लेते हैं। यह गड़बड़ रामायण रुकनी चाहिए। ग़रीब जनता को सरकार से वह सब मिलना चाहिए जो उन्हें पुरखों से नहीं मिला। जिसके लिए वे मोहताज़ हैं। सरकार पालनहार होती है। उसे जनता को पालना पोषना और जोड़कर रखना चाहिए।
- शशिभूषण
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